असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने मंगलवार को कहा कि “अगर चीन ब्रह्मपुत्र में पानी का प्रवाह कम कर दे, तो इससे असम में हर वर्ष आने वाली बाढ़ की समस्या को कम करने में मदद मिल सकती है।” यह टिप्पणी उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए की, जिसमें उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की ओर से यह “धमकी” दी गई है कि चीन ब्रह्मपुत्र का प्रवाह बाधित कर सकता है। यह वही नदी है जिसका उद्गम तिब्बत में यारलुंग त्संगपो (Yarlung Tsangpo) के रूप में होता है। मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी उस पृष्ठभूमि में आई है, जब अप्रैल में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है।

उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “चीन ब्रह्मपुत्र के कुल प्रवाह में केवल लगभग 30–35% का योगदान करता है — जो मुख्यतः हिमनदों के पिघलने और तिब्बत में सीमित वर्षा से आता है। बाकी 65–70% प्रवाह भारत के भीतर उत्पन्न होता है, जो अरुणाचल प्रदेश, असम, नागालैंड और मेघालय में मूसलाधार मानसून वर्षा के कारण होता है। इसमें सुबनसिरी, लोहित, कामेंग, मानस, धनसिरी, जिया-भरली, कोपिली जैसी प्रमुख सहायक नदियां शामिल हैं। इसके अलावा खासी, गारो और जैंतिया पहाड़ियों से निकलने वाली कृष्णाई, दिगारू और कुलसी जैसी नदियां भी इसमें अतिरिक्त प्रवाह जोड़ती हैं।”

उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा कि भारत-चीन सीमा पर, जहां त्संगपो नदी अरुणाचल प्रदेश में सियांग नदी के रूप में टूटिंग में प्रवेश करती है, वहां प्रवाह लगभग 2,000–3,000 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड होता है। जबकि गुवाहाटी के पास असम के मैदानी इलाकों में मानसून के दौरान यह प्रवाह बढ़कर लगभग 15,000–20,000 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड तक पहुंच जाता है। इन आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने लिखा कि ब्रह्मपुत्र “कोई ऐसी नदी नहीं है जिस पर भारत पूरी तरह निर्भर हो” बल्कि “यह एक वर्षा आधारित भारतीय नदी प्रणाली है, जो भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद ही अपनी पूरी शक्ति हासिल करती है।”

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उन्होंने यह भी लिखा, “भले ही चीन जल प्रवाह को कम कर दे – जिसकी संभावना बहुत कम है क्योंकि चीन ने कभी किसी आधिकारिक मंच पर इस तरह की धमकी या संकेत नहीं दिया – तब भी यह वास्तव में भारत को असम में हर साल आने वाली बाढ़ को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है, जो लाखों लोगों को विस्थापित करती है और उनकी आजीविका को नष्ट कर देती है।”

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उन्होंने पाकिस्तान पर भी निशाना साधा और लिखा, “पाकिस्तान – जिसने सिंधु जल संधि के तहत 74 वर्षों तक तरजीही जल पहुंच का शोषण किया – अब भारत द्वारा अपने संप्रभु अधिकारों की फिर से वापस लेने से घबरा गया है।” उन्होंने जोड़ा, “हमें उन्हें याद दिलाना चाहिए कि ब्रह्मपुत्र एक ऐसी नदी नहीं है जिसे केवल एक ही स्रोत नियंत्रित करता हो – यह हमारे भूगोल, हमारे मानसून और हमारी सभ्यता की लचीलापन से संचालित होती है।”

मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब असम में ब्रह्मपुत्र और कई अन्य नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं और पूर्वोत्तर के कई हिस्से बाढ़ की चपेट में हैं।