दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर सुशील यादव ने कुछ ऐसा देखा जिसने उनकी जिंदगी बदल दी। साल 2008 में एक युवा को एक व्यक्ति की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया। चाकू गलती से उस आदमी के दिल पर लग गया था, जिससे उसकी मौत हो गई। लड़के को पता ही नहीं था कि उसकी गलती से एक शख्स की जान चली गई।
इंस्पेक्टर सुशील यादव ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया , “लड़के को पता नहीं था कि उसके चाकू से उस आदमी की मौत हो गई है जो उसकी बुआ से बहस कर रहा था। जब हमने उसे पकड़ा तो वह हंसने लगा मानो यह कोई मज़ाक हो।” यादव ने बच्चे के शब्द याद करते हुए कहा, “अंकल आप झूठ बोल रहे हो ना? मैंने उन्हें सब्जी काटने वाले चाकू से बहुत हल्के से मारा। क्या मुझे सच में गिरफ्तार किया जा रहा है?”
चाकू गलती से उस आदमी के दिल पर लग गया था, जिससे उसकी मौत हो गई। इंस्पेक्टर ने कहा, “अगर उस लड़के को बचपन में ही ठीक से सलाह दी गई होती तो उस दिन दो लोगों की जान बच सकती थी।” उस दिन से, दिल्ली पुलिस में 28 सालों के अनुभव वाले और अब स्पेशल सेल में कार्यरत यादव ने फैसला लिया कि वह ऐसी हत्याओं को रोकने और किशोरों को अच्छे नागरिक बनाने के लिए कुछ करेंगे।
सुशील यादव के अनुसार, शिक्षा और पालन-पोषण दो ऐसे तरीके हैं जिनसे किशोर अपराध को रोकने का उनका लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। एक जांच अधिकारी के रूप में उन्होंने किशोरों से जुड़े 20 मामलों की निगरानी की है, वहीं एक एसएचओ के रूप में उन्होंने लगभग 150 मामलों की निगरानी की है।
पिछले तीन सालों से पुलिस की ड्यूटी के बाद इंस्पेक्टर सुशील को नोएडा सेक्टर 62 स्थित अपने अपार्टमेंट के बगीचे में किंडरगार्टन से कक्षा 8 तक के 30 वंचित बच्चों को दिन में तीन घंटे पढ़ाते हुए देखा जा सकता है। बुनियादी शिक्षा के साथ-साथ, वह उन्हें जीवन के सबक सिखाते हैं, योग सिखाते हैं और पेड़ लगाने का महत्व भी बताते हैं। इसके लिए वह उनसे एक पैसा भी नहीं लेते।
पार्ट टाइम टीचर बनने की उनकी चाह तब और मजबूत हुई जब उन्होंने अपने पड़ोस में बारिश में झगड़ते कुछ बच्चों को देखा। इंस्पेक्टर ने कहा, “मैंने उन्हें अपने घर बुलाया और पढ़ाने के बारे में सोचा। उस दिन से मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।” सुशील यादव ने बताया कि वह स्कूल में एक औसत छात्र थे। उन्होंने कहा, “अगर मैं पुलिस में भर्ती हो सकता हूं तो ये होनहार बच्चे क्यों नहीं। पैसे को उनके सपनों के आड़े नहीं आना चाहिए। बस थोड़े से मार्गदर्शन से वे जो भी मन में ठान लें, वह कर सकते हैं।” उन्होंने कहा, “जब मैं घर पर नहीं होता तो मेरी पत्नी उन्हें पढ़ाती है। मेरा परिवार भी इसमें बराबर का हिस्सा है।”
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के हालिया आंकड़ों के अनुसार, 2022 में 37,780 किशोरों के खिलाफ कुल 30,555 मामले दर्ज किए गए। इनमें से 78% से अधिक किशोर 16-18 वर्ष के थे। दिल्ली पुलिस के आंकड़ों से पता चलता है कि 2014 से 2024 के बीच हत्या के मामलों में शामिल किशोरों का प्रतिशत 8.7% से बढ़कर 26.7% हो गया है।