बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर गहमागहमी जारी है। इस वर्ष के अक्तूबर-नवंबर में होने वाले चुनाव में यहां विपक्षी इंडिया गठबंधन (राजद, कांग्रेस, भाकपा, माकपा, भाकपा (माले) और वीआइपी) की सीधी सियासी लड़ाई सत्ताधारी राजग (जदयू, भाजपा, लोजपा (रा), हम और रालोमो) से प्रतीत हो रही है। कहा जा रहा है कि बिहार में विपक्ष के संघर्ष की दिशा हकीकत से दूर और फसाने के करीब दिख रही है। अभी वक्त है। सो, दिशा में बदलाव भी संभव है।
बिहार विधानसभा में इंडिया गठबंधन के प्रमुख घटक राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के 77 विधायक हैं। अपने अनूठी संवाद शैली के लिए पहचाने जाने वाले लालू प्रसाद की पार्टी इस बार राज्य में 155-165 सीट पर चुनाव लड़ सकती है। इसकी तैयारियां जोरों पर चल रही है। शायद यही वजह है कि पार्टी ने अति पिछड़ी जाति के वरिष्ठ नेता मंगनी लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है। जानकार बताते हैं कि राजद की इस तैयारी की काट के लिए राजग भी धरातल पर डटी हुई है।
बताते हैं कि राजद जिन मुद्दों के सहारे मैदान में उतरने की तैयारी में है, वह हकीकत से परे है। जबकि भाजपा अलग रणनीति पर काम कर रही है। हालांकि इस बारे में राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रोफेसर नवल किशोर कहते हैं पार्टी का अभियान आमजन से जुड़ना और मतदान के लिए तैयार करना है। इसके लिए राजद के कार्यकर्ता बूथ स्तर तक लगातार काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी की रणनीति अभेद्य है। इसे समझना अन्य दलों के वश की बात नहीं।
इंडिया गठबंधन की दूसरी मुख्य घटक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस है। बिहार में कांग्रेस के 19 विधायक हैं। यह वही कांग्रेस है, जिसका 90 के दशक से पूर्व बिहार में एकछत्र राज हुआ करता था। परिस्थितियां बदलीं और इसका जनाधार सिमटता चला गया। आज इसकी सियासी कहानी बदल चुकी है। स्थिति यह है कि राज्य में बिना राजद के कांग्रेस के अस्तित्व पर संकट सा दिखने लगता है। हालांकि हाल के दिनों में पार्टी ने कुछ प्रयोग किए हैं, लेकिन आत्मविश्वास अब भी कम ही है।
RJD में अनुसूचित जाति के इतने कम चेहरे क्यों? जानिए 1995 के बाद कैसे बदली लालू यादव की ‘दलित पॉलिटिक्स’
बिहार में अन्य अभियानों के अलावा कांग्रेस माई-बहिन मान योजना पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। इसके तहत पार्टी के कार्यकर्ता घर-घर जाकर महिलाओं से प्रपत्र भरवा रहे हैं। पार्टी को भरोसा है कि प्रपत्र भरने वाली महिलाएं उन्हें वोट देंगी। राजनीति को समझने वाले कहते हैं कि बदले हालात में आक्रामकता जरूरी है। जो कांग्रेस के अभियान में नहीं दिख रहा। हालांकि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विधायक राजेश कुमार कहना है कि परिणाम इस बार अप्रत्याशित होगा। कहते हैं कि केंद्रीय नेतृत्व के मार्गदर्शन में स्थानीय कार्यकर्ताओं की मेहनत रंग लाएगी।
अब बात बिहार में इंडिया गठबंधन के घटक वाम दलों की। यहां भाकपा (माले) के 11 तथा भाकपा व माकपा के दो-दो विधायक विधानसभा में हैं। इस प्रकार वाम दलों के पास कुल 15 विधायक हुए। यहां भाकपा (माले) बिहार में जनाधार की बदौलत अपनी आक्रामकता के लिए पहचानी जाती है। हालांकि पूरे बिहार में उसका असर नहीं है, लेकिन जहां भी मौजूदगी है, वहां ठीक-ठाक है। पार्टी को विस्तार देने के लिए संगठन में लगातार काम चल रहा है। भाकपा (माले) के दरौली (सीवान) विधायक सत्यदेव राम कहते हैं इस बार प्रदर्शन पहले से बेहतर होगा।
वहीं दूसरी तरफ भाकपा और माकपा के नेता भी अपनी समृद्धशाली सियासी अतीत की ओर लौटने की कोशिश में हैं। माकपा के महासचिव एमए बेबी का कहना है कि बिहार में इंडिया गठबंधन का प्राथमिक उद्देश्य चुनाव में सामूहिक रूप से लड़ना और भाजपा नीत राजग को हराना है। इसी क्रम में भाकपा के राष्ट्रीय महासचिव डी राजा भी मंगलवार को पटना पहुंचे। यहां पार्टी की दो दिवसीय कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेकर वे चुनावी तैयारियों की समीक्षा करेंगे। बताते हैं कि भाकपा और माकपा के हौसले इस बार पहले से अधिक बुलंद हैं।
अब बात इंडिया गठबंधन की घटक विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) की। वीआइपी के मुखिया मुकेश सहनी हैं। पिछले चुनाव में उनकी पार्टी के तीन विधायक चुने गए थे। अफसोस कि तीनों ने उनका साथ छोड़ दिया। फिलहाल वीआइपी के एक भी सदस्य विधानसभा में नहीं हैं। हालांकि तैयारियां जबर्दस्त है। अपनी तैयारियों के बल पर मुकेश सहनी इस बार साठ सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं। हालांकि उन्हें पता है कि इतनी सीटें नहीं मिलेंगी। फिर भी मुंह खोलने में क्या दिक्कत है। बताते हैं कि मुकेश सहनी इंडिया गठबंधन के कमजोर कड़ी हैं।
वीआइपी प्रमुख मुकेश सहनी का कहना है कि पूरे राज्य में उनके कार्यकर्ता चुनाव की तैयारी में जुटे हैं। इसके लिए राजनीति के विशेषज्ञ लोगों से मंत्रणा के उपरांत राज्य के अधिकांश सीटों पर पार्टी तैयारी कर रही है। उनका कहना है कि इस बार के चुनाव के बाद बिहार में इंडिया गठबंधन की सरकार बनेगी। हालांकि राजनीति के जानकार बताते हैं आधार मजबूत किए बगैर ही साठ सीटों पर वीआइपी का दावा यह स्पष्ट करता है कि पार्टी हकीकत से दूर फसाने पर ज्यादा भरोसा कर रही है। (जनसत्ता के लिए राजीव रंजन तिवारी की रिपोर्ट)
‘बिहार के गब्बर सिंह हैं लालू यादव’, जानिए सम्राट चौधरी ने अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘दीवार’ का जिक्र क्यों किया