India-Afghanistan Relations 2025: अंतरराष्ट्रीय राजनीति में इन दिनों भारत और तालिबान के बीच बढ़ती दोस्ती को लेकर चर्चा हो रही है। कुछ दिन पहले भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री और तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के बीच बैठक हुई थी। भारत और तालिबान के संबंधों को लेकर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी लगातार चर्चा हो रही है।
याद दिलाना होगा कि साल 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था तो यह कहा गया था कि यह पाकिस्तान की बड़ी जीत है और भारत की नाकामी है लेकिन 3 साल में ही माहौल पूरी तरह बदल गया। अब न सिर्फ तालिबान और भारत नजदीक आ रहे हैं बल्कि पाकिस्तान के साथ तालिबान की दूरियां लगातार बढ़ते जा रही हैं।
बताना होगा कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच पिछले कुछ दिनों से जंग जैसे हालात हैं और इसमें दोनों ओर के कई लोग मारे जा चुके हैं। इस जंग में भी भारत अफगानिस्तान के साथ खड़ा हुआ और उसने पाकिस्तान के द्वारा की गई एयर स्ट्राइक की निंदा की थी।
पाकिस्तान में किस तरह देखी जा रही भारत और तालिबान की मीटिंग?
भारत ने पिछले 20 साल में अफगानिस्तान में तमाम तरह के प्रोजेक्ट शुरू किए हैं और तीन अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है। भारत की अफगानिस्तान को लेकर सबसे बड़ी चिंता यही है कि किसी भी भारत विरोधी आतंकवादी समूह को अफगानिस्तान में चलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता संभालने के बाद से ही भारत लगातार उसके साथ तालमेल बढ़ाने की कोशिश कर रहा था। 31 अगस्त, 2021 को कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल तालिबान के दोहा दफ्तर में पहुंचे थे और वहां उन्होंने तालिबान के नेताओं से मुलाकात की थी। इसके बाद भी भारत लगातार तालिबान के संपर्क में बना रहा और जून 2022 में विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव जेपी सिंह तालिबान के प्रमुख नेताओं से मिले थे और इसके बाद काबुल में स्थित भारतीय दूतावास में एक तकनीकी टीम भेजने का रास्ता खुला था।
पिछले साल नवंबर में तालिबान ने मुंबई में अफगान कांसुलेट में अपने एक अधिकारी को तैनात किया था।
अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति में सुधार हुआ है। हालांकि महिलाओं के अधिकारों के मामले में भारत थोड़ा परेशान है। तालिबान ने भारतीय हितों और दूतावास परिसर के लिए सुरक्षा की गारंटी सुनिश्चित की है। तालिबान ने यह भी कहा है कि वह इस्लामिक स्टेट खुरासान से लड़ रहा है और भारत भी इस आतंकी संगठन को लेकर चिंतित है।
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तालिबान ने इस बात पर जोर दिया है कि मानवीय सहायता और विकास परियोजनाओं के मामले में वह भारत की मदद का स्वागत करता है। बताना होगा कि भारत ने अफ़गान लोगों की ज़रूरतों के लिए उसे काफी मानवीय सहायता दी है। भारत अब तक 50,000 मीट्रिक टन गेहूं, 300 टन दवाइयां, 40,000 लीटर कीटनाशक, 100 मिलियन पोलियो खुराक, कोविड वैक्सीन की 1.5 मिलियन खुराक, नशा मुक्ति कार्यक्रम के लिए 11,000 यूनिट स्वच्छता किट, 500 यूनिट सर्दियों के कपड़े और 1.2 टन स्टेशनरी किट सहित कई और सामान भेज चुका है। 2024-25 के केंद्रीय बजट में भारत ने अफगानिस्तान के लिए 200 करोड़ रुपये की सहायता आवंटित की है। दूसरी ओर, पाकिस्तान ने 5,00,000 से अधिक शरणार्थियों को देश से बाहर निकाल दिया था जिससे अफगानिस्तान में मानवीय संकट पैदा हो गया है।
कुल मिलाकर अफगानिस्तान में अमेरिका के जाने अशरफ गनी की सरकार के हटने और तालिबान के सत्ता संभालने के बाद से पाकिस्तान ने जो कुछ सोचा था वैसा नहीं हुआ और अफगानिस्तान और तालिबान भारत के नजदीक आ गए।
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भारत और अफगानिस्तान के बीच पुराने संबंध रहे हैं लेकिन तालिबान को लेकर नई दिल्ली या भारत सरकार हमेशा सावधान रहते थे। लेकिन अब जब भारत और तालिबान के बीच रिश्ते सामान्य हो रहे हैं तो अफगानिस्तान में जिन विकास परियोजनाओं पर काम रुका हुआ था, उन पर भारत फिर से काम शुरू कर सकता है। इसके अलावा भारत ने काबुल को व्यापार के लिए ईरान के चाबहार बंदरगाह का इस्तेमाल करने का भी ऑफर किया है। अगर भारत और अफगानिस्तान नजदीक आते हैं तो निश्चित रूप से इससे सबसे ज्यादा परेशानी पाकिस्तान को होगी।
पाकिस्तान की कोशिश रही है कि तालिबान का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया जाए लेकिन अब तालिबान पाकिस्तान के लिए ही खतरा बन गया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान में 6,000-6,500 टीटीपी लड़ाके पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। पाकिस्तान के खिलाफ टीटीपी के हमलों की बढ़ती घटनाओं के बाद भी उसके पास तालिबान का समर्थन हासिल है।
कहा जा सकता है कि भारत आने वाले वक्त में अफगानिस्तान को और मानवीय सहायता देगा और इससे इन दोनों देशों के रिश्ते बेहतर होंगे।
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