संयुक्त राष्ट्र की एक नई जनसांख्यिकी (Demographic) रपट में कहा गया है कि भारत की जनसंख्या 2025 के अंत तक एक अरब 46 करोड़ 39 लाख पहुंचने का अनुमान है, जो दुनिया में सर्वाधिक होगी। रपट में यह खुलासा भी किया गया है कि देश की कुल प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर से नीचे आ गई है। इस रपट में यह भी कहा गया है कि वित्तीय सीमाएं भारत में प्रजनन स्वतंत्रता के लिए सबसे बड़ी बाधाओं में से एक हैं और करीब 38 फीसद उत्तरदाताओं का कहना है कि यह उन्हें मनचाहा परिवार पाने से रोक रही है।

‘वास्तविक प्रजनन संकट’ शीर्षक वाली यूएनएफपीए (UNFPA) की ‘विश्व जनसंख्या स्थिति (SOWP) रपट 2025’ में कहा गया है कि लाखों लोग अपने वास्तविक प्रजनन लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं। रपट के अनुसार कम जनसंख्या या अधिक जनसंख्या के बजाय वास्तविक संकट यही है तथा इसका उत्तर बेहतर प्रजनन क्षमता में निहित है, अर्थात किसी व्यक्ति की गर्भनिरोधक और परिवार शुरू करने के बारे में निर्णय लेने की क्षमता। रपट में जनसंख्या संरचना, प्रजनन क्षमता और जीवन प्रत्याशा में महत्त्वपूर्ण बदलावों का भी खुलासा किया गया है, जो एक बड़े जनसांख्यिकीय परिवर्तन का संकेत है।

रपट में पाया गया कि भारत की कुल प्रजनन दर घटकर प्रति महिला 1.9 जन्म रह गई है, जो प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से नीचे है। इसका अर्थ यह है कि औसतन भारतीय महिलाएं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जनसंख्या का आकार बनाए रखने के लिए आवश्यक संख्या से कम बच्चे पैदा कर रही हैं। जन्म दर में कमी के बावजूद भारत की युवा जनसंख्या अब भी अहम बनी हुई है, जिसमें 0-14 आयु वर्ग में 24 फीसद, 10-19 आयु वर्ग में 17 फीसद तथा 10-24 आयु वर्ग में 26 फीसद युवा हैं।

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देश की 68 फीसद जनसंख्या कामकाजी आयु (15-64) वाली है, जो पर्याप्त रोजगार और नीतिगत समर्थन के साथ संभावित जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान करती है। संयुक्त राष्ट्र की रपट में भारत को मध्यम आय वाले देशों के समूह में रखा गया है, जो तेजी से जनसांख्यिकीय परिवर्तन से गुजर रहे हैं, जहां जनसंख्या दोगुनी होने में अब 79 वर्ष का समय लगने का अनुमान है। यूएनएफपीए की भारत प्रतिनिधि एंड्रिया एम वोज्नर ने कहा कि भारत ने प्रजनन दर कम करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है-1970 में प्रति महिला लगभग पांच बच्चों से लेकर आज लगभग दो बच्चों तक, जिसका श्रेय बेहतर शिक्षा और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच को जाता है।

इस रपट के लिए किए गए अध्ययन में भारत सहित 14 देशों में 14,000 उत्तरदाताओं से आनलाइन बात की गई। प्रतिभागियों में से 1,048 वयस्क भारत से थे। अध्ययन में वित्तीय सीमाओं को प्रजनन स्वतंत्रता में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक बताया गया है, जिसमें भारत में 38 फीसद उत्तरदाताओं ने कहा कि वित्तीय सीमाएं उन्हें मनचाहा परिवार बनाने से रोक रही हैं।

रपट में कहा गया है कि नौकरी की असुरक्षा (21 फीसद), आवास की कमी (22 फीसद) और भरोसेमंद बाल देखभाल की कमी (18 फीसद) के कारण माता-पिता बनना पहुंच से बाहर लगता है। इसके अलावा, खराब सामान्य स्वास्थ्य (15 फीसद), बांझपन (13 फीसद) और गर्भावस्था से संबंधित देखभाल तक सीमित पहुंच (14 फीसद) जैसी स्वास्थ्य बाधाएं भी हैं।