अहमदाबाद से लंदन जा रही एअर इंडिया की फ्लाइट गुरुवार को उड़ान भरने के कुछ समय बाद ही एक मेडकल कॉलेज की बिल्डिंग से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। इस हादसे में प्लेन में सवार 242 में से 241 लोगों की मौत हो गयी वहीं, कॉलेज परिसर में मौजूद कई लोगों ने भी जान गंवाई। इस सबके बीच मैंगलौर एयर पोर्ट पर एअर इंडिया एक्सप्रेस की उड़ान संख्या IX 812 के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद हादसे में जीवित बचे के प्रदीप 15 साल बाद आज भी उस दिन को याद कर कांप जाते हैं।

जैसे ही 39 साल के जोएल प्रताप डिसूजा ने अहमदाबाद में 12 जून को हुए विमान हादसे की खबर पढ़ी , उन्हें 22 मई 2010 को एअर इंडिया एक्सप्रेस की उड़ान IX 812 की 23वीं पंक्ति की बीच वाली सीट याद आ गई। 15 साल से पहले, दुबई से उड़ान भरने वाला एअर इंडिया एक्सप्रेस का विमान IX 812 मैंगलोर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के रनवे से फिसल कर चट्टान से गिर गया था और आग की लपटों में घिर गया था। उस दिन विमान में सवार 166 लोगों में से 158 की मौत हो गई थी जिनमें 6 क्रू मेंबर भी शामिल थे। मंगलुरु के रहने वाले डिसूजा उन आठ लोगों में से एक थे जो बच गए थे।

अब ठेकेदार के रूप में काम कर रहे प्रदीप हर साल 22 मई को कुलूर में दुर्घटना स्मारक पर जाते हैं, पट्टिका पर फूल चढ़ाते हैं, हादसे में जान गंवाने वाले लोगों के लिए मौन रखते हैं और प्रार्थना करते हैं। प्रदीप ने बोइंग 737 विमान के खाई में गिरने के उस भयावह क्षण को याद करते हुए ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “यह मेरे माता-पिता द्वारा किए गए दान और उनके आशीर्वाद का परिणाम था जिसने मुझे बचाया।” दुबई में रहने वाले डिसूजा ने इंडियन एक्सप्रेस को फोन पर बताया, “मुझे याद है कि लैंडिंग के समय दुर्घटना हुई थी। दुर्घटना की वजह से विमान की बॉडी में दरार आ गई थी। मुझे याद है कि मैं सीटबेल्ट से जूझ रहा था लेकिन मैं इसे हटाने में कामयाब रहा और जलते हुए विमान से बाहर निकल गया।

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वह कहते हैं कि उनका शरीर उन्हें उस घटना को भूलने नहीं देता। डिसूजा कहते हैं, “मैं जो भी कदम उठाता हूँ, वह मुझे उस दिन की याद दिलाता है। मैं दूसरों की तरह दौड़ नहीं सकता या भारी सामान नहीं उठा सकता। दुर्घटना के कारण मैं चिंता और बुरे सपनों से भी ग्रस्त हूँ। अहमदाबाद दुर्घटना की खबर ने उन्हें और भी बदतर बना दिया है। दुर्घटना के बाद की पहली यात्रा को भूल जाइए, मैं आज भी अकेले यात्रा नहीं करता। जब भी विमान उतरना शुरू करता है, मुझे घबराहट के दौरे पड़ते हैं। मुझे नहीं लगता कि मैं इस जीवन में इस डर पर काबू पा पाऊंगा।”

डिसूजा की तरह, 62 वर्षीय कूलिक्कुन्नु कृष्णन भी 2010 के मैंगलोर विमान दुर्घटना में जीवित बचे लोगों में से एक थे। वह बताते हैं, “मैं 17वीं पंक्ति में था, बाएं पंख के पास। विमान उतरा लेकिन फिर वह हिलने और डगमगाने लगा। जैसे ही मुझे लगा कि मौत निश्चित है, मैंने विमान की छत की ओर देखा। धड़ में एक दरार से रोशनी की एक किरण अंदर आ रही थी।” उन्होंने कहा कि धड़ में आई उस दरार के कारण उनका “दूसरा जन्म” हुआ। कृष्णन कहते हैं, “मुझे कई हफ़्तों तक नींद नहीं आई। बस में बैठने के ख़याल से भी मैं डर जाता था। घटना के बाद कई महीनों तक मैंने घर से बाहर निकलने से मना कर दिया। आख़िरकार, मुझे अपने डर पर काबू पाने के लिए काउंसलिंग की ज़रूरत पड़ी।”

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हादसे में जीवित बचे कन्नूर के केपी मयंकट्टी कहते हैं, “वह सीट नंबर 22-F हमेशा के लिए मेरे दिमाग में बस गया है।” दुर्घटना के छह महीने बाद तक मयंकट्टी ने उड़ान भरने से इनकार कर दिया। उन्होंने दुबई में अपने नियोक्ता से कहा कि मैं वापस नहीं आ रहा हूँ। वे कहते हैं, “सभी आवाज़ों से मैं डर जाता था मशीन, इंजन यहां तक कि ब्लेंडर भी। दुर्घटना के बाद से, मेरी पत्नी हमेशा मेरे साथ उड़ान भरती है। हमने इस महीने दुबई में अपने बेटे से मिलने की योजना बनाई थी। अहमदाबाद त्रासदी के बारे में पढ़ने के बाद मैंने इसे स्थगित कर दिया है।”

मैंगलौर दुर्घटना की जांच करने वाले डीजीसीए ने मुख्य रूप से मानवीय भूल को इसका कारण बताया था और जांच में पाया गया कि विमान 8,000 फुट लंबे रनवे पर लगभग 5,200 फुट की दूरी पर नीचे उतरा था, जिससे विमान को रुकने के लिए पर्याप्त दूरी नहीं मिली। सह-पायलट की बार-बार चेतावनी और ‘एन्हांस्ड ग्राउंड प्रॉक्सिमिटी वार्निंग सिस्टम’ (ईजीपीडब्ल्यूएस) के सतर्क किये जाने के बावजूद कैप्टन ने अनुचित तरीके से उड़ान जारी रखी। जांचकर्ताओं ने यह भी खुलासा किया कि विमान का कमांडर उड़ान के एक हिस्से के दौरान सो रहा था। पढ़ें- Ahmedabad Plane Crash: DNA मैच करने में आ रही यह दिक्कत