Bihar Electoral Rolls Revision: बिहार में जबरदस्त हल्ला और शोर वोटर लिस्ट के रिवीजन को लेकर है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस मामले में सुनवाई के दौरान वोटर लिस्ट के रिवीजन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। अदालत ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड से भी वोट डाले जाने के बारे में विचार करे। अब इस मामले में अगली सुनवाई 28 जुलाई को होनी है।

विपक्ष का लगातार आरोप है कि चुनाव आयोग की इस एक्सरसाइज से बड़ी संख्या में बिहार में गरीब, पिछड़े, दलित और वंचित समाज के लोग वोट नहीं डाल सकेंगे।

बहरहाल, इस खबर में हम यह जानेंगे कि देश में इससे पहले वोटर लिस्ट का रिवीजन या वेरिफिकेशन कब हुआ, ऐसा करने की जरूरत क्यों पड़ी और समय बीतने के साथ चुनाव आयोग ने किस तरह के कदम उठाए।

‘बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन के मामले में कुछ भी गलत नहीं…’

पहले यह जानना जरूरी है कि Intensive Revision यानी वोटर लिस्ट के गहन रिवीजन के दौरान क्या होता है? इस दौरान घर-घर जाकर मतदाताओं से जुड़ी जानकारी ली जाती है। ऐसा तब किया जाता है जब चुनाव आयोग कहता है कि मौजूदा वोटर लिस्ट पुरानी हो चुकी है, गलत है या इसे फिर से बनाना जरूरी है। आमतौर पर ऐसा बड़े चुनावों से पहले या लोकसभा और विधानसभा सीटों के परिसीमन के बाद होता है।

रिवीजन का जो दूसरा तरीका है, इसमें इसे एनुअल अपडेट किया जाता है क्योंकि वोटर लिस्ट के ड्राफ्ट को प्रकाशित करना होता है। इसमें लोगों के नाम शामिल करने होते हैं या हटाने होते हैं या उनमें किसी तरह का संशोधन करना होता है लेकिन इसमें कोई डोर टू डोर विजिट नहीं होती।

तीसरा तरीका Special Intensive Revision (SIR) स्पेशल गहन रिवीजन का होता है। यह तब किया जाता है जब वोटर लिस्ट में बड़े पैमाने पर गलतियां हो या फिर कोई कानूनी या राजनीतिक बाध्यता हो। ऐसा होने पर यह पता चलता है कि चुनाव आयोग 1950 की धारा 21(3) के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर रहा है और यह उसे वोटर लिस्ट को उस ढंग से संशोधित करने की इजाजत देता है, जैसा वह सही समझे।

बिहार के मामले को देखें तो चुनाव आयोग ने मिला-जुला रुख अपनाया है। इसमें घर-घर जाकर वेरिफिकेशन किया जा रहा है और ऐसा गहन रिवीजन (Intensive Revision) में किया जाता है और दूसरी तरफ Summary Revision भी है। इसमें एक बात यह अलग है कि जब (Special Intensive Revision – SIR) होना है तो इसमें नामांकन के वक्त ही प्रूफ के तौर पर डॉक्यूमेंट मांगा गया है।

चुनाव आयोग ने मांगे हैं 11 डॉक्यूमेंट, एक भी बनवाना आसान नहीं…

24 जून को चुनाव आयोग ने कहा था कि देशभर में वोटर लिस्ट का वेरिफिकेशन किया जाएगा। पिछले दो दशक से भी ज्यादा वक्त में यह पहली ऐसी प्रक्रिया होगी और इसे बिहार से शुरू किया जा रहा है। बताना होगा कि बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं।

चुनाव आयोग का कहना है कि तेजी से शहरीकरण, लगातार माइग्रेशन, युवा वोटर्स का मतदान के लिए पात्र होना और विदेशी अवैध प्रवासियों के नाम का मतदाता सूची में शामिल होना वोटर लिस्ट के रिवीजन के पीछे अहम वजह है। आयोग का यह भी कहना है कि मतदाता के रूप में नामांकन से पहले हर शख्स का वेरिफिकेशन करने के लिए एक बड़ा अभियान चलाने की जरूरत है। आयोग ने इस मामले में राजनीतिक दलों की ओर से की गई शिकायतों का भी हवाला दिया है। बताना होगा कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी महाराष्ट्र की मतदाता वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के आरोप लगा चुके हैं।

देश में इससे पहले कई बार वोटर लिस्ट का SIR किया जा चुका है। 1952-56, 1957, 1961, 1965, 1966, 1983-84, 1987-89, 1992, 1993, 1995, 2002, 2003 और 2004 में ऐसा किया गया था। 1951-52 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए तब वोटर लिस्ट को ठीक करना एक जरूरी काम था क्योंकि इसमें बहुत सारी गड़बड़ियां थीं। इस दौरान पड़े पैमाने पर महिलाओं को बाहर रखा गया था। उस समय चुनाव प्रक्रिया भी बहुत मजबूत नहीं थी लेकिन अब वक्त बदल गया है और राजनीतिक दल वोटर लिस्ट तैयार करने के लिए एजेंट की नियुक्ति करते हैं।

वक्त बदलने के साथ जब पूरी तरह से वोटर लिस्ट का वेरिफिकेशन नहीं हुआ तो हालात कुछ और भी खराब हुए इसलिए चुनाव आयोग ने इनके SIR का काम शुरू किया। 1957 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने काफी काम किया और 1952 और 56 के बीच हर राज्य के एक पांचवें हिस्से को कवर किया।

इसके बाद 1962 के चुनाव से पहले और 1957 से 1961 तक हर साल एक तिहाई हिस्से को कवर किया। इसमें उन्हें जगहों पर जोर दिया गया जहां पर वोटर लिस्ट में गड़बड़ियां ज्यादा थीं। 1956 में जब राज्यों का पुनर्गठन हुआ और 1960 में परिसीमन की कार्रवाई हुई तो वोटर लिस्ट में नए संशोधन भी किए गए।

1980 तक वोटर लिस्ट में अपात्र मतदाताओं विशेषकर विदेशी नागरिकों को शामिल होने से रोकने पर चुनाव आयोग ने ध्यान दिया। इसके लिए विशेष निर्देश दिए गए और चुनाव आयोग को बॉर्डर वाले राज्यों विशेषकर पूर्वोत्तर के मुख्यमंत्रियों से शिकायत भी मिली। जिसमें यह कहा गया कि बड़ी संख्या में विदेशी नागरिकों का नाम भी वोटर लिस्ट में शामिल है। चुनाव आयोग ने कहा कि वोटर लिस्ट में जो नाम हैं उन्हें एक निश्चित प्रक्रिया का पालन करके ही हटाया जाएगा।

1993 और 95 में चुनाव आयोग ने फिर से देश भर में वोटर लिस्ट के SIR का आदेश दिया। समय बीतने के साथ ही वोटर लिस्ट में सुधार किया गया और चुनाव आयोग वक्त की जरूरत के मुताबिक वोटर लिस्ट में रिवीजन किया।

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