उम्मीद की जा रही है कि भारतीय प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ द्विपक्षीय वार्ता में भारत-अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी मजबूत बनने के साथ व्यापार और निवेश के नए अध्याय लिखे जाएंगे। इससे न केवल भारत और अमेरिका के बीच कारोबार बढ़ने, बल्कि दुनिया भर में भारत के कारोबार के नए अवसर की संभावनाएं भी निर्मित होंगी। उल्लेखनीय है कि हाल ही में जहां एक फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति ने कनाडा और मैक्सिको पर 25 फीसद और चीन पर अतिरिक्त दस फीसद शुल्क का एलान किया, वहीं चार फरवरी को चीन ने पलटवार करते हुए अमेरिका पर 15 फीसद शुल्क लगा दिया। इससे अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध का नया दौर शुरू हो गया है।
दरअसल, अमेरिका को चीन, मैक्सिको और कनाडा से सबसे ज्यादा व्यापार घाटे का सामना करना पड़ता है। ये तीनों देश अमेरिका के लगभग 670 अरब डालर व्यापार घाटे के लिए जिम्मेदार हैं। वर्ष 2023 में अमेरिका को चीन से 317 अरब डालर, मैक्सिको से 200 अरब डालर और कनाडा से 153 अरब डालर का व्यापार घाटा हुआ था। जबकि अमेरिका के व्यापार घाटे में भारत की हिस्सेदारी सिर्फ 36 अरब डालर रही है। अमेरिका को जिन देशों से सबसे ज्यादा व्यापार घाटा होता है, उस सूची में भारत नौवें क्रम पर है।
भारत की ओर से अमेरिकी उत्पाद पर बहुत ज्यादा शुल्क लगाने की शिकायत करते हुए ट्रंप भारत पर भी शुल्क लगाने की धमकी दे चुके हैं। चार फरवरी को उन्होंने अमेरिकी सेना के विमान से अवैध भारतीय प्रवासियों को भारत भेज दिया। ऐसे में भारत ने भी इस बात को समझा है कि ट्रंप एक हाथ से लेने और दूसरे हाथ से देने में विश्वास करते हैं। इसलिए भारत ने ट्रंप के शुल्क से बचने के लिए देखते ही देखते अपने यहां कुछ अमेरिकी सामान पर शुल्क कम करना शुरू कर दिया है।
एक फरवरी को पेश वर्ष 2025-26 के बजट में भारत ने अमेरिका से आने वाली वस्तुओं जैसे 1600 सीसी से कम इंजन की मोटरसाइकिल, उपग्रह के लिए ‘ग्राउंड इंस्टालेशन’ और ‘सिंथेटिक फ्लेवरिंग एसेंस’ जैसी कुछ वस्तुओं पर शुल्क घटा दिए हैं। भारत ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वह ट्रंप प्रशासन से शुल्कों के रूप में मिलने वाली किसी चुनौती को टालने के लिए सीमा शुल्कों में एकतरफा कमी करने के लिए तैयार है।
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निस्संदेह ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में वैश्वीकरण की जगह ‘अमेरिका प्रथम’ की धारणा को उच्च प्राथमिकता देते हुए परस्पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं की जगह अमेरिका की आत्मनिर्भरता और आर्थिक मजबूती की ओर बढ़ने का संकेत दिया है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व स्तर पर जो आर्थिक कारोबारी नियम, समझौते और सहकारी एजंडे बनाए गए थे, वे सब इस समय ध्वस्त होते दिखाई दे रहे हैं। खासकर चीन ने स्वीकार्य वैश्विक कारोबारी नियमों का पालन नहीं किया है। चीन ने न केवल रणनीतिक रूप से पश्चिम का उद्योगीकरण समाप्त किया है, बल्कि उसने पश्चिम की कई नई तकनीकें भी चुराई हैं। इनके दम पर चीन का दबदबा बढ़ता ही जा रहा है। वर्ष 2024 में अमेरिका का सबसे ज्यादा व्यापार घाटा चीन से रहा है। स्थिति यह है कि वर्ष 2030 तक चीन का विनिर्माण क्षेत्र समूचे पश्चिम के विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में अधिक हो जाने का अनुमान है।
उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजंसियों ने अनुमान जताया है कि अमेरिका के नए राष्ट्रपति से चीन को भारी नुकसान हो सकता है और भारत सहित आसियान देशों को फायदा होने की उम्मीद है। वैश्विक अर्थ विशेषज्ञों का यह भी मत है कि भारत और अमेरिका के बीच लगातार बढ़ते व्यापार के ट्रंप के नए कार्यकाल में और बढ़नेकी संभावना है। वित्तवर्ष 2023-24 में करीब 120 अरब डालर मूल्य की वस्तुओं का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। पिछले वर्ष भी अमेरिका के साथ व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में रहा है और यह अधिशेष 35.3 अरब डालर के स्तर पर है।
विकासशील देशों की अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली (आरआइएस) सहित अन्य नई अध्ययन रपटों में कहा जा रहा है कि ट्रंप के नए कार्यकाल में भारत के लिए चुनौतियों के बीच मौके दिखाई दे रहे हैं। ट्रंप के पहले शासन काल में भारत चीन के खिलाफ सख्ती का फायदा नहीं उठा सका था। ऐसे में ट्रंप द्वारा अमेरिकी प्रशासन की बागडोर संभालने के बाद भारत ने बहुआयामी रणनीति पर आगे बढ़ना शुरू कर दिया है, जिससे एक ओर अमेरिका में निर्यात बढ़ सके, वहीं दूसरी ओर वैश्विक निर्यात में भी तेज बढ़त मिल सके।
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निश्चित रूप से भारत द्वारा अमेरिका के व्यापक हित में कुछ उत्पादों से शुल्क घटाए जाने से उसे अमेरिका में निर्यात के अधिक मौके प्राप्त होंगे। भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गारसेटी ने कहा है कि ट्रंप के आगमन से भारत और अमेरिका के आर्थिक रिश्ते और अधिक मजबूत होंगे। ऐसे में ट्रंप की आर्थिक चुनौतियों के बीच भी भारत के लिए आर्थिक मौके उभरते दिखाई दे रहे हैं। खासकर ट्रंप ने भारतीयों को बड़ी राहत का एलान करते हुए कहा कि एच-1बी वीजा बंद नहीं होगा, क्योंकि इस समय अमेरिका को अच्छे पेशेवर की जरूरत है।
निस्संदेह अमेरिकी राष्ट्रपति के रुख और उनकी नीति से भारत के लिए अमेरिका से द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने और उसके सहयोग से भारत को ‘चीन प्लस वन’ के रूप में दुनिया वैश्विक व्यापार में तेजी से उभरने का मौका भी मिल सकता है। चीन में निर्माण करने वाली कई विदेशी कंपनियां भारत का रुख कर सकती हैं। भारत को अब तक चीन प्लस वन रणनीति अपनाने में सीमित फायदा ही मिला है, ट्रंप के नए कार्यकाल में यह फायदा बढ़ता हुआ दिखाई देगा।
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इसमें कोई दो मत नहीं कि जिन क्षेत्रों में चीन अमेरिका को प्रमुखता से निर्यात करता है, उनमें से कई क्षेत्रों में भारत अपना निर्यात सरलता से बढ़ा सकता है। इन क्षेत्रों में इलेक्ट्रानिक्स, इलेक्ट्रिकल उपकरण, मोबाइल फोन, फुटवियर, टेक्सटाइल और गार्मेंट्स, फर्नीचर और घर के सजावटी सामान, वाहनों के कलपुर्जे, खिलौने और रसायन आदि शामिल हैं। इस परिप्रेक्ष्य में भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में पहुंच बढ़ाने के लिए वर्ष 2025-26 के बजट में ‘एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन’ अहम भूमिका निभाएगा। इस मिशन और मार्केटिंग प्रोत्साहन से निर्यातकों को अमेरिका के विभिन्न भागों में आयोजित प्रदर्शनियों में शामिल होने और अमेरिका में निर्यात योग्य नए उभरते क्षेत्रों की संभावनाओं का दोहन करने में मदद मिलेगी। उम्मीद है कि ट्रंप जो नई आर्थिक इबारत लिख रहे हैं, उससे भारत-अमेरिका के आर्थिक रिश्तों का नया दौर आगे बढ़ेगा और अमेरिका के साथ मजबूत आर्थिक रिश्ते भारत को 2047 तक विकसित देश बनाने के लक्ष्य को पूरा करने में भी मददगार साबित होंगे।