देश में अब विकसित खेती पर जोर दिया जा रहा है। भारत सरकार 29 मई, 2025 से देशव्यापी स्तर पर विकसित कृषि संकल्प अभियान शुरू करने जा रही है। इसका बड़ा उद्देश्य है। केंद्रीय कृषिमंत्री ने बताया है कि यह अभियान विकसित भारत मिशन के तहत किसानों को वैज्ञानिक खेती, उन्नत बीज की किस्मों और आधुनिक तकनीकों से जोड़ने के लिए है। गौरतलब है कि इसका लक्ष्य देश के 723 जिलों में डेढ़ करोड़ किसानों तक पहुंचना है। इसके अंतर्गत 65,000 गांवों में वैज्ञानिकों के दल प्रतिदिन तीन बैठकों के माध्यम से किसानों से सीधे संवाद करेंगे। इस अभियान की पृष्ठभूमि में भारत की कृषि उत्पादन संरचना और नीतिगत प्राथमिकताएं स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। वर्ष 2023-24 में देश का खाद्यान्न उत्पादन 1,557 लाख टन था, जबकि वर्ष 2024-25 के लिए इसका अनुमान 1,664 लाख टन है। यह लगभग 6.9 फीसद की वृद्धि का संकेत देता है। मगर यह उपलब्धि तभी सार्थक होगी, जब किसान तकनीकी रूप से सशक्त और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सके।
भारत में कृषि से 46.5 फीसद आबादी को आजीविका मिलती है। सकल घरेलू उत्पाद में कृषि और सहायक क्षेत्रों का योगदान वर्ष 2023-24 में 18.3 फीसद रहा। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि कृषि सुधार केवल उत्पादन बढ़ाने की योजना नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को स्थायित्व देने और ग्रामीण भारत को सशक्त बनाने का अनिवार्य आधार है। यह अभियान इन्हीं उद्देश्यों को पूरा करने की दिशा में सामूहिक प्रयास है।भारत में जलवायु परिवर्तन का प्रत्यक्ष प्रभाव कृषि उत्पादकता पर पड़ रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की रपट (2022) के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2030 तक गेहूं की उत्पादकता में छह से दस फीसद तक की गिरावट संभावित है।
ऐसे में विकसित कृषि संकल्प अभियान की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है, क्योंकि यह किसानों को जल संरक्षण, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, फसल विविधीकरण और आधुनिक यंत्रों के प्रयोग की दिशा में प्रशिक्षित करने का कार्य करेगा। भारत में अभी भी लगभग 50 फीसद खेती वर्षा पर निर्भर है और केवल 49.6 फीसद भूमि सिंचित है। इस वास्तविकता के परिप्रेक्ष्य में सिंचाई में बदलाव और जल-प्रबंधन तकनीकों का प्रचार अत्यावश्यक हो जाता है। विकसित कृषि संकल्प अभियान के अंतर्गत इन सभी विषयों पर किसानों को व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाना प्रस्तावित है। यह केवल जागरूकता का प्रयास नहीं, बल्कि खेती की सोच को विज्ञान और नीति के साथ समन्वित करने का चरणबद्ध कार्यक्रम है। इस प्रकार यह अभियान कृषि को पर्यावरणीय अनुकूलन और संसाधन दक्षता के मार्ग पर अग्रसर करने का माध्यम बन सकता है।
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भारत में लगभग 85 फीसद छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनके पास दो हेक्टेयर से कम भूमि है। इन किसानों के पास पूंजी, तकनीक और बाजार की सीमित पहुंच है। वर्ष 2022-23 में भारतीय किसान की औसत मासिक आय केवल 10,218 रुपए थी, जिसमें कृषि उपज से प्राप्त आय का हिस्सा मात्र 37 फीसद था। स्पष्ट संकेत है कि कृषि अब भी किसानों के लिए पर्याप्त आय का स्रोत नहीं बन पाई है। इस स्थिति को बदलने के लिए आवश्यक है कि नीतियां उत्पादन केंद्रित न रह कर लाभ केंद्रित बनें। विकसित कृषि संकल्प अभियान इसी दिशा में एक प्रयास है, जो किसानों को फसल विविधीकरण, मूल्यवर्धन, प्रसंस्करण इकाइयों की जानकारी और बाजार तक सीधी पहुंच दिलाने में सहायक हो सकता है। यदि इस अभियान के माध्यम से किसान कृषि यंत्रों, बीज, मृदा परीक्षण और डिजिटलीकरण जैसे घटकों से जुड़ पाते हैं, तो उनके उत्पादन लागत में कमी और शुद्ध आय में वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है।
भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कृषि के आधुनिकीकरण के लिए अनेक योजनाएं प्रारंभ की हैं जैसे, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, डिजिटल किसान रजिस्ट्रेशन आदि। विकसित कृषि संकल्प अभियान इन योजनाओं को अंतिम उपयोगकर्ता तक पहुंचाने और उनकी कार्यप्रणाली को बेहतर ढंग से समझाने का माध्यम बन सकता है। वर्ष 2023 तक देश के केवल 22 फीसद किसानों ने ई-नाम के माध्यम से अपनी उपज का पंजीकरण किया था और उनमें से आठ फीसद ने ही वास्तविक विक्रय किया। इसका मुख्य कारण जागरूकता की कमी और स्थानीय स्तर पर सुविधा की अनुपलब्धता है।
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इस अभियान के माध्यम से अगर वैज्ञानिक और प्रशासनिक टीमें किसानों को इन मंचों का व्यावहारिक प्रशिक्षण देती हैं, तो डिजिटल समावेशन को गति मिल सकती है। साथ ही, फसल बीमा योजना की जानकारी, जैविक खेती के लाभ और कृषि निवेश की वित्तीय रणनीति जैसे विषयों पर प्रशिक्षण देकर किसानों को दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित किया जा सकता है। यह अभियान कृषि को केवल जीविका का साधन नहीं, उद्यमिता का क्षेत्र भी बना सकता है। यदि हर गांव में एक आत्मनिर्भर किसान तैयार होता है, तो वह अपने साथ दस और किसानों का मार्गदर्शन कर सकता है।
भारत की खाद्य सुरक्षा नीति का आधार तभी स्थिर रह सकता है जब कृषि को टिकाऊ, लाभकारी और समावेशी बनाया जाए। वर्तमान में भारत में प्रति व्यक्ति वार्षिक अनाज उपलब्धता लगभग 174 किलो है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित न्यूनतम आवश्यकता 180 किलो से थोड़ा कम है। इसके बावजूद, सार्वजनिक वितरण प्रणाली और मध्याह्न भोजन योजना जैसी सरकारी पहलों के कारण देश में भूख का स्तर नियंत्रित बना हुआ है। मगर दीर्घकालिक स्थिरता के लिए केवल योजनाएं पर्याप्त नहीं, उत्पादन प्रणाली का कायाकल्प आवश्यक है। विकसित कृषि संकल्प अभियान इसी जागरूकता का प्रसार करता है कि अब उत्पादन की परंपरागत पद्धतियों में सुधार लाना आवश्यक है। जैविक और प्राकृतिक खेती, न्यूनतम सिंचाई कृषि और कीटनाशक रहित उत्पादनों की दिशा में यह अभियान किसानों का मार्गदर्शन करेगा।
इसके अतिरिक्त, महिलाओं और युवाओं को कृषि तकनीकी प्रशिक्षण के माध्यम से कृषि के प्रति आकर्षित करना आवश्यक है। कृषि मंत्रालय की 2023 की रपट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में कृषि में युवाओं की भागीदारी 17 फीसद घटी है। इस प्रवृत्ति को रोकना आवश्यक है।विकसित कृषि संकल्प अभियान कृषि के उन सभी पहलुओं को छूता है जो एक दीर्घकालिक परिवर्तन की नींव बनाते हैं। यानी उत्पादन से लेकर विपणन तक, नीति से लेकर व्यवहार तक और शोध से लेकर समाधान तक।
इसका उद्देश्य केवल कृषि को उत्पादक बनाना नहीं है, बल्कि उसे संरचित, टिकाऊ और लाभकारी बनाना है। यह अभियान एक रणनीतिक प्रयास है, जो किसानों को वैज्ञानिक, व्यावसायिक और सामाजिक दृष्टिकोण से सशक्त बनाने की दिशा में उठाया गया है। इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि कितनी गहराई से यह गांवों तक पहुंचता है, कितनी संवेदनशीलता से किसानों की बात सुनता और कितनी प्रतिबद्धता से स्थानीय आवश्यकताओं को समझते हुए समाधान प्रस्तुत करता है।