Madhya Pradesh BJP: मध्य प्रदेश में बीजेपी के नेतृत्व वाली मोहन यादव सरकार अहिल्याबाई होल्कर की जयंती को बड़े पैमाने पर मनाने जा रही है। अहिल्याबाई होल्कर 18वीं शताब्दी की मराठा रानी थीं। इस महीने के अंत में उनकी 300वीं जयंती पर राज्य सरकार कई बड़े कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। ये कार्यक्रम सितंबर, 2024 से शुरू हुए और 9 महीने तक चले और इस दौरान पूरे प्रदेश के कई शहरों में कार्यक्रम हुए।

खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन कार्यक्रमों का हिस्सा बनेंगे। समापन के मौके पर 31 मई को मोदी इंदौर मेट्रो रेल के पहले चरण के साथ-साथ दतिया और सतना हवाई अड्डों का उद्घाटन करेंगे, साथ ही भोपाल में ‘महिला सशक्तिकरण महासम्मेलन’ को संबोधित करेंगे।

मोहन यादव सरकार के इस कदम को राजनीति से जोड़कर भी देखा जा रहा है लेकिन बीजेपी और RSS इससे इनकार करते हैं। अहिल्याबाई होल्कर ने रानी रहते हुए प्रशासनिक कामों के अलावा कई शिव मंदिरों को फिर से बनवाया था।

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हाल ही में इंदौर में अहिल्याबाई होल्कर के रजवाड़ा पैलेस में मध्य प्रदेश कैबिनेट की बैठक हुई थी। इस बैठक में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने 3876 करोड़ रुपए के विकास के कामों को मंजूरी दी थी। राज्य की सरकार महिला स्टार्टअप नीति पर काम कर रही है जिसमें अहिल्याबाई पर प्रदर्शनियां होगी और इसमें महिला कारीगरों और उद्यमियों को प्रमुखता से आगे रखा जाएगा। इन अभियानों की जिम्मेदारी खुद मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अपने हाथ में ली है।

इंदौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के एक सीनियर नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “ऐसा कहना गलत होगा कि बीजेपी और आरएसएस अहिल्याबाई होल्कर का इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर रहे हैं। संघ चाहता है कि समाज को उनके कामों के बारे में पता चले। पूरे देश को अहिल्याबाई होल्कर के बारे में क्यों नहीं जानना चाहिए?”

मध्य प्रदेश में बीजेपी के नेता भी इस बात का खंडन करते हैं कि अहिल्याबाई होल्कर की जयंती को इतने बड़े पैमाने पर मनाने के पीछे किसी तरह का राजनीतिक फायदा हासिल करने की मंशा है। इंदौर ग्रामीण के जिला अध्यक्ष घनश्याम नारोलिया बताते हैं कि हम अहिल्याबाई होल्कर की कहानी को अखिल भारतीय स्तर पर ले जाना चाहते हैं।

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इस मामले में मुख्यमंत्री मोहन यादव के एक हालिया बयान को भी याद करना जरूरी होगा। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा था, “मुगलों ने हमारे देवस्थानों को तोड़ने का अभियान चलाया। मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि अहिल्याबाई होल्कर को छोड़कर किसी भी बड़े शासक ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।”

माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दीपक तिवारी बताते हैं कि अन्य मुख्यमंत्रियों ने धार्मिक और ऐतिहासिक हस्तियों को प्रमुखता से पेश किया लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि इतने बड़े पैमाने पर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। वह बताते हैं पहली बार 2003 में उमा भारती के वक्त में साधु राजनीति में आए थे लेकिन सरकारी स्तर पर किसी धार्मिक व्यक्ति का उत्सव इससे पहले नहीं दिखाई दिया था।

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