भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की दिल्ली विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हुई है। लगभग 27 वर्षों के अंतराल के बाद बीजेपी दूसरी बार बहुमत के साथ दिल्ली में सरकार बनाएगी। 1993 में दिल्ली विधानसभा के अस्तित्व में आने से पहले राजधानी में एक महानगर परिषद थी। इसके पास 1966 से सिफारिशें करने की शक्ति थी लेकिन कानून बनाने की शक्ति नहीं थी।
जग प्रवेश चंद्र की अध्यक्षता में 1966 से 1967 तक अंतरिम परिषद के कार्यकाल के बाद 1967 से 1972 तक पहली महानगर परिषद में भारतीय जनसंघ की बहुमत वाली सरकार बनी। इसका नेतृत्व अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने किया, जो भाजपा के शीर्ष नेता और बाद में देश के उप प्रधानमंत्री बने। इसके बाद जनसंघ कई अन्य भारतीय राज्यों में सरकारों का हिस्सा बन गया।
दक्षिण दिल्ली के भाजपा सांसद रामवीर सिंह बिधूड़ी (जो पहली विधानसभा का हिस्सा थे) ने कहा, “दिल्ली महानगर परिषद, जिसने जनसंघ को पूर्ण बहुमत के साथ अपनी पहली सरकार बनाने का अवसर दिया, वह वर्ष 1990 में भंग कर दी गई। भाजपा ने वर्ष 1993 में मदन लाल खुराना के रूप में दिल्ली विधानसभा को अपना पहला मुख्यमंत्री दिया। उसके बाद साहिब सिंह वर्मा और फिर सुषमा स्वराज, पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।”
दिल्ली की लड़ाई में पूर्वांचली वोट किस ओर झुके? जानिए कहां से कौन जीता
हवाला के आरोपों में घिरे होने के बाद मदनलाल खुराना ने वर्मा के लिए अपना इस्तीफा दे दिया लेकिन बाद में उन्हें दोषमुक्त कर दिया गया। वर्ष 1998 में प्याज की कीमतों में वृद्धि के मुद्दे पर भाजपा सरकार सत्ता से बाहर हो गई। उस दौरान सीएम सुषमा स्वराज थीं। 27 साल बाद दोनों पूर्व भाजपा मुख्यमंत्रियों के बेटे (हरीश खुराना और परवेश वर्मा) मोती नगर और नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्रों से जीते हैं। 1998 में कांग्रेस ने चुनाव जीता और शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनीं। इस तरह से बीजेपी करीब तीन दशक बाद दिल्ली की सत्ता से बाहर हुई थी।
रामवीर बिधूड़ी ने कहा, “करीब 27 साल में यह पहली बार है कि पार्टी को पूर्ण बहुमत के साथ विधानसभा स्तर पर राजधानी के लोगों की सेवा करने का मौका मिलेगा।” लोकसभा और दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एस के शर्मा ने 1993 में दिल्ली विधानसभा की स्थापना को याद किया। उन्होंने कहा, “जो नेता परिषद में चुने जाते थे, वे अधिक शक्ति चाहते थे। वे कहते थे कि लोग उनके पास समस्याएं लेकर आते हैं और उनके पास कुछ भी करने की शक्ति नहीं है। 1993 में पहली विधानसभा अनुच्छेद 239एए की सीमाओं के भीतर काम करती थी। दिल्ली विधानसभा कानून-व्यवस्था, भूमि और पुलिस के मामलों पर कानून नहीं बना सकती थी। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 239AA, जो 1 फरवरी, 1992 को लागू हुआ, वह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए एक विधान सभा का प्रावधान करता है।
एस के शर्मा ने कहा, “यह बहुत स्पष्ट था कि यह (दिल्ली विधानसभा) अन्य विधानसभाओं की तरह विधानमंडल नहीं है। इसकी सीमाए हैं। इसे समानांतर संस्था के रूप में नहीं देखा गया था। हमने उनसे (खुराना सरकार) कहा था कि इस संस्था की शक्ति सीमित है और वे इसे समझते थे। यहां तक कि शीला जी भी इसे समझती थी।”
दिल्ली राज्य विधान सभा पहली बार 7 मार्च, 1952 को पार्ट-सी राज्य अधिनियम, 1951 के तहत अस्तित्व में आई थी। 1955 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के बाद 1 नवंबर, 1956 से दिल्ली पार्ट-सी राज्य नहीं रही और विधान सभा को समाप्त कर दिया गया। इसके बाद दिल्ली राष्ट्रपति के प्रत्यक्ष प्रशासन के तहत एक केंद्र शासित प्रदेश बन गई।
लोकतांत्रिक व्यवस्था की मांग के जवाब में और प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशों के आधार पर, 1966 का दिल्ली प्रशासन अधिनियम लागू किया गया, जिसमें एक सदनीय विचार-विमर्श निकाय (महानगर परिषद) के लिए प्रावधान किया गया। इसमें शासन के मामलों में सिफारिश करने की शक्तियां थीं। इसमें एक कार्यकारी परिषद जिसमें एक मुख्य कार्यकारी पार्षद, तीन कार्यकारी पार्षद, 56 निर्वाचित सदस्य और राष्ट्रपति द्वारा नामित पांच अन्य सदस्य शामिल थे।