Thailand Cambodia Conflict: थाईलैंड और कंबोडिया के रिश्तों में इन दिनों फिर से तनाव चल रहा है। तनाव की वजह एक मंदिर है। थाईलैंड और कंबोडिया के बीच विवाद की वजह सदियों पुराना एक प्राचीन शिव मंदिर है। 1962 में मंदिर के विवाद को लेकर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने दखल भी दिया था लेकिन बावजूद उसके यह मामला नहीं सुलझ पाया।
इस मंदिर पर दोनों ही देशों का दावा है और इसे लेकर हाल ही में दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प भी हो चुकी है। 28 मई को थाईलैंड और कंबोडिया की विवादित सीमा पर हिंसक झड़प हुई और इसमें कंबोडिया के एक सैनिक की मौत हो गई। यह मंदिर प्रीह विहियर यानी प्राचीन शिव मंदिर है। इसे थाई भाषा में फ्रा विहान कहा जाता है।
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच 800 किलोमीटर लंबी सीमा है। विद्वानों का मानना है कि पहले सियामी (थाईलैंड के लोग) और खमेर (कंबोडिया के लोग) के लोगों के बीच व्यापार, विवाह और सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता था और बहुत मधुर संबंध थे लेकिन 14 वीं शताब्दी के आसपास जब खमेर साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा तो थाई साम्राज्य ने कंबोडिया की राजधानी अंगकोर पर कब्जा कर लिया।
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खमेर ने इसके जवाब में थाईलैंड पर हमला किया और 16वीं शताब्दी तक इनके बीच झड़पें चलती रही। 1904 के एक नक्शे के मुताबिक, थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा का निर्धारण किया गया जिसमें इस प्राचीन प्रीह विहियर मंदिर को कंबोडिया की सीमा में दिखाया गया।
चर्नविट कासेत्सिरी, पोउ सोथिरक और पाविन चाचावलपोंगपुन ने अपनी संयुक्त किताब Preah Vihear: A Guide to the Thai-Cambodian Conflict and Its Solutions (2013) में लिखा है कि सियाम यानी थाईलैंड को औपनिवेशिक राजनीति के दबाव में फ्रांस के साथ संधि करनी पड़ी और उसने कंबोडिया के कुछ इलाकों बट्टामबांग, सिसोफोन और सिएम रीप को फ्रांस को दे दिया।
वे अपनी किताब में यह भी लिखते हैं कि 50 साल से ज्यादा वक्त तक थाईलैंड चुप रहा और इससे मंदिर को लेकर उसका दावा कमजोर हो गया।
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इतिहासकार डॉन एफ. रूनी ने अपनी किताब Angkor:Cambodia’s Wondrous Khmer Temples (2006) में लिखा है कि एक पुरानी मान्यता के मुताबिक, खमेर जाति के पूर्वजों में से एक प्राह थोन्ग भारत से कंबोडिया आए थे क्योंकि राजा ने नाराजगी की वजह से उन्हें निर्वासित कर दिया था।
10वीं से 14वीं शताब्दी के बीच जब ईसाई धर्म का उदय हुआ तब भारत से बहुत सारी धार्मिक मान्यताएं और प्रथाएं भी कंबोडिया तक पहुंची और इस दौरान ईसाई धर्म का भी उदय हुआ। थाईलैंड भी हिंदू धर्म से प्रभावित था। उदाहरण के लिए थाईलैंड के अयुत्थया राज्य का नाम अयोध्या के नाम पर रखा गया और यह हिंदू धर्म का केंद्र बन गया। थाईलैंड में रामायण का थाई संस्करण रामकेन भी लिखा गया।
यह बात भी बेहद दिलचस्प है कि खमेर की कला में हिंदू देवी-देवताओं के चिन्हों को दिखाया गया उनमें शिव सबसे पहले थे। शिव का चित्रण एक लिंग के रूप में किया जाता था और वह पॉलिश के पत्थर से बनी हुई एक आकृति होती थी। यहां शिव को दयालु देवता के रूप में दिखाया गया था ना कि उग्र रूप में जैसा कि भारत में उन्हें दिखाया जाता है।
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प्रीह विहियर मंदिर थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा पर डोंगरेक पहाड़ियों की चोटी पर स्थित है। राजनीतिक वैज्ञानिक पुआंगथोंग आर पावकपन ने State and Uncivil Society in Thailand at the Temple of Preah Vihear में लिखा है कि इस मंदिर में पांच मुख्य प्रवेश द्वार हैं, जो सीढ़ियों और गलियारों से जुड़े हैं।
पावकपन ने लिखा है कि मंदिर के प्रवेश द्वार पर शिव का वाहन नंदी बैल है। मंदिर जाने का प्रमुख रास्ता थाईलैंड की ओर से है लेकिन दो रास्ते ऐसे हैं जो पूर्वी और पश्चिम की ओर से कंबोडिया के शहरों से जुड़ते हैं।
मंदिर के आसपास कुछ अन्य पुरातात्विक स्थल भी हैं जैसे एक पुराना जलाशय और एक शिवलिंग। 15वीं सदी में अंगकोर साम्राज्य के पतन के बाद इस मंदिर को उपेक्षित कर दिया गया और दुनिया को इस बारे में तब पता चला जब शीत युद्ध के दौरान थाईलैंड और कंबोडिया के रिश्ते खराब हो गए।
1953 में कंबोडिया को आजादी मिल गई तब राजा नरोदम सिहानुक ने थाईलैंड की सरकार से कहा कि वह मंदिर में तैनात थाईलैंड के सैनिकों को वापस बुलाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इससे कंबोडिया नाराज हो गया और उसने दो बार थाईलैंड से राजनीतिक संबंध तोड़ लिए। इसके बाद यह मामला 1962 में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में गया। 15 जून, 1962 को अदालत में अपने फैसले में कहा कि प्रीह विहियर का मंदिर कंबोडिया के इलाके में आता है।
थाईलैंड के लोग इस फैसले के खिलाफ भड़क गए। देश भर में प्रदर्शन हुए, राजधानी बैंकॉक में रैलियां निकाली गई और फिर वहां की सरकार भी प्रदर्शनकारियों के साथ आ गई हालांकि सरकार ने इस मामले में अदालत के आदेश का पालन किया।
2008 में यह मुद्दा फिर से सुर्खियों में आया जब People’s Alliance for Democracy (PAD) ने कंबोडिया की सरकार के इस मंदिर को विश्व धरोहर स्थल घोषित करने की मांग का थाइलैंड द्वारा समर्थन किए जाने का विरोध किया। इस संगठन ने आरोप लगाया कि थाइलैंड की सरकार इस प्रस्ताव को समर्थन देने के बहाने मंदिर से जुड़ा विवादित क्षेत्र कंबोडिया को सौंप रही है।
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