दिल्ली हाईकोर्ट ने अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल कर एक महिला न्यायिक अधिकारी की गरिमा को ठेस पहुंचाने के लिए एक वकील को दी गई सजा कम करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि जेंडर के आधार पर अपशब्दों के माध्यम से किसी न्यायाधीश को धमकाने या डराने वाला कोई भी कृत्य न्याय पर हमला है।
हाई कोर्ट ने कहा कि यह महज व्यक्तिगत दुर्व्यवहार का मामला नहीं है बल्कि ऐसा मामला है जहां न्याय के साथ ही अन्याय हुआ और जहां कानून की निष्पक्ष आवाज की प्रतीक एक न्यायाधीश अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते समय व्यक्तिगत हमले का निशाना बनी। जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने कहा कि यह अत्यंत चिंता का विषय है कि कभी-कभी न्यायाधाीश भी लैंगिक दुर्व्यवहार से मुक्त नहीं रह पाते।
जस्टिस ने कहा, “जब एक महिला न्यायाधीश को अदालत के एक अधिकारी (जैसे इस मामले में एक वकील) द्वारा व्यक्तिगत अपमान और निरादर का सामना करना पड़ता है तो यह न केवल एक व्यक्तिगत अन्याय को दर्शाता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि महिलाएं आज भी न्याय व्यवस्था के उच्चतम स्तरों पर भी एक असुरक्षा का सामना करती हैं।
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अदालत ने 26 मई के अपने फैसले में आरोपी वकील को पहले ही जेल में बिताई गई पांच महीने की अवधि को सजा के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया। हालांकि, अदालत ने निचली अदालत के आदेश में यह संशोधन किया कि सजा एक साथ चलेंगी क्रमानुसार नहीं। निचली अदालत द्वारा अलग-अलग सजा को क्रमानुसार चलाने का जो निर्देश दिया गया था, उससे कुल सजा अवधि दो साल हो जाती। आदेश में संशोधन के बाद, 2015 में चालान मामले में महिला न्यायाधीश के प्रति अपशब्दों का प्रयोग करने वाले वकील की कुल सजा 18 महीने तक सीमित रहेगी।
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि यह अन्याय किसी अन्य वादी या अज्ञात शिकायतकर्ता पर नहीं था बल्कि यह एक वर्तमान में कार्यरत महिला न्यायिक अधिकारी पर किया गया, वह भी उसकी अपनी अदालत कक्ष के भीतर।अदालत ने कहा कि यह एक ऐसा स्थान है जो सम्मान, व्यवस्था और कानून की गरिमा का प्रतीक होना चाहिए।
अक्टूबर 2015 में एक दोषी वकील ने अपने मुवक्किल के चालान मामले को अगले दिन के लिए टाले जाने से नाराज होकर कड़कड़डूमा कोर्ट रूम में घुसकर महिला जज को गालियां दी थीं। इस घटना के बाद महिला जज ने पुलिस को लिखित शिकायत दी थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि वकील ने उनका अपमान किया है और एक महिला न्यायिक अधिकारी होने के नाते उनका शील भंग किया है साथ ही अदालत की गरिमा को भी ठेस पहुंचाई है। पुलिस ने इस मामले में वकील के खिलाफ IPC की धारा 354 (महिला का शील भंग करना) सहित संबंधित धाराओं के तहत FIR दर्ज की थी। पढ़ें- देश दुनिया की तमाम बड़ी खबरों के लेटेस्ट अपडेट्स