Bihar Voter List Revision: बिहार में जितनी चर्चा विधानसभा चुनाव को लेकर है उससे ज्यादा चर्चा इस बात की है कि वहां के लोग वोट कैसे डालेंगे क्योंकि वोट डालने में चुनाव आयोग के नए दिशा-निर्देशों के तहत लोगों को काफी मुश्किलें पेश आ रही हैं। बिहार के तमाम गांवों में लोग चुनाव आयोग की ओर से मांगे गए डॉक्यूमेंट्स को बनवाने के लिए भाग-दौड़ कर रहे हैं। राज्य में कुछ ही महीने के भीतर विधानसभा के चुनाव होने हैं।
चुनाव आयोग ने 25 जुलाई तक वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन का काम पूरा करने को कहा है। इसके लिए पूरे बिहार में जोर-शोर से तैयारी चल रही है। सबसे ज्यादा परेशान वे लोग हैं जिनका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में नहीं था। बिहार में ऐसे लोगों की संख्या 2.93 करोड़ है।
बताना जरूरी होगा कि चुनाव आयोग ने कहा है कि जरूरी 11 दस्तावेजों में से कोई एक उनके पास होना जरूरी है, तभी वे वोट डाल पाएंगे। विपक्ष ने कहा है कि बीजेपी के इशारे पर चुनाव आयोग बिहार के गरीब, दलित, पिछड़े और वंचित समाज के लोगों को परेशान कर रहा है।
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चुनाव आयोग का कहना है कि Representation of the People Act, 1950 के मुताबिक मतदाता सूची तैयार करने की जिम्मेदारी इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर्स Electoral Registration Officers (EROs) की होती है और चुनाव आयोग केवल दिशा-निर्देश दे सकता है। इस एक्ट के मुताबिक अंतिम फैसला ERO का ही होता है कि उसे किसी शख्स का नाम वोटर लिस्ट में शामिल करने का आवेदन स्वीकार करना है या नहीं।
कुल मिलाकर बात यह है कि बिहार के जिस तरह के सामाजिक-आर्थिक हालात हैं उसमें लोगों के लिए इन डॉक्यूमेंट्स में से किसी एक को भी जुटा पाना मुश्किल हो रहा है।
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आईए, समझने की कोशिश करते हैं कि चुनाव आयोग ने जो दस्तावेज मांगे हैं, वे क्या हैं और उनको बनवाने में लोगों को किस तरह की मुश्किलें पेश आ रही हैं।
1- चुनाव आयोग ने कहा है किसी भी केंद्रीय सरकार/राज्य सरकार/पीएसयू के नियमित कर्मचारी/पेंशनभोगी को जारी किया गया कोई पहचान पत्र/पेंशन भुगतान आदेश होना चाहिए। लेकिन बिहार जाति सर्वे 2022 के अनुसार, केवल 20.49 लाख लोग ही सरकारी सेवा में हैं मतलब कुल आबादी का सिर्फ 1.57%।
01.07.1987 से पहले भारत में सरकार/स्थानीय प्राधिकरण/बैंक/डाकघर/ एलआईसी /पीएसयू द्वारा जारी कोई भी पहचान पत्र/प्रमाणपत्र/दस्तावेज- इसमें स्थानीय निकाय में रोजगार का प्रूफ भी शामिल है। मुश्किल यह है कि इसका कोई डेटा उपलब्ध नहीं है।
किसी प्राधिकरण द्वारा जारी किया गया बर्थ सर्टिफिकेट। बर्थ सर्टिफिकेट आमतौर पर लोकल रजिस्ट्रार के द्वारा जारी किए जाते हैं जिन्हें राज्य सरकार Registration of Births and Deaths (RBD) Act, 1969 के जरिए नियुक्त करती है। ग्रामीण इलाकों में यह काम पंचायत सचिव, ब्लॉक डेवलपमेंट अफसर और प्राइमरी हेल्थ सेंटर के मेडिकल अफसर करते हैं जबकि शहरों में यह काम म्युनिसिपल कॉरपोरेशन और परिषदों के द्वारा किया जाता है।
नियमों के मुताबिक, बर्थ सर्टिफिकेट जारी करने में लगने वाला वक्त कुछ दिनों से लेकर काफी लंबा भी हो सकता है। इस मामले में बिहार का रिकॉर्ड काफी खराब है। भारत में साल 2000 से रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (Registrar General of India) ने इससे जुड़े आंकड़ों को इकट्ठा करना शुरू किया।
साल 2000 में बिहार में केवल 1.19 लाख जन्म का डाटा इकट्ठा हुआ था जो बिहार में पूरे साल भर में होने वाले जन्म का सिर्फ 3.7% था। 2007 में केवल 7.13 लाख जन्म का डाटा इकट्ठा हुआ, जो उस साल होने वाले जन्म का अनुमानित एक-चौथाई है।
इसके बाद बारी आती है, पासपोर्ट की। पासपोर्ट के लिए पुलिस सत्यापन और डॉक्यूमेंट की जरूरत होती है। 2023 तक बिहार में केवल 27.44 लाख वैध पासपोर्ट थे और यह बिहार की जनसंख्या का सिर्फ दो प्रतिशत था।
मैट्रिकुलेशन परीक्षा सीबीएसई, आईसीएसई और बिहार राज्य बोर्ड आयोजित करता है। बिहार जाति सर्वेक्षण 2022 के अनुसार, राज्य में केवल 14.71% लोग कक्षा 10वीं पास हैं और उन्होंने ग्रेजुएशन किया है। शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने 3 फरवरी, 2025 को लोकसभा में बताया कि कक्षा 6–8 में ड्रॉपआउट दर 26% है।
इससे पता चलता है कि आवेदक स्थायी निवासी है। इसके लिए आधार, राशन कार्ड, वोटर ID, मैट्रिक प्रमाणपत्र और एक हलफनामा देना होता है। फॉर्म को बीडीओ या कार्यकारी मजिस्ट्रेट के पास जमा करना होगा। इसमें 15 दिन तक का समय लगता है, डॉक्यूमेंट के वेरिफिकेशन से प्रक्रिया में देरी हो सकती है।
इसे जारी करने की प्रक्रिया ग्राम सभा के द्वारा शुरू की जाती है और जिला कलेक्टर या डिप्टी कमिश्नर की अध्यक्षता वाली एक जिला स्तरीय समिति इस संबंध में अंतिम फैसला लेती है।
जनजातीय मामलों के मंत्रालय के मुताबिक, 1 जून 2025 तक बिहार में Forest Rights Act के तहत केवल 4,696 दावे प्राप्त हुए, जिनमें से केवल 191 को मंजूरी मिली और 4,496 खारिज हो गए।
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बिहार कास्ट सर्वे 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में बिहार की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ थी। इसमें से ओबीसी 3.54 करोड़ (27%) और ईबीसी 4.70 (36%), अनुसूचित जाति 2.6 करोड़ (20 प्रतिशत), अनुसूचित जनजाति (एसटी) 22 लाख (1.6%) थे। लेकिन इन जाति समुदायों के कितने लोगों ने अपना प्रमाण पत्र प्राप्त किया है, इसके बारे में कोई सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
9- National Register of Citizens नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (जहां लागू हो) यह बिहार में लागू नहीं है।
यह ग्राम पंचायत या स्थानीय निकाय के द्वारा तैयार किया जाता है। इसमें परिवार के सभी लोगों की जानकारी होती है। अगर आपको फैमिली रजिस्टर में खुद का नाम दर्ज कराना है तो पंचायत या नगर निगम के कार्यालय में जाना होगा और इसके लिए आपको आधार, राशन कार्ड, बर्थ सर्टिफिकेट, मैरिज सर्टिफिकेट जैसा कोई डॉक्यूमेंट चाहिए। इसके बाद कोई संबंधित अधिकारी उस इलाके का दौरा करके वेरिफिकेशन करेगा और अगर सारे डॉक्यूमेंट सही हैं तो आपको रजिस्टर होने में 15 दिन या उससे ज्यादा का वक्त लग सकता है।
बिहार में अधिकतर परिवारों के पास जमीन नहीं है। 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना के अनुसार, 65.58% ग्रामीण परिवारों के पास कोई ज़मीन नहीं थी।
सीधे-सीधे और साफ शब्दों में बात यही है कि अगर आपके पास इन 11 में से कोई भी एक डॉक्यूमेंट नहीं है तो आप वोट नहीं दे पाएंगे। निश्चित रूप से इसे लेकर बिहार के गांवों में लोग परेशान हैं।
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