उत्तर भारत के कई राज्यों में कांग्रेस दशकों से सत्ता में नहीं आई है। इन राज्यों में बिहार भी शामिल है, जहां पर कांग्रेस आखिरी बार अपने दम पर 1985 में सत्ता में आई थी। तब बिहार और झारखंड एक ही राज्य थे और कुल 324 विधानसभा सीटें थी। 1985 के चुनाव में कांग्रेस ने 196 सीटें जीती थी और सरकार बनाई थी। हालांकि 1985 से 1990 के बीच में कांग्रेस को तीन बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े। यानी 4 मुख्यमंत्री हुए।
इसके बाद 1990 में विधानसभा चुनाव हुए और लालू यादव जनता दल के नेता थे। इस चुनाव में जनता दल को 122 सीटों पर जीत हासिल हुई। वहीं कांग्रेस को महज 71 सीटों पर जीत मिली। इसके अलावा झारखंड मुक्ति मोर्चा को 19, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को 23, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (M) को 6, जनता पार्टी को 3, सोशलिस्ट पार्टी को एक सीट पर जीत मिली। वहीं 30 निर्दलीय भी चुनाव जीते थे। जनता दल की वामपंथी दलों और निर्दलीयों के सहारे सरकार बन गई। इसके बाद मुख्यमंत्री पद के लिए जनता दल के अंदर वोटिंग हुई और लालू यादव इसमें विजयी हुए। इसके बाद लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने और कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल बनी। अब जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई, उसके बाद अपने दम पर सत्ता में कभी नहीं लौटी।
1995 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से जनता दल की सरकार बनी और पार्टी ने बहुमत हासिल कर लिया। लालू यादव फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बने। हालांकि 1997 में चारा घोटाला का आरोप लगने के बाद जनता दल में टूट हुई और लालू यादव ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नाम से एक अलग पार्टी बना ली। लालू यादव को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा लेकिन राबड़ी देवी को उन्होंने बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया। जब लालू यादव जनता दल छोड़ कर आए थे, तब उनके साथ 136 विधायकों का समर्थन था और कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के समर्थन से उन्होंने बिहार में आरजेडी की सरकार बना ली। यहां पर कांग्रेस सत्ता में तो आई लेकिन इस बार लालू बिहार के नेता थे और कांग्रेस अब कमजोर हो चुकी थी। जो कांग्रेस 1990 तक अकेले दम पर बिहार की सत्ता में थी, वही कांग्रेस 5 साल बाद ही 28 सीटों पर सिमट चुकी थी।
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वर्ष 2000 में विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस की सीटों की संख्या गिरकर 23 पर आ गई। यानी कांग्रेस का ग्राफ बिहार में पहले की अपेक्षा और कमजोर हो चुका था। इस बार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने लेकिन महज 7 दिन के लिए। 7 दिन बाद फिर से गठबंधन में दरार पड़ती है और राबड़ी देवी एक बार फिर से बिहार की मुख्यमंत्री बन जाती हैं। यह सरकार करीब 5 साल तक चल जाती है।
हालांकि 2005 का विधानसभा चुनाव कई मायनों में अलग हो गया था। अलग राजनीतिक समीकरण तो बन ही गए थे और सीटों की संख्या भी कम हो गई थी, क्योंकि झारखंड अलग राज्य बन चुका था। 2005 विधानसभा चुनाव में बिहार में कुल 243 सीटें हो गई थी।
2005 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस की करारी हार होती है। नीतीश कुमार की जेडीयू 88 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनती है जबकि भाजपा की 55 सीटें आती हैं। दोनों मिलकर सरकार बनाते हैं। कांग्रेस ने इस चुनाव में आरजेडी के साथ गठबंधन में 51 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे महज 9 सीटों पर जीत मिली थी।
अब आप अंदाजा लगाइए कि जो कांग्रेस 15 साल पहले अकेले दम पर सत्ता में थी, वह महज 9 सीटों पर सिमट गई थी। यानी 1990 तक कांग्रेस के पास बिहार में 196 विधायक थे और 2005 में 9 विधायक हो गए।
2010 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी महज चार सीटों पर सिमट गई। उसने लालू यादव की आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था हालांकि दोनों की करारी हार हुई। 2010 के विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन को 206 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, जबकि आरजेडी को 22 और कांग्रेस को महज 4 सीट मिली थी।
2015 के विधानसभा चुनाव में केंद्र में मोदी की सरकार बन चुकी थी और बिहार में नया समीकरण बन चुका था। नीतीश कुमार और लालू यादव एक साथ हो गए थे और कांग्रेस भी साथ में ही थी। इस विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू यादव की पार्टी 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ी। जबकि कांग्रेस को 42 सीटों दी गई। इन 42 सीटों में से कांग्रेस ने 24 पर जीत हासिल की। यानी लंबे समय बाद कांग्रेस ने दहाई का आंकड़ा पार किया था। कांग्रेस को मंत्री पद भी मिला।
2020 आते-आते बिहार की राजनीति में बहुत कुछ बदल गया था। नीतीश कुमार 2017 में ही एक बार फिर से बीजेपी के साथ चले गए थे और इस बार फिर से मुकाबला एनडीए बनाम महागठबंधन का था। एनडीए में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और बीजेपी शामिल थी। जबकि महागठबंधन में आरजेडी और कांग्रेस मुख्य पार्टी थी। महागठबंधन में कांग्रेस को 70 सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिली और पार्टी को महज 19 सीटों पर जीत हासिल हुई। महागठबंधन में सबसे कम स्ट्राइक रेट कांग्रेस का ही था।
लालू यादव अपने बेटे तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनते हुए देखना चाहते थे। हालांकि इस चुनाव में काफी करीबी मुकाबले में महागठबंधन की हार हुई थी। माना जाता है कि अगर कांग्रेस का स्ट्राइक रेट थोड़ा बेहतर होता और 5-7 सीट और जीत जाती तो बिहार में तेजस्वी के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार होती है।
इस प्रकार से 1990 से कांग्रेस का ग्राफ बिहार में लगातार गिरता रहा और आरजेडी उठती गई। 1990 के बाद कांग्रेस बिहार में कभी भी अपने दम पर सत्ता में नहीं आई।