सड़क हादसे आज एक गंभीर समस्या का शक्ल ले चुके हैं और यह एक आम हकीकत है। मगर हाल ही में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री ने भी कहा कि देश में हर साल पांच लाख सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिसमें डेढ़ लाख से अधिक लोगों की जान चली जाती है। इनके लिए विस्तृत परियोजना रपट यानी डीपीआर में की गई गलतियां भी जिम्मेदार हैं। इस बात का जिक्र जोर देकर किया गया कि अधिकांश डीपीआर यानी विस्तृत परियोजना रपट भी बहुत रूढ़िवादी हैं और इन्हें तैयार करने में गुणात्मक बदलाव लाने की जरूरत है। सड़क सुरक्षा में जरूरी पहलू यह भी है कि खराब इंजीनियरिंग पर ध्यान देना होगा, जिसकी अमूमन अनदेखी की जाती है।

यह एक राय हो सकती है, लेकिन पिछले कुछ समय से जिस तरह सड़क हादसों और उनकी प्रकृति में तेजी आई है, उसमें इस मसले पर गंभीरता से बात करने की जरूरत है। असल में जब भी कोई सड़क हादसा होता है, तो कितने लोग मरे और कितने घायल हुए, जैसे आंकड़ों की जानकारी देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी समझ ली जाती है। तेज गति और गलत तरीके से वाहन चलाने को सड़क हादसे का जिम्मेदार बता कर बाकी सभी कार्यों की इतिश्री कर ली जाती है।

कभी भी सड़क हादसे के त्वरित कारणों के अलावा विस्तार से चर्चा नहीं होती और शायद ही कभी जवाबदेही तय की जाती है। उन मूल कारणों पर भी आमतौर पर चर्चा नहीं होती, जो इन सड़क हादसों के लिए जिम्मेदार होते हैं। कभी इस बात का जिक्र नहीं होता कि सलाहकार की ओर से तैयार डीपीआर में गलतियां सड़क दुर्घटनाओं का मुख्य कारण है। यह नहीं कहा जाता कि डीपीआर तैयार करने में कहीं अधिक सावधानी और कई गुना बदलाव लाने की सख्त जरूरत है। सड़क हादसों को रोकने के लिए हमें जिम्मेदारी तय करनी होगी और दोषियों को सजा दिलानी होगी। ऐसा किए बिना लोगों में भय व्याप्त नहीं होगा।

मगर इससे पहले सफर के दौरान सुरक्षा के हर पहलू पर गंभीरता से ठोस काम करना होगा। सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि हर साल बड़ी संख्या में होने वाले सड़क हादसों का प्रमुख कारण खराब सड़कें और लोगों में यातायात नियमों के प्रति जागरूकता का अभाव है। इसके अलावा, सही समय पर घायलों को अस्पताल नहीं पहुंचा पाना भी मौत के आंकड़े में बढ़ोतरी का बड़ा कारण है। विशेषज्ञ कहते हैं कि सरकारी प्रयासों के अपेक्षाजनक परिणाम धरातल पर नजर नहीं आ रहे हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता के प्रयासों में तेजी लाने की दरकार है। हालांकि, विशेषज्ञों की सलाह पर बहुत गंभीरता से काम किया गया हो, ऐसा कभी देखने में नहीं आया है। अगर उनकी सलाह पर काम होता, तो सड़क हादसों में निश्चित तौर पर कमी आती। लोगों की लापरवाही पर तो फिर भी चर्चा हो जाती है, लेकिन सड़कों की खराब डीपीआर और खराब इंजीनियरिंग पर तो कभी चर्चा ही नहीं होती। इस पर गंभीरता से बातचीत करना समय की जरूरत है।

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सड़क हादसों पर जहां एक ओर जहां विस्तृत ब्योरा जमा करने की कोशिश सीमित है, वहीं पुलिस की कार्यप्रणाली भी हादसे के बाद वाहन का चालान काटने और दुर्घटना होने पर उसे जब्त करने तक ही काम करती है। हादसे के विस्तृत ब्योरे और जांच तक किसी का ध्यान नहीं जाता।

यह भी गंभीर चिंता का विषय है कि देश में बिचौलियों को पैसे देकर ड्राइविंग लाइसेंस बना लिया जाता है, जबकि विदेश में लाइसेंस के लिए बहुत कड़ी परीक्षा देनी पड़ती है। जापान में कार खरीदने से पहले पार्किंग की जगह होने का प्रमाणपत्र देना जरूरी है, लेकिन भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। यहां व्यक्ति कार खरीदता है और उसे घर के बाहर सड़क पर ही खड़ा कर देता है, जिससे वाहनों का जाम लगना आम बात है। देश में नाबालिग भी वाहन चला रहे हैं, जो सड़क हादसों को न्योता देते हैं। इन बातों पर कभी चर्चा नहीं होती।

सड़क हादसों की एक बड़ी वजह यातायात नियमों का सख्ती से पालन न होना और आसानी से ड्राइविंग लाइसेंस मिलना भी है। कई बार नशे में वाहन चलाना भी हादसे का कारण बनता है। कुछ वाहन चालक इतने अधीर होते हैं कि वे दूसरों से आगे निकलने की होड़ में हादसे को न्योता देते हैं। रफ्तार को नियंत्रित करने के लिए सड़क पर गति अवरोधक जरूर बनाए जाते हैं, लेकिन उनके बनाने का कोई मानक नहीं होता है। जहां पर आवश्यकता होती है, वहां नहीं बनते और अनावश्यक जगहों पर मानक रहित गति अवरोधक बना दिए जाते हैं, जो दुर्घटनाओं का कारण बन जाते हैं।

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इन सभी वजहों पर चर्चा होना आवश्यक है, लेकिन शायद ही कभी इन पर गंभीरता से विचार किया जाता है। सड़क हादसों में जान गंवाने वाले परिवारों पर क्या बीतती है, इस पर भी बहुत कम चर्चा होती है। कोई दुर्घटना हुई, कितने मरे, कितने घायल और कितना आर्थिक नुकसान हुआ, बस इन्हीं बातों को आधार बनाकर सामान्य रपट तैयार कर ली जाती हैं।

हादसे के दूरस्थ परिणामों पर शायद ही कभी विस्तार से बात होती है। कुछ साल पहले जयपुर में एक सड़क हादसे में कार पर नमक से भरा ट्रक गिर गया था, जिससे कार में सवार सभी लोग मारे गए थे। इनमें एक ऐसा जोड़ा भी था, जिसकी हाल ही में सगाई हुई थी। हादसे के बाद चालक फरार हो गया और पुलिस ने ट्रक जब्त कर लिया। बात आई-गई हो गई। अब कोई नहीं जानता कि उस परिवार का क्या हुआ और अपने बच्चों को खोने वाले माता-पिता पर क्या बीती होगी।

एक उदाहरण से इसे समझा जा सकता है। एक अनाज मंडी में घरों के सामने फड़ बने हुए थे, जिन पर शाम को बच्चे अक्सर खेला करते थे। मोहल्ले के बच्चों की पूरी टोली थी, जो सुबह स्कूल में पढ़ती थी और शाम को इन फड़ों पर साथ खेलती थी। एक शाम टोली में साथ खेलने वाली लड़की सड़क हादसे का शिकार हो गई।

दरअसल, फड़ों के सामने से अक्सर अनाज की बोरियों से लदे ट्रक निकलते थे और इसी दौरान हादसे में उसकी मौत हो गई। इस मामले में भी हादसे के बाद चालक फरार हो गया और पुलिस ने ट्रक जब्त कर लिया। इसके बाद वह घटना किस निष्कर्ष तक पहुंची, आम लोगों को पता नहीं चला।सड़क हादसों पर लगाम लगाने के लिए इस समस्या के कारणों और जड़ों पर विस्तार से बात करने की जरूरत है।

हादसे के बाद पीड़ित परिवार पर क्या बीतती है, उस पर भी चर्चा की जानी चाहिए। उस परिवार के बच्चों को समुचित शिक्षा और भोजन मिल पा रहा है या नहीं, इस बात का भी पता लगाना चाहिए। हादसे में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने का मतलब है कि उस परिवार का बिखर जाना। ऐसे बिखरे परिवारों को संभालने के लिए और उन तक सरकारी और निजी सहायता पहुंचाने के लिए हरसंभव प्रयास करने होंगे।