बाल श्रम एक ऐसी गंभीर समस्या है, जो बच्चों से उनका बचपन, शिक्षा और सुनहरा भविष्य छीन लेती है। यही नहीं, इससे बच्चों का शारीरिक, मानसिक एवं लैंगिक विकास भी बाधित होता है। जबकि, हमें एक ऐसे विश्व का निर्माण करना है, जहां काम नहीं, किताबें बच्चों का अधिकार हों। बाल श्रम के विरुद्ध आज भी दुनिया भर में आवाज उठती है। विश्व में इस दिशा में चल रहे सतत संघर्ष का ठोस परिणाम कम ही दिखाई देता है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन बाल श्रम के सभी रूपों को समाप्त करने के लिए वैश्विक प्रयासों को सुदृढ़ करने का आह्वान करता है।

बाल श्रम के खिलाफ उठने वाली आवाज हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि तकनीकी विकास और वैश्वीकरण के इस युग में करोड़ों बच्चे आज भी श्रम करने के लिए विवश क्यों हैं? अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, आज भी 16 करोड़ से अधिक बच्चे विश्व भर में बाल श्रमिक के रूप में कार्यरत हैं और इनका एक बड़ा हिस्सा खतरनाक परिस्थितियों में काम कर रहा है। यह स्थिति विकास की चमकदार तस्वीर के पीछे उस अंधकार को उजागर करती है, जिसे हम अनदेखा कर देते हैं।

बाल श्रम एक ऐसा कार्य है, जो बच्चों से उनका बचपन बेहद ही निर्ममता से छीन लेता है। कई बार काम के दौरान उन पर जोर-जुल्म होता है। नतीजा यह कि इन सब हालात के बीच उनका शारीरिक, मानसिक और लैंगिक विकास बुरी तरह बाधित होता है। उनके भविष्य की सभी संभावनाएं क्षीण होने लगती हैं। दरअसल, बाल श्रम बच्चों की शिक्षा में बाधा डालता है। कई मामलों में पाया गया कि जो बच्चे पढ़-लिख कर अपना भविष्य उज्ज्वल बना सकते हैं, उन्हें बाल श्रम का जाल अंधकारमय भविष्य की ओर ले जाता है।

इस समस्या की जड़ में गरीबी, शिक्षा की कमी, सामाजिक असमानता, परिवार में बेरोजगारी और बाल श्रम कानूनों का शिथिल क्रियान्वयन है। जब एक परिवार की रोजी-रोटी की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं होती हैं, तब उनके सामने सबसे आसान विकल्प बच्चों को काम पर भेजना बन जाता है। यही कारण है कि खेतों, कारखानों, ईंट-भट्टों, घरेलू कामकाज और निर्माण स्थलों पर कई मासूम बच्चे काम करते नजर आते हैं। हैरत की बात है कि स्थानीय प्रशासन सब कुछ देखते हुए भी अक्सर आंखें मूंदे रहता है।

कोरोना महामारी के बाद यह संकट और भी गहराया है। स्कूल बंद होने से लाखों बच्चे शिक्षा से वंचित हो गए। दूसरी ओर, बेरोजगार हुए परिवारों में बच्चों की पढ़ाई की अपेक्षा उन्हें काम पर भेज कर पैसा कमाने को अधिक उचित समझा गया। वर्ष 2000 से 2020 के बीच वैश्विक स्तर पर बाल श्रम में 8.55 करोड़ बच्चों की कमी दर्ज की गई थी, जो एक सकारात्मक संकेत था। मगर, कोरोना महामारी और आर्थिक असमानताओं ने इस प्रवृत्ति को पलट दिया और इसके बाद बाल श्रमिकों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होती चली गई। ग्रामीण क्षेत्रों, शहरी झुग्गियों तथा प्रवासी मजदूर परिवारों में यह समस्या अब अत्यंत गंभीर बनी हुई है।

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यह स्थिति इस बात पर जोर देती है कि इस गंभीर सामाजिक चुनौती से निपटने के लिए नवीन, समग्र, सामूहिक और ठोस प्रतिबद्धता की महती आवश्यकता है। बाल श्रम भारत के साथ-साथ सभी देशों में गैर कानूनी है। अब समय आ गया है कि हम इस विषय पर सिर्फ बात न करके अपनी नैतिक जिम्मेदारी भी समझें। बाल श्रम को जड़ से उखाड़ना हमारे लिए एक चुनौती है, जिस पर खरा उतरना हमारी प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिए।

जाहिर है, इसके लिए सरकार को ही नहीं स्थानीय प्रशासन और परिवारों को भी आगे आना होगा। अगर समन्वित प्रयास हों, तो बच्चों को बाल श्रम से बचाया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा वर्ष 1992 से शुरू किया गया उपक्रम बाल श्रम के क्रमिक उन्मूलन की दिशा में राष्ट्रीय क्षमताओं को सशक्त करने और वैश्विक जागरूकता बढ़ाने में काम आया।

हालांकि, संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों का असर दिखना बाकी है। विशेष रूप से चालू वर्ष के अंत तक बाल श्रम के सभी रूपों को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्धता कितनी सफल होगी, यह देखने की बात होगी। हालांकि, ज्यादातर अभियानों में अपेक्षित सफलता अभी तक नहीं मिली है। भारत में बाल श्रम की समस्या बहुआयामी है। इस समस्या से निपटने के लिए शिक्षा एक माध्यम हो सकती है, जो किसी भी बच्चे को श्रम के कुचक्र से बाहर निकाल सकती है।

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सरकार का सर्वशिक्षा अभियान एवं राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजना जैसे प्रयास सराहनीय हैं, पर इन्हें और व्यापक बना कर समाज के अंतिम छोर तक पहुंचाना, बाल श्रम को खत्म करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ ने अब तक हजारों बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने बाल श्रम उन्मूलन के लिए 12 जून से एक व्यापक अभियान शुरू करने की योजना बनाई है। इसका लक्ष्य वर्ष 2027 तक बाल श्रम मुक्त प्रदेश बनाना है। इसे राज्य सरकार का बड़ा कदम माना जा सकता है। मगर, वर्ष 2011 की जनगणना के बाद से अब तक बाल श्रमिकों का कोई भी ताजा आंकड़ा उपलब्ध न होने से योजना के प्रभावी क्रियान्वयन में बाधा आ रही है।

इस स्थिति से निपटने के लिए पंचायती राज विभाग को गांव स्तर पर बाल श्रमिकों की पहचान कर आंकड़े एकत्र करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त सरकार यूनिसेफ के साथ मिल कर ‘योजना पुस्तिका’ तैयार कर रही है, जिसमें उन योजनाओं का विवरण होगा, जो बाल श्रमिकों और उनके परिवारों की मदद के लिए उपलब्ध है। प्रदेश सरकार द्वारा मंडल स्तर पर बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए अटल आवासीय विद्यालयों का संचालन भी किया जा रहा है, ताकि श्रमिकों के बच्चों को बाल श्रम से रोका जा सके।

बाल श्रम की इस समस्या के विरुद्ध समाज और सरकार को जनजागरण का आह्वान करना चाहिए, क्योंकि यह केवल बच्चों की भलाई का मुद्दा नहीं है, बल्कि संपूर्ण मानवता का सवाल है। प्रत्येक बच्चे को सुरक्षित, स्वस्थ और गरिमापूर्ण बचपन मिलना चाहिए। आज इस बात की आवश्यकता है कि हम निष्पक्ष, संवेदनशील और सतत रणनीतियां अपनाएं, जो ऐसे विश्व का निर्माण करें, जहां ‘काम नहीं किताबें’ बच्चों का अधिकार हो। तभी हम बच्चों को न केवल बाल श्रम से मुक्ति दिला सकते हैं, बल्कि देश के भविष्य की नींव भी मजबूत कर सकते हैं।