Special Intensive Revision Bihar: विपक्षी दलों ने बिहार बंद के दौरान चुनाव आयोग के खिलाफ पूरे राज्य में जोरदार प्रदर्शन किया। महागठबंधन में शामिल दलों के प्रमुख नेता राहुल गांधी, तेजस्वी यादव सहित तमाम बड़े चेहरों ने मैदान में उतरकर इस प्रदर्शन का नेतृत्व किया। यह समझना जरूरी होगा कि बिहार में विपक्षी दल वोट लिस्ट के रिवीजन के खिलाफ क्यों हैं?

बिहार में कुछ ही महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। सभी राजनीतिक दल चुनाव के लिए अपनी तैयारी कर रहे थे लेकिन अचानक 24 जून को चुनाव आयोग का यह निर्देश आया कि बिहार में वोटर लिस्ट का वेरिफिकेशन या रिवीजन होगा। इसका सीधा-सीधा मतलब यह है कि चुनाव आयोग ने बिहार के लोगों से कहा है कि वे आयोग की ओर से बताए गए 11 प्रमाण पत्र में से किसी एक को बनवा लें वरना वे चुनाव में वोट नहीं डाल पाएंगे।

चुनाव आयोग का यह आदेश आते ही बिहार के राजनीतिक दलों में अफरा-तफरी मच गयी। राज्य में सरकार चला रही बीजेपी-जेडीयू और एनडीए के सहयोगी दलों ने इसका स्वागत तो किया हालांकि उन्होंने भी इसे लेकर चिंता जताई कि इतने कम वक्त में बिहार में ग्रामीण इलाकों के लोग वोटर वेरिफिकेशन कैसे करवा सकेंगे? विपक्ष ने तो इसे बहुत जोर-शोर से मुद्दा बनाया और चुनाव आयोग में दस्तक दी।

चुनाव आयोग ने मांगे हैं 11 डॉक्यूमेंट, एक भी बनवाना आसान नहीं… 

विपक्ष ने कहा कि चुनाव आयोग के इस फैसले से राज्य के 2-3 करोड़ मतदाताओं पर असर पड़ेगा और यह गरीबों, दलितों, पिछड़ों और समाज के वंचित लोगों के वोट काटने की साजिश है। एक बड़ा सवाल यह है कि क्या विपक्ष को इस बात का डर है कि वोटर लिस्ट के रिवीजन का चुनाव नतीजों पर असर हो सकता है। क्या उसे इस बात का डर है कि इससे उसे राजनीतिक नुकसान हो सकता है?

संविधान का अनुच्छेद 326 कहता है कि भारत में 18 साल से ऊपर का हर व्यक्ति भारतीय मतदाता के रूप में वोट डाल सकता है लेकिन इसके लिए शर्त यह है कि वह व्यक्ति भारत का नागरिक होना चाहिए। चुनाव आयोग का कहना है कि यह सुनिश्चित करना उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी है कि केवल भारत के नागरिक ही चुनाव में मतदान कर सकें और ऐसा करने के लिए चुनाव आयोग को नियमित अंतराल पर वोटर लिस्ट का रिवीजन करने या इसका वेरिफिकेशन करने की जरूरत होती है। ऐसा अखिल भारतीय स्तर पर होना है और इसकी शुरुआत बिहार से की जा रही है।

चुनाव आयोग का कहना है कि तेजी से शहरीकरण, लगातार माइग्रेशन, युवा वोटर्स का मतदान के लिए पात्र होना और विदेशी अवैध प्रवासियों के नाम का मतदाता सूची में शामिल होना वोटर लिस्ट के रिवीजन के पीछे अहम वजह है।

‘हमारे पास केवल आधार कार्ड है…’, बिहार के गांवों में परेशान हैं लोग

पटना पहुंचे विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि पहले महाराष्ट्र और अब बिहार में वोटों की चोरी करने की तैयारी है। विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव चुनाव आयोग पर बीजेपी के इशारे पर काम करने का आरोप लगा चुके हैं। हैदराबाद के सांसद और AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि वोटर लिस्ट का रिवीजन करके बिहार में पिछले दरवाजे से NRC लागू करने की कोशिश की जा रही है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी ऐसा ही आरोप लगाया है।

इन आरोपों के जवाब में चुनाव आयोग का साफ कहना है कि वोटर लिस्ट का वेरिफिकेशन किया जाना जरूरी है। इससे पहले 2003 में ऐसा किया गया था।

बिहार के बारे में कहा जाता है कि यहां पर कुछ इलाकों विशेषकर सीमांचल की जनसंख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। सीमांचल का इलाका बंगाल और नेपाल से सटा हुआ है। यह इलाका सिलीगुड़ी कॉरिडोर जिसे चिकन नेक भी कहते हैं, उससे भी लगता है और बांग्लादेश के करीब है। नेशनल हेराल्ड की 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक सीमांचल में 47% मुस्लिम आबादी है जबकि बिहार में यह 17% के आसपास है।

सीमांचल में किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया जिले आते हैं। इस तरह के आरोप लगाए जाते हैं कि यहां पर बड़ी संख्या में अवैध रूप से बांग्लादेशी नागरिक आकर बस गए हैं। सीमांचल में कुल 24 विधानसभा सीटें आती हैं।

द इंडियन एक्सप्रेस ने हाल ही में कई रिपोर्ट प्रकाशित कर बताया कि किस तरह वोटर लिस्ट के रिवीजन या वेरिफिकेशन को लेकर बिहार के गांवों में लोग परेशान हो रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने यह भी बताया था कि इन 11 में से किसी भी एक डॉक्यूमेंट को बनवाने के लिए लोगों को किन परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है। इसमें भी निवास प्रमाण पत्र के डॉक्यूमेंट की मांग सबसे ज्यादा है।

बिहार में कुल 7.9 करोड़ मतदाता हैं और इसमें से 5 करोड़ मतदाता 1 जनवरी 2003 को जब अंतिम बार वोटर लिस्ट का रिवीजन या वेरिफिकेशन किया गया था, उसमें शामिल थे। ऐसे लोगों को उस वोटर लिस्ट का हवाला देना होगा। बचे हुए 2.9 करोड़ मतदाताओं को चुनाव आयोग ने 11 जो डॉक्यूमेंट मांगे हैं, उसमें से कम से कम एक डॉक्यूमेंट देना जरूरी होगा। तभी वे चुनाव में वोट डाल पाएंगे।

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समझने वाली सबसे अहम बात यह है कि आम लोगों के पास आधार कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, मनरेगा का जॉब कार्ड होता है और इनका प्रयोग पूरे भारत में अपनी पहचान साबित करने के लिए प्रमाण पत्र के रूप में किया जाता है लेकिन इनके होने से आप बिहार के विधानसभा चुनाव में वोट नहीं डाल सकते क्योंकि इनमें से कोई भी डॉक्यूमेंट आपकी नागरिकता का प्रमाण नहीं है। लोगों को यह साबित करने के लिए इन डॉक्यूमेंट में से किसी एक को देना होगा और तभी यह साबित हो सकेगा कि वह भारत के नागरिक हैं।

1- सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के कर्मचारी या पेंशनभोगी का पहचान पत्र / पेंशन भुगतान आदेश2- सरकार, स्थानीय निकाय, बैंक, डाकघर, एलआईसी, पीएसयू द्वारा जारी पहचान पत्र/प्रमाणपत्र/दस्तावेज (1 जुलाई, 1987 से पूर्व)3- सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र।4- पासपोर्ट।5- किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड या विश्वविद्यालय से मैट्रिकुलेशन / शैक्षिक प्रमाणपत्र।6- सक्षम राज्य प्राधिकारी द्वारा जारी स्थायी निवास प्रमाण पत्र।7- वन अधिकार प्रमाण पत्र8- ओबीसी / एससी / एसटी या कोई भी वैध जाति प्रमाण पत्र।9- राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी), जहां यह हो।1- परिवार रजिस्टर।11- सरकार की ओर से जारी जमीन या मकान आवंटन प्रमाण पत्र।

चुनाव आयोग के निर्देश के बाद तमाम राजनीतिक दलों ने अपने-अपने कार्यकर्ताओं को मतदाताओं के वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन के काम में लगाया है लेकिन चूंकि मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा है और यह काम 25 जुलाई तक पूरा होना है इसलिए बेहद कम वक्त में ऐसा कर पाना मुश्किल साबित हो रहा है।

यहां बताना जरूरी होगा कि साल 1987 और 2004 में भारत में अवैध प्रवासियों को नागरिकता प्राप्त करने से रोकने के लिए कानून बनाए गए थे। चुनाव आयोग का यह दिशा-निर्देश Citizenship Amendment Act, 2003 के मुताबिक है। इसे 2004 में नोटिफाई किया गया था और इस कानून के आधार पर ही डॉक्यूमेंट मांगे गए हैं।

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1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे लोगों के नाम 2003 की वोटर लिस्ट में होने की ज्यादा संभावना है। 2003 की वोटर लिस्ट को वेरिफिकेशन के लिए आधार माना जाएगा और इस लिस्ट में शामिल लोग और उनके बच्चे मतगणना का फॉर्म भरने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।

सीधी तौर पर यह समझना जरूरी है कि 1 जुलाई 1987 और 2 दिसंबर 2004 के बीच पैदा हुए लोगों को अपने जन्म की तारीख और जगह बताते हुए चुनाव आयोग के द्वारा जारी की गई सूची के 11 डॉक्यूमेंट्स में से एक डॉक्यूमेंट देना होगा। इसके साथ ही माता या पिता में से भी किसी का कोई एक दस्तावेज देना होगा। ऐसे लोग जिनका जन्म 2 दिसंबर, 2004 के बाद हुआ है उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए जन्म की तारीख और जगह का डॉक्यूमेंट देना होगा। इसके अलावा माता-पिता दोनों की नागरिकता को प्रमाणित करने वाले डॉक्यूमेंट भी चुनाव आयोग को देने होंगे। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है और अदालत में इस मामले में 10 जुलाई को सुनवाई की अगली तारीख रखी गई है।

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