जारवा अंडमान-द्वीप समूह की प्रमुख जनजाति है। इस जनजाति के लोग आज भी आदिम जीवन जी रहे हैं। प्राकृतिक रूप में उपलब्ध वन-संसाधन ही इनकी आजीविका के प्रमुख साधन हैं। स्थानीय प्रकृति और पर्यावरण से जुड़े रह कर ये अपना जीवन जीते हैं। जारवा लोग बाहरी संपर्क से अलग-थलग हैं। इसी कारण उनकी अनूठी सांस्कृतिक परंपरा और भाषा-बोली संरक्षित हैं। वे दक्षिणी और मध्य अंडमान द्वीप समूह के पश्चिमी समुद्री तटों पर रहते हैं। स्थानीय प्रशासन के प्रयासों के बाद अब इस जनजाति समूह को संवैधानिक लोकतांत्रिक धारा से जोड़े जाने की ऐतिहासिक पहल हुई है। इस समुदाय के उन्नीस सदस्यों के नाम मतदाता सूची में दर्ज कर, उन्हें मतदाता पहचान-पत्र दिए गए हैं। अंडमान द्वीप समूह के मुख्य सचिव ने दक्षिण अंडमान जिले के जिरकाटांग स्थित बस्ती में पहुंच कर पहली बार मतदाता बने लोगों को पहचान-पत्र सौंपे।जारवा समुदाय को दिए गए पहचान-पत्रों से उनकी नागरिकता सुनिश्चित हुई है। साथ ही यह उनकी निजता की रक्षा के लिए एक व्यापक उपाय भी है। इस पहल से उम्मीद जगी है कि भविष्य में इस द्वीप समूह के सभी लोग देश के नागरिक के रूप में मतदाता बना दिए जाएंगे। वरना एक समय इस द्वीप समूह में प्रवेश पाना भी जोखिम को आमंत्रण देने जैसा था।

यहां के जिला निर्वाचन अधिकारी के मुताबिक ‘यह भारत के लोकतांत्रिक विकास में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, जो सभी नागरिकों के लिए समावेशिता और समानता सुनिश्चित करने की दृष्टि से देश की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। इनके सांस्कृतिक संरक्षण के बीच सावधानी पूर्वक संतुलन में हमने सुनिश्चित किया कि प्रक्रिया का कोई भी पहलू जारवा लोगों की गरिमा से समझौता नहीं करेगा।’ इस कार्यवाही को पूरी करने में अंडमान आदिम जनजाति विकास समिति की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही, जिसने सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त और सम्मानजनक तरीके से उनकी भाषा में चुनावी प्रक्रिया के बारे में जारवा समुदाय से संवाद कर उनके बीच जागरूकता पैदा करके इस प्रक्रिया को सुगम बनाया।

बढ़ती खपत के बीच ऊर्जा की फिक्र, 40 साल से ज्यादा नहीं चल पाएगा भंडार

जारवा समुदाय के लोग अंडमान द्वीप समूह के दक्षिण और मध्य तथा पश्चिमी समुद्री तटों पर रहते हैं। यह पूरा क्षेत्र जैव विविधता से समृद्ध है। इसे इस समुदाय ने अपनी पारंपरिक जीवन-शैली के अनुरूप ढाल लिया है। इस समुदाय के साथ पहला दोस्ताना संबंध अप्रैल 1996 में हुआ था, जो बाहरी दुनिया के साथ उनके संपर्क में एक अहम मोड़ साबित हुआ। ऐसा प्रतीत होता है कि इस संबंध के लिए शायद प्रकृति ने ही घटनाक्रम रचा था। दरअसल, जारवा जनजाति के इक्कीस वर्षीय एनमेई को अपने बाएं टखने में गहरी चोट आई थी। प्रशासन ने करुणा और सदाशयता का परिचय देते हुए एनमेई का उदारतापूर्वक उपचार कराया और ठीक होने के बाद उसे सुरक्षित उसकी बस्ती में वापस भेज दिया। यहां से प्रशासन और समुदाय के बीच विश्वास का जो संवाद बना, उसने इस समुदाय के लोगों के भारतीय नागरिक होने के पहचान के रूप में मतदाता पहचान-पत्र सौंपने का मार्ग प्रशस्त किया। अन्यथा जारवा समूह से जो भी कोई संपर्क करने की सोचता था, उसे हिंसक टकराव का सामना करना पड़ता रहा है।

दरअसल, जो लोग स्वयं को सभ्य और आधुनिक समाज का हिस्सा मानते रहे हैं, वही लोग प्राकृतिक अवस्था में रह रहे इन लोगों को इंसान मानने की बजाय लगभग जंगली जानवर मानते रहे हैं। आधुनिक कहे जाने वाले समाज की यह एक ऐसी विडंबना है, जो सभ्यता के दायरे में कतई नहीं आती। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में रह रहे लुप्तप्राय जारवा जनजाति की महिलाओं को स्वादिष्ट भोजन का लालच देकर सैलानियों के सामने नचाने के कुछ साल पहले के दृश्य ब्रिटिश अखबारों में सिलसिलेवार छपे थे। इन्हें शासन-प्रशासन के स्तर पर झुठलाने की कोशिश की गई थी।

अंतरिक्ष से लेकर अर्थव्यवस्था तक बज रहा भारत का डंका, विकास के सपने और दावे की हकीकत

मगर यह हकीकत थी। अभयारण्य में दुर्लभ वन्य जीवों को देखने की मंशा की तरह, दुर्लभ मानव प्रजातियों को भी देखने की इच्छा नवधनाढ्यों और रसूखदारों में पनप रही है और जिस सरकारी तंत्र को आदिवासियों की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था, वही इन्हें लालच देकर नचवाने का काम कर रहा था। इसी कुत्सित मानसिकता के कारण कुछ लोग जारवा को इंसान के बजाय, मनोरंजक खिलौने मानते रहे हैं। लंदन के अखबार ‘आब्जर्वर’ ने मोबाइल फोन से जारवा जनजाति की फिल्माई गईं दो फिल्में जारी की थीं। इनका फिल्मांकन गोपनीय ढंग से इसी अखबार के पत्रकार ने किया था।

आधुनिक विकास और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए वन कानूनों में लगातार हो रहे बदलावों के कारण अंडमान में ही नहीं, देश भर की जनजातियों की संख्या लगातार घट रही है। आहार और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों की कमी होती जा रही है। इन्हीं वजहों से अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में अलग-अलग दुर्गम टापुओं पर जंगलों में समूह बना कर रहने वाली जनजातियों का अन्य समुदायों और प्रशासन से बहुत सीमित संपर्क है। इससे इनकी संख्या घट कर महज 381 रह गई है। एक अन्य टापू पर रहने वाले ‘ग्रेट अंडमानी’ जनजाति के लोगों की आबादी केवल 97 के करीब है।

तुर्की के प्रभाव से सीरिया में हुआ सत्ता परिवर्तन, शिया-सुन्नी को लेकर बढ़ सकता है संघर्ष

इन लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी कम होती है कि ये एक बार बीमार हुए, तो इनका बचना नामुमकिन हो जाता है। एक तय परिवेश में रहने के कारण इन आदिवासियों की त्वचा बेहद संवेदनशील हो गई है। लिहाजा, यदि ये बाहरी लोगों के संपर्क में लंबे समय तक रहते हैं, तो ये रोगी हो जाते हैं और उपचार के अभाव में दम तोड़ देते हैं। हालांकि अब इनकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए टीकाकरण करने और पौष्टिक खुराक देने के उपाय निरंतर किए जा रहे हैं। मतदान का अधिकार मिल जाने से तय है, यहां लोकतांत्रिक गतिविधियां भी कालांतर में बढ़ेंगी।

करीब दो दशक पहले तक ये लोग पूरी तरह निर्वस्त्र रहते थे, लेकिन सरकारी कोशिशों और इनकी बोली के जानकार दुभाषियों के माध्यम से समझाने पर इन्होंने थोड़े-बहुत कपडे पहनने अथवा पत्ते लपेटने शुरू कर दिए हैं। भारत की सांस्कृतिक विविधता एक अनूठी खूबसूरती है। यहां विभिन्न आदिवासी समुदायों को अपने पुरातन और सनातन परिवेश में रहने की स्वतंत्रता हासिल है। हमारे देश के सांस्कृतिक परिवेश में नग्नता कभी अश्लीलता का पर्याय नहीं रही।

यूरोप में 74 तो अमेरिका में 88 फीसदी कर्मचारी अपने काम से खुश, भारत में परिस्थिति विपरीत, कर्मियों पर बढ़ता जा रहा प्रेशर

पाश्चात्य मूल्यों और भौतिकवादी आधुनिकता ने ही प्राकृतिक एवं स्वाभाविक नग्नता को दमित काम-वासना की पृष्ठभूमि में रेखांकित किया है। वरना हमारे यहां तो खजुराहो, कोणार्क और कामसूत्र जैसी नितांत और मौलिक रचनाधर्मिता से स्पष्ट होता है कि एक राष्ट्र के सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य में हम कितनी व्यापक मानसिक दृष्टि से परिपक्व लोग थे। अब वहां लोगों को जो मत का अधिकार मिला है, उसके तहत ये अन्य समुदायों में सम्मिलित होंगे। इनका आवागमन भी बढ़ेगा। संपर्क की इस निरंतरता से न केवल इनकी भाषा और बोली में बदलाव आएगा, बल्कि इनकी प्रतिरोधात्मक क्षमता भी बढ़ेगी। ये बीमार होने पर अस्पतालों में अपना उपचार भी शुरू करा सकेंगे। इससे भविष्य में इनकी संख्या जो स्थिर बनी हुई है या घट रही है, उसके बढ़ने की भी उम्मीद की जा सकती है।