Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को लोगों को सलाह दी कि वे ईश्वर को जजों में न देखें, बल्कि न्याय में भगवान देखें। जस्टिस एम.एम. सुंदरेश ने यह टिप्पणी एक सुनवाई के दौरान की, जब एक वकील ने कहा कि वे जजों में ईश्वर को देखते हैं। जस्टिस एम.एम.सुंदरेश और जस्टिस के.विनोद चंद्रन की पीठ एक वकील की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सुंदरेश ने स्पष्ट किया कि जज सेवक होते हैं और आग्रह किया कि ईश्वर को न्याय में तलाशना चाहिए, न कि उनमें। सुंदरेश ने कहा कि ईश्वर को हम में मत तलाशिए, ईश्वर को न्याय में तलाशिए। हम तो बस एक सेवक हैं।

यह टिप्पणी एक वकील की आपत्ति के जवाब में आई, जो एक मुवक्किल द्वारा भेजे गए नोटिस के बारे में थी, जिसमें दावा किया गया था कि वकीलों ने जजों को फिक्स किया है। वकील ने नोटिस को “अवमाननापूर्ण” कहा।

कोर्ट ने वकील से भावुक न होने को कहा और कहा कि ऐसे मामले जजों को प्रभावित नहीं करते। जज ने कहा कि कृपया भावुक न हों। जज होने के नाते ये सब हमें परेशान नहीं करता।

इससे पहले पिछले साल भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने भी साफ तौर पर कहा था कि जजों को भगवान के बराबर मानने की प्रवृत्ति गलत है। उन्होंने कहा था कि जजों का कर्तव्य जनहित की सेवा करना है और आगाह किया था कि अगर लोग यह कहें कि अदालत न्याय का मंदिर है तो इसमें गंभीर खतरा है।

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जस्टिस चंद्रचूड़ ने कोलकाता में राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि जब हमें ‘सम्माननीय’ या ‘लॉर्डशिप’ या ‘लेडीशिप’ कहकर संबोधित किया जाता है, तो बहुत गंभीर खतरा होता है और लोग कहते हैं कि न्यायालय न्याय का मंदिर है। यह बहुत बड़ा खतरा है कि हम खुद को उन मंदिरों में देवताओं के रूप में देखने लगें।

उन्होंने आगे कहा था कि अतः मैं अपने बारे में बोल रहा हूं, हालांकि मेरे अपने व्यक्तिगत मूल्य हैं जो मेरे लिए अत्यंत निजी हैं, लेकिन जब मुझे बताया जाता है कि यह न्याय का मंदिर है तो मैं थोड़ा संकोच करता हूं, क्योंकि मंदिर में यह मान्यता है कि न्यायाधीश देवता के पद पर होते हैं। वहीं, कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से हिंदू पक्ष को झटका लगा है। पढ़ें…पूरी खबर।