ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के बीच तेहरान स्थित भारतीय दूतावास ने मंगलवार को कम से कम 110 फंसे हुए भारतीय छात्रों को देश से सुरक्षित बाहर निकालने में सफलता पाई। इन छात्रों को नूरदुज-अगारक सीमा पार कराकर आर्मेनिया पहुंचाया गया। वहां से ये छात्र राजधानी येरेवन भेजे गए। इन्हें लेकर एक विशेष विमान गुरुवार सुबह नई दिल्ली पहुंचेगा।
ईरानी हवाई क्षेत्र के अनिश्चितकालीन बंद होने के कारण, भारत के लिए हवाई मार्ग से निकासी संभव नहीं रही। ऐसे में जमीनी सीमाओं के जरिये रास्ता निकालना पड़ा। यह भारत के लिए एक जटिल चुनौती थी, खासकर इसलिए क्योंकि ईरान के कुछ पड़ोसी देशों से भारत के रिश्ते वर्तमान में तनावपूर्ण हैं, जो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद और भी बिगड़ गए हैं।
पाकिस्तान, जो भारत का प्रमुख भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी है, हाल ही में सैन्य तनाव का केंद्र रहा है। बलूच मातृभूमि में ईरान और पाकिस्तान के बीच की सीमा भी इस निकासी के लिए बंद है। इसी तरह तुर्की और अजरबैजान की सीमाएं भी ईरान से लगी होने के बावजूद भारत के लिए अनुपलब्ध रहीं। इन दोनों देशों ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया था, जिससे नई दिल्ली के साथ उनके रिश्ते और बिगड़े हैं।
भारत के तालिबान-शासित अफगानिस्तान के साथ भी कोई औपचारिक संबंध नहीं हैं, जो ईरान के पूर्व में स्थित है। इन स्थितियों में केवल तीन देशों के रास्ते ही सैद्धांतिक रूप से खुले बचे थे—तुर्कमेनिस्तान, इराक और आर्मेनिया।
ईरान-तुर्कमेनिस्तान सीमा क्षेत्र में आबादी बहुत कम है, खासकर ईरानी हिस्से में, जिससे रसद की बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती थी। वहीं, इराक के साथ सीमा ईरान और इजरायल के संघर्ष की आग की सीध में आती है। हालांकि यह सीमा फिलहाल खुली है, लेकिन इराक के ज्यादातर हवाई अड्डे युद्ध की आशंका के चलते बंद कर दिए गए हैं।
ऐसे में ईरान और आर्मेनिया के बीच स्थित केवल 44 किलोमीटर लंबी सीमा भारतीय निकासी के लिए सबसे व्यवहारिक विकल्प बनकर सामने आई। खास बात यह रही कि तेहरान और नूरदुज-अगारक सीमा बिंदु के बीच की लगभग 730 किलोमीटर की दूरी एक प्रमुख राजमार्ग से अच्छी तरह जुड़ी हुई है, जिससे राहत कार्य आसान हो गया।
इस घटनाक्रम ने भारत और आर्मेनिया के वर्षों पुराने लेकिन हालिया प्रगाढ़ हुए संबंधों को एक नया आयाम दिया है। दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रिश्ते सहस्राब्दियों पुराने हैं, लेकिन मौजूदा रणनीतिक गठबंधन कुछ अहम भू-राजनीतिक कारणों की वजह से बना है।
तुर्की और पाकिस्तान द्वारा अज़रबैजान के पक्ष में खुलकर खड़े हो जाने के बाद भारत ने नागोर्नो-करबाख विवाद में आर्मेनिया का समर्थन करना शुरू किया। नई दिल्ली ने हाल के वर्षों में रूस को पीछे छोड़ते हुए आर्मेनिया का सबसे बड़ा सैन्य आपूर्तिकर्ता बनने की दिशा में कदम बढ़ाया है। 2022 में हुए 250 मिलियन डॉलर के रक्षा सौदे के तहत भारत ने पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर, आकाश-1एस वायु रक्षा प्रणाली और अन्य हथियार आर्मेनिया को आपूर्ति किए।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आर्मेनिया ने भारत का सक्रिय समर्थन किया है। विशेष रूप से कश्मीर मामले में भारत के रुख का समर्थन करते हुए आर्मेनिया ने इसे पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय स्तर पर सुलझाने की बात कही। इसके साथ ही, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता दिलाने की भारत की कोशिशों का भी आर्मेनिया ने समर्थन किया है।
भौगोलिक दृष्टि से भी आर्मेनिया भारत के लिए बेहद अहम है। यह दक्षिणी काकेशस क्षेत्र में स्थित है और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस गलियारे के माध्यम से भारत, ईरान और आर्मेनिया को जोड़ते हुए यूरोप तक व्यापारिक पहुँच बनाना चाहता है। इस परियोजना का उद्देश्य भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती देना और क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ाना है।