जातिगत जनगणना के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद अब जनगणना के नियम (एसओपी) तैयार होने का इंतजार है। ये नियम तय होने के बाद सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को भेजे जाएंगे और संबंधित अधिकारियों के प्रशिक्षण के बाद ही जातिगत गणना की शुरूआत होगी। केंद्र सरकार ने अप्रैल के आखिर में जातिगत जनगणना का निर्णय लिया था। यह केंद्र के माध्यम से होने वाली पहली जातिगत जनगणना होगी। सरकार का दावा है कि यह प्रक्रिया पूर्ण हो जाने के बाद आमजन तक केंद्र सरकार की हर योजना का पूर्ण लाभ पहुंच जाएगा।
सूत्रों का कहना है कि यह पहली जातिगत जनगणना इसलिए कही जा रही है, क्योंकि अब तक जो राज्य स्तर पर जाति गणना हुई है, उसका अधिकार राज्यों के पास नहीं है और केवल केंद्र सरकार ही इसके लिए अधिकृत है। राज्यों ने दरअसल सर्वेक्षण किया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद अब जल्द ही विस्तृत नियम (एसओपी) तैयार होंगे और इनके आधार पर ही देश भर में गणना का काम शुरू हो सकेगा। संबंधित राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों को अपने अधिकारियों का प्रशिक्षण भी इस एसओपी के आधार पर करना होगा।
जानकार बताते हैं कि जातिगत जनगणना की तैयारी में हर प्रदेश की जाति-उपजाति से लेकर अन्य जानकारियों को जुटाया जाएगा। इसके माध्यम से केंद्र सरकार के पास सभी जातियों के आंकड़े उपलब्ध होंगे, जिसके दायरे से कोई बाहर नहीं होगा। जबकि जिन राज्यों में अब तक यह पहल की गई है, उन राज्यों में इसका एक समिति दायरा था, इसलिए इसके जातिगत गणना नहीं मानकर एक सर्वेक्षण का दर्जा दिया गया है।
जातिगत गणना के तहत अनुसूचित जाति और जनजाति (एससी एसटी) की ही गणना का प्रावधान है। केंद्र इस बार जनगणना के साथ ही जातिगत गणना कराएगी। अभी तक जनगणना अधिनियम 1948 के तहत कराई जाती है। प्रावधान में ही स्पष्ट है कि एसी-एसटी वर्ग से ही जातिगत गणना होगी। इस प्रावधान की वजह से ही देश के अन्य राज्यों को विशेष आदेश और अदालती आदेशों के आदेश पर ही जाति गणना कराई है।
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तीन राज्यों ने अदालती आदेश व अधिनियम से कराई थी गणना : बिहार, महाराष्ट्र और ओड़ीशा राज्य इसका बड़ा उदाहरण हैं। जातिगत गणना के लिए बिहार सरकार ने एक विशेष आदेश जारी किया था और इसके लिए उच्च न्यायालय के आदेशों को आधार बनाया था, जबकि ओड़ीशा ने विशेष अधिनियम के तहत इस बाबत आदेश जारी किए थे। केंद्र और राज्यों को ओबीसी की स्थिति भी स्पष्ट करनी होगी। देशभर में आरक्षण प्रावधान के तहत ही केंद्र व राज्य सरकार की ओर से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए अलग-अलग प्रावधान है। इसके तहत कुछ राज्यों में जिन जातियों को ओबीसी की सूची में रखा गया है, वे केंद्रीय सूची में नहीं आती है।
इस वजह से संबंधित जाति वर्ग के लिए केंद्र व राज्य सरकार की तरफ से अपनी-अपनी सूची के हिसाब से ओबीसी प्रमाणपत्र जारी होते हैं। जानकार बताते हैं कि यह अधिकार राज्य सरकार के पास होता है और वह इसकी सिफारिश केंद्र सरकार को देती है। इस सिफारिश के आधार पर ही मंजूरी दी जाती है। कुछ जातियां जो कि राज्य की सूची में शमिल हैं, लेकिन वे केंद्र की सूची में नहीं है।
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में भी ऐसी जातियां हैं। कई राज्यों की तरफ से इन जातियों को राज्य सरकारें केंद्र की सूची में शामिल करने की सिफारिश भी कर चुकी हैं। इससे पूर्व जिन भी राज्यों में जाति आधारित सर्वेक्षण किए गए थे, उन राज्यों में संबंधित निजी कर्मचारियों को एक टैब उपलब्ध कराया गया था और आनलाइन ही सारे आंकड़े एकत्र किए गए थे। इसमें संबंधित व्यक्ति से मूल जानकारियां जैसे नाम, पता, मूल निवासी, जिला आदि ही मांगी गई थीं। इसका एक समिति दायरा था।