कांग्रेस को पिछले 4 महीनों में हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। लगातार हार के बाद कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने अब बिहार पर फोकस किया है। बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी पिछले कुछ हफ्तों में दो बार बिहार गए हैं लेकिन पार्टी के लिए चिंता की बात यह है कि राज्य में पार्टी का सांगठनिक ढांचा बेहद कमजोर है।
बिहार में कांग्रेस को राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेतृत्व वाले महागठबंधन और अन्य दलों के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरना है।
भले ही कांग्रेस बिहार में मजबूती से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हो लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 2017 से अब तक बिहार में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कार्यकारी समिति का गठन तक नहीं हो पाया है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने दिसंबर, 2022 में अखिलेश प्रसाद सिंह को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था।
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कांग्रेस के कई सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि बिहार में पिछले 8 साल से प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कार्यकारी समिति नहीं बनी है। बिहार से आने वाले एक कांग्रेस नेता ने कहा कि इसके पीछे क्या वजह है, वह यह नहीं बता सकते।
बिहार कांग्रेस के एक और नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उन्होंने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक यह बात पहुंचाई थी कि राज्य में प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कार्यकारी समिति नहीं है लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने शीर्ष नेतृत्व से यह भी कहा था कि अगर हमें विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करना है तो बिहार में पार्टी के संगठन को मजबूत करना होगा।
कांग्रेस नेता ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि चुनाव से पहले पार्टी कार्यकारी समिति का गठन करेगी। इसके अलावा राज्य के कुछ जिलों में जिला कांग्रेस समितियों का भी गठन नहीं हुआ है। इस बारे में बिहार कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष बृजेश पांडे ने कहा कि बिहार कांग्रेस कमेटी की कार्यकारी समिति का गठन जल्द ही किया जाएगा।
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बिहार में कांग्रेस काफी हद तक आरजेडी पर निर्भर है और पिछले कई चुनाव में राज्य में पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा है। पिछले दो लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और अन्य दलों का प्रदर्शन कैसा रहा, इस पर नजर डालते हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बिहार में महागठबंधन के साथ मिलकर 9 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन उसे सिर्फ एक सीट पर जीत मिली थी। 2019 में बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी (अविभाजित) के गठबंधन ने बड़ी जीत दर्ज करते हुए बिहार की 40 में से 39 सीटें जीत ली थी।
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2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महागठबंधन में लड़ते हुए 70 सीटें मिली थी लेकिन वह सिर्फ 19 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई थी। जबकि आरजेडी ने 144 सीटों पर लड़कर 75 सीटें जीती थी। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट काफी कम रहा था और इसके लिए उसे महागठबंधन में शामिल दलों की ओर से ही तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा था। कहा गया था कि इस वजह से महागठबंधन राज्य में सरकार नहीं बना पाया।
2024 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के पार्टनर के रूप में चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस ने 9 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और इसमें से तीन सीटें जीती जबकि आरजेडी ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा और चार सीटों पर जीत दर्ज की। महागठबंधन के सहयोगी सीपीआई (एमएल) लिबरेशन ने तीन सीटों पर चुनाव लड़कर 2 सीटों पर जीत दर्ज की। एनडीए को 30 सीटों पर जीत मिली थी
कांग्रेस की तैयारियों को देखकर साफ लगता है कि वह बिहार में आरजेडी के साथ ‘सम्मानजनक’ गठबंधन चाहती है और वह इस दिशा में अपने संगठन को मजबूत करने का काम कर रही है।
इस बीच, कुछ नेता बिहार में पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते हैं। सूत्रों के अनुसार, बिहार में कई नेता कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व पर इस बात के लिए दबाव बना रहे हैं कि अखिलेश प्रसाद सिंह की जगह ओबीसी, दलित या अल्पसंख्यक समुदाय से किसी चेहरे को आगे लाया जाए। अखिलेश प्रसाद सिंह सवर्ण समुदाय में भूमिहार समुदाय से आते हैं। बिहार कांग्रेस के कुछ नेताओं का कहना है कि उनकी लालू प्रसाद यादव से काफी ‘नजदीकी’ है।
अखिलेश प्रसाद सिंह कांग्रेस में आने से पहले आरजेडी में थे और पार्टी के टिकट पर विधायक के अलावा राबड़ी देवी की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। जब वह कांग्रेस में आए तो यूपीए की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे। बिहार कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि लालू प्रसाद यादव के परिवार से ‘नजदीकी’ के कारण अखिलेश प्रसाद पर भरोसा कम है।
कांग्रेस और महागठबंधन के सहयोगियों के लिए चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी चिंता की वजह बनी हुई है। पिछले साल नवंबर में जब चार विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुआ था तो एनडीए ने सभी चारों सीटें जीत ली थी। तब यह माना गया था कि जन सुराज पार्टी ने दो सीटों पर आरजेडी को नुकसान पहुंचाया है। प्रशांत किशोर दलित और मुस्लिम समुदाय पर फोकस कर रहे हैं और इन दोनों ही समुदायों को महागठबंधन का वोट बैंक माना जाता है।
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