2024 के आम चुनावों में भाजपा लोकसभा में बहुमत से चूक गई और उसकी सीटें 303 से घटकर 240 रह गईं। 2014 के बाद पहली बार भारतीय जनता पार्टी को सरकार में बने रहने के लिए गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ा। चुनाव के एक साल बाद, 2024 का चुनावी झटका पीएम मोदी की जीत में महज एक छोटी सी रुकावट लगता है।

पिछले साल बीजेपी ने हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में राज्य विधानसभा चुनावों में स्पष्ट बहुमत हासिल किया है जिससे 2024 के चुनाव में उसकी सीटों में गिरावट के बावजूद, देश में सबसे प्रभावशाली राजनीतिक दल के रूप में उसकी स्थिति मजबूत हुई है।

हरियाणा में, जहां जून 2024 में बीजेपी ने 10 लोकसभा सीटों में से सिर्फ पांच सीटें जीती थीं, अक्टूबर में भाजपा ने वापसी की और 90 सीटों वाली विधानसभा में 48 सीटें जीतीं। फिर नवंबर में, भाजपा ने अपने दम पर 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में 132 सीटें जीतीं जबकि उसके महायुति गठबंधन ने 235 सीटों पर जीत हासिल की। फरवरी 2025 में, भाजपा 27 सालों में पहली बार दिल्ली में सत्ता में लौटी और 70 सीटों वाली विधानसभा में 48 सीटें जीतीं। इसके साथ ही पार्टी ने दिल्ली में आप के एक दशक के शासन का अंत किया।

भाजपा हालांकि, जम्मू -कश्मीर में विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाई लेकिन जम्मू में वह प्रभावी रही और उसने 29 सीटें जीतीं जबकि कांग्रेस को 6 सीटें मिलीं। वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस 42 सीटें जीतकर सत्ता में आई। भाजपा को एकमात्र महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव पिछले साल अक्टूबर में झारखंड में ही हार का सामना करना पड़ा था। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 81 में से 31 सीटें जीतीं और कांग्रेस के साथ गठबंधन करके सरकार में वापस आ गई जिसने 16 सीटें जीतीं। भाजपा को 21 सीटें मिलीं।

पिछले साल विधानसभा चुनावों में भाजपा की सफलताएं राजनीति पर कड़ा नियंत्रण रखने और विपक्ष को बार-बार बैकफुट पर धकेलने की उसकी क्षमता के कारण आई हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण ऑपरेशन सिंदूर है, जिसके सहारे भाजपा अब पूरे देश में राष्ट्रवाद की लहर चला रही है। सैन्य सफलताओं से इतर, मोदी सरकार ने विपक्ष, खासकर कांग्रेस को बैकफुट पर धकेलने के लिए ऑपरेशन का लाभ उठाया है।

इसके उलट कांग्रेस के हालिया हमले सरकार पर केंद्रित रहे हैं, पार्टी का कहना है कि केंद्र सरकार अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे झुकते हुए युद्ध विराम पर सहमत हो गई। लेकिन, यह बात राष्ट्रीय स्तर पर व्याप्त व्यापक सहमति के विपरीत है जो ऑपरेशन सिंदूर को एक शानदार सफलता के रूप में देखती है। कांग्रेस के शशि थरूर और सलमान खुर्शीद, डीएमके की के कनिमोझी और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी सहित कई विपक्षी नेताओं ने भी इस बात को दोहराया है और सरकार की कार्रवाइयों को समझाने और उनका बचाव करने के लिए विदेश भेजे गए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा रहे हैं।

2024 के चुनावों के बाद, ऐसी धारणा थी कि मोदी 3.0 पिछली दो सरकारों की तुलना में ज़्यादा अस्थिर होगी। सरकार के अब तक के कामों से यह साबित होता है कि यह बात सच से कोसों दूर है। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि मोदी 3.0 ने अपनी मूल परियोजनाओं पर काम करना जारी रखा है जैसा कि उसने अपने पहले और दूसरे कार्यकाल में किया था।

अप्रैल में संसद ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पारित किया। यह कानून फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में चुनौती के अधीन है। साथ ही लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के मामले में भी प्रगति हुई और दो महत्वपूर्ण विधेयक भी पेश किए गए।इसके अलावा, अगली जनगणना में जाति की गणना करने का अप्रत्याशित फैसला करके सरकार ने कांग्रेस और राहुल गांधी पर पलटवार किया है, जो करीब दो साल तक इस मामले पर बीजेपी पर हमलावर रही है।

ऐसे में मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का एक साल पूरा होने पर, जहां पिछले दो कार्यकालों की तरह बीजेपी एक मजबूत सरकार के रूप में सामने आई है वहीं, कांग्रेस अभी भी अपनी स्थिति मजबूत नहीं कर पाई है।