बिहार की राजनीति लंबे समय से गठबंधन के इर्द गिर्द रही है। पिछले 20 सालों से नीतीश कुमार गठबंधन की सरकार चला रहे हैं, हालांकि इससे पहले भी गठबंधन की कई सरकारें बन चुकी हैं। लालू यादव जब बिहार के मुख्यमंत्री बने थे तब भी गठबंधन की सरकार बनी थी। गठबंधन की ही राजनीति थी कि एक दूसरे के धुर विरोधी माने जाने वाले लालू और नीतीश 2015 के चुनाव में साथ आए थे। लेकिन आज बात उस चुनाव की जिसमें रामविलास पासवान किंग मेकर बनने की भूमिका में थे और उनके एक दांव ने लालू यादव को उनकी पार्टी को बिहार की सत्ता से बेदखल कर दिया।
साल था 2005, राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री थी। फरवरी-मार्च में हुए बिहार विधानसभा चुनाव ने जहां एक तरफ सभी राजनीतिक पंडितों को चुप करा दिया, तो वहीं चौथी बार सत्ता का ख्वाब देख रही राजद सत्ता से दूर रह गई। इस चुनाव परिणाम में सत्तारूढ़ पार्टी राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर जरूर उभरी थी लेकिन सरकार बनाने से काफी दूर रह गई थी। वहीं तत्कालीन विपक्ष एनडीए गठबंधन था वो भी सत्ता से काफी दूर थी। दरअसल इस चुनाव परिणाम में लोक जनशक्ति पार्टी किंग मेकर बनकर उभरी थी, क्योंकि एलजेपी की स्थिति ऐसी थी कि जिस गठबंधन के साथ वो जाएगी सरकार भी उसी की बनेगी।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और एलजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविलास पासवान का कद बिहार ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में भी बहुत बड़ा रहा है। इसका आकलन महज एक चुनाव परिणाम से ही नहीं बल्कि उनके जीवन से किया जा सकता है। रामविलास एकमात्र ऐसे राजनेता रहे जिन्होंने देश के 6 प्रधानमंत्रियों के साथ केंद्रीय मत्री के रूप में काम किया। 2005 के चुनाव परिणाम में एलजेपी के खाते में 29 सीटें आई थीं। उस समय रामविलास केंद्र की यूपीए सरकार में मंत्री थे। ये चुनाव उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था, कांग्रेस के खाते में महज 10 सीटें आई थीं। जबकि राजद को 75, जेडीयू को 55 और बीजेपी के खाते में 37 सीटें आई थीं।
एक बस कंडक्टर के निलंबन की वजह से बिहार के इस मुख्यमंत्री की चली गई सरकार, लालू यादव से है सीधा कनेक्शन
इस चुनाव परिणाम के बाद किंग मेकर की भूमिका में रामविलास पासवान ने लालू प्रसाद के सामने ये शर्त रख दी कि अगर लालू प्रसाद मुसलमानों के सच्चे हितैषी हैं तो किसी मुस्लिम को राज्य की कमान सौंप दें, ऐसी स्थिति में एलजेपी उस सरकार का समर्थन करेगी। लालू यादव किसी भी हाल में सत्ता की कुर्सी अपने परिवार से बाहर नहीं जाने देना चाहते थे। ये सब राजनीतिक गतिविधि उस समय हो रही थी जिस वक्त केंद्र की यूपीए सरकार में लालू यादव और रामविलास पासवान दोनों ही मंत्री थे। लेकिन लालू यादव के खिलाफ रामविलास पूरी तरह से मोर्चा खोले हुए थे चुनाव के दौरान भी उन्होंने लालू और राजेडी की सरकार को सबसे भ्रष्ट और जंगलराज होनी का बात का खूब प्रचार प्रसार किया था।
रामविलास पासवान के एक दांव से लालू प्रसाद पूरी तरह चित हो गए। दरअसल M+Y (मुस्लिम+यादव) समीकरण के तहत लालू यादव और राबड़ी देवी ने बिहार में तीन बार सत्ता का स्वाद चखा था। ऐसे में रामविलास 2025 के चुनाव परिणाम में अपने आप को मुस्लिमों का सच्चा हितैषी दिखाने में लग गए थे। हालांकि इसका परिणाम ये रहा कि रामविलास को सत्ता नहीं मिली और लालू यादव और उनकी पार्टी आजतक बिहार में वनवास से नहीं लौट पाई है।
लालू प्रसाद की RJD ने पहले ही चुनाव में गाड़ दिया था लट्ठ, नीतीश कुमार के एक फैसले ने ‘खत्म’ होती राजद में फिर भरे प्राण
हालांकि राजद 2015 और 2022 में नीतीश सरकार का हिस्सा जरूर रही लेकिन मुख्यमंत्री का ख्वाब अधूरा ही रह गया। 2015 और 2020 के चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी (आरजेडी) होने के बावजूद लालू के बेटे तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री पद से ही संतोष करना पड़ा।
2005 के बिहार चुनाव में 29 विधायक एलजेपी के जरूर चुनकर आए थे। लेकिन उनके अधिकांश वो विधायक थे जो धनबल और बाहुबल के दम पर विधानसभा पहुंचे थे और रामविलास के मुस्लिम मुख्यमंत्री के दांव के बाद धीरे-धीरे 12 विधायक टूटने के कगार पर पहुंच गए। पार्टी को टूटता देख रामविलास ने राज्यपाल से राष्ट्रपति शासन की गुहार लगाई और फिर राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया।
ऐसा भी कहा जाता है कि अगर रामविलास लालू यादव के सामने मुस्लिम मुख्यमंत्री की शर्त नहीं रखे होते तो शायद आज का राजनीतिक परिदृश्य कुछ और ही होता। ये भी माना जाता है कि नीतीश कुमार बिहार के पूर्णकालिक मुख्यमंत्री बनते इसकी भी संभावना बहुत कम थी। ये भी माना जाता है कि रामविलास के मुस्लिम मुख्यमंत्री के शर्त को नहीं मानने का खामियाजा लालू यादव को 2005 के अक्टूबर-नवंबर और 2010 के विधानसभा चुनाव में पूरी तरह से उठाना पड़ा। राष्ट्रपति शासन के बाद हुए चुनाव के दौरान नीतीश कुमार ने मुसलमानों को अपने पाले में लाने कामयाब पाई और राज्य की सत्ता में काबिज हो गए।