Bihar Politics: साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों के बाद से पार्टी का चेहरा रहे तेजस्वी प्रसाद यादव को आरजेडी ने अपना सेनापति बना दिया है। इसी साल बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। पटना में शनिवार को राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में राजद का मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया गया।

आरजेडी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में एक प्रस्ताव भी पारित किया, जिसमें तेजस्वी को पार्टी का नाम और प्रतीक बदलने की शक्ति दी गई, जिससे वह पार्टी पदानुक्रम में अपने पिता और राजद संस्थापक लालू प्रसाद के बराबर हो गए और दोनों को पार्टी के सभी प्रमुख निर्णय लेने का अधिकार मिल गया।

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राष्ट्रीय जनता दल के नेता और प्रवक्ता सुबोध कुमार मेहता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया कि तेजस्वी जी ने पार्टी की सीटों को 2010 में 23 से पांच साल बाद 81 तक पहुंचाने और 2020 के विधानसभा चुनावों में 75 सीटें हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह उनके प्रयासों के कारण ही था कि हम पिछले दो (विधानसभा) चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे।

आरजेडी नेता ने कहा कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने केवल उनके नेतृत्व को मजबूत किया है, जिसने पार्टी को ऊर्जावान बनाया है, जबकि लालूजी पार्टी का राष्ट्रीय और वैचारिक चेहरा बने हुए हैं।

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आरजेडी ने यह कदम ऐसे वक्त में उठाया है जब आरजेडी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को महागठबंधन में वापस लाने के लिए पिता और पुत्र के बीच मतभेद सामने आए हैं। इस महीने की शुरुआत में लालू ने नीतीश कुमार के प्रति नरम रुख अपनाया और कहा कि उनकी वापसी के लिए आरजेडी के दरवाजे खुले हैं, जबकि तेजस्वी ने सीएम को थका हुआ नेता करार दिया और नए विचारों और नेतृत्व की आवश्यकता पर जोर दिया।

लालू ने एक तरफ जहां नीतीश से मतभेदों को खत्म करने के संकेत दिए तो दूसरी ओर राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में लालू ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अपने बेटे की जमकर तारीफ की। राजद संस्थापक लालू प्रसाद यादव ने कहा कि उन्होंने पार्टी के समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के लक्ष्यों को आगे बढ़ाते हुए उदाहरण पेश किया है। उन्होंने तेजस्वी की लोगों की नब्ज समझने के लिए पूरे राज्य की यात्रा करने के लिए प्रशंसा की।

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तेजस्वी ने इंडिया ब्लॉक और महागठबंधन के सहयोगियों का जिक्र करते हुए नरमी दिखाई। उन्होंने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से मुलाकात की। यह मुलाकात तेजस्वी के उस बयान के कुछ दिनों बाद हुई जिसमें उन्होंने कहा था कि इंडिया ब्लॉक सिर्फ लोकसभा चुनावों के लिए एक साथ आया है। राहुल गांधी ने भी आरजेडी के साथ नज़दीकियां बढ़ाईं और कहा कि इंडिया ब्लॉक अगले साल बिहार विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर लड़ेगा।

पार्टी की इस अहम बैठक में पूर्व सांसद जगदानंद सिंह की अनुपस्थिति स्पष्ट थी। 2020 में सिंह ने तेजस्वी को पार्टी का चेहरा बनाने पर जोर दिया था लेकिन पिछले कुछ महीनों से वे नाराज चल रहे हैं। उन्होंने दावा किया है कि पार्टी ने नवंबर में विधानसभा उपचुनावों में उनकी सलाह नहीं सुनी, जिसमें पार्टी ने अपने गढ़ बेलागंज और इमामगंज को बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से खो दिया।

तेजस्वी ने 2013 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा और सबसे पहले उन्हें आरजेडी की युवा शाखा में जोश भरने का काम सौंपा गया। उस समय उन्हें आरजेडी के राज्यसभा सांसद संजय यादव के संरक्षण में देखा गया था, जिन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि कैसे तेजस्वी ने खुद को तैयार करने के लिए नकली साक्षात्कारों में भाग लिया, समाजवादी साहित्य पढ़ा और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और समाजवादी दिग्गज जॉर्ज फर्नांडीस जैसे नेताओं के साक्षात्कार देखे।

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पूर्व उपमुख्यमंत्री के लिए सबसे बड़ा पल 2015 में आया जब उन्होंने जेडी(यू)-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन को 243 सदस्यीय विधानसभा में 178 सीटों पर पहुंचाया, जिसमें उनकी पार्टी 81 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। यह परिणाम उनके पिता के जेल जाने और खराब स्वास्थ्य की पृष्ठभूमि में आया, जिससे उनकी जीत और भी मीठी हो गई।

16 महीने तक डिप्टी सीएम रहने के दौरान तेजस्वी और उनके परिवार को सीबीआई के छापों का सामना करना पड़ा, क्योंकि पिता-पुत्र की जोड़ी को IRCTC भ्रष्टाचार मामले में केंद्रीय एजेंसी की जांच का सामना करना पड़ा। 2017 में जब नीतीश ने एनडीए से हाथ मिला लिया और आरजेडी से गठबंधन तोड़ दिया, तो तेजस्वी ने अपनी पार्टी के मामलों को संभाल लिया।

जगदानंद सिंह का ही विचार था कि तेजस्वी की तस्वीरों को 10 लाख नौकरियां के नारे के साथ इस्तेमाल किया जाए, जिससे सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के घिसे-पिटे संदेशों की जगह ले ली जाए। इसने तेजस्वी की लोकप्रियता को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया, लेकिन विधानसभा में महागठबंधन साधारण बहुमत से 12 सीटें दूर रह गया। हालांकि तेजस्वी सत्ता में वापसी से बाल-बाल चूक गए, लेकिन वे राज्य में नीतीश के बाद दूसरे सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे थे। बिहार की अन्य सभी खबरें पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।