ईरान के लिए उसकी धरती पर 1980-1988 के ईरान-इराक युद्ध के बाद से उस पर सबसे बड़ा हमला हुआ है। इजराइल की वायुसेना ने न सिर्फ ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी जगहों को निशाना बनाया, बल्कि ईरान की वायु रक्षा प्रणाली और बैलिस्टिक मिसाइल ठिकानों को भी निशाना बनाया। इन हमलों की वजह से ईरान की जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता कम हो गई।

इजराइल की खुफिया एजंसी मोसाद के लिए काम करने वाले एजंट्स ने कथित तौर पर सेना और परमाणु कार्यक्रम के प्रमुख व्यक्तियों की सही जगह की जानकारी देने में मदद की। इजराइल का मकसद ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर अंकुश लगाना है। इजराइल और कई पश्चिमी देशों को संदेह है कि ईरान छिपकर ‘ब्रेकआउट कैपेबिलिटी’ पर काम कर रहा है. जिसका मतलब होता है परमाणु हथियार बनाने के रास्ते से वापसी नहीं करना। हालांकि ईरान इस बात से इनकार करता है और हमेशा इस बात पर जोर देता रहा है कि उसका कार्यक्रम एक सिविल न्यूक्लियर कार्यक्रम है, जिसके लिए रूस से मदद मिली है और ये पूरी तरह से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है।

एक दशक से भी ज्यादा समय से इजराइल ईरान की परमाणु तरक्की को धीमा करने और पीछे धकेलने की कोशिश कर रहा है. इसराइल को इस मामले में कई सफलताएं भी मिली हैं। जैसे कि ईरानी वैज्ञानिकों की अज्ञात हमलावरों ने रहस्यमय तरीके से हत्या कर दी। परमाणु कार्यक्रम के सैन्य प्रमुख ब्रिगेडियर जनरल फखरीजादेह की 2020 में तेहरान के पास एक सूनसान सड़क पर हत्या कर दी गई थी। इससे पहले अमेरिका और इजराइल के साइबर जासूसों ने ईरान के सेंट्रीफ्यूज में एक विनाशकारी कंप्यूटर वायरस डालने में सफलता हासिल की।

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इसका कोडनेम स्टक्सनेट था और इसकी वजह से ईरान के सेंट्रीफ्यूज उसके कंट्रोल से बाहर हो गए। इस हफ्ते यूएन न्यूक्लियर वाचडाग इंटरनेशनल एटामिक एनर्जी इंटरनेशनल ने पाया कि ईरान अपने अप्रसार दायित्व का उल्लंघन कर रहा है। उन्होंने इस मामले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को भेजने की चेतावनी दी।

ईरान के परमाणु कार्यक्रम में उसके अत्यधिक समृद्ध यूरेनियम पैदा करने को लेकर चिंताएं हैं। इसके लेवल को 60 फीसद तक समृद्ध किया गया है। ये परमाणु ऊर्जा पैदा करने के स्तर से कहीं ज्यादा है, लेकिन बम बनाने के लिए जो लेवल चाहिए उससे कम है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर रोक लगाने के लिए एक समझौता हुआ था। ये 2015 में ओबामा के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान हुआ। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने इसे ‘दुनिया का सबसे खराब सौदा’ कहा और जब वो राष्ट्रपति बने तो उन्होंने अमेरिका को इस सौदे से बाहर कर लिया। ईरान ने भी 2018 में इस सौदे का पालन करना बंद कर दिया। ईरान से बाहर कोई भी नहीं चाहता है कि उसके पास परमाणु बम हो। इजराइल का मानना है कि ईरान के पास परमाणु हथियार होना उसके अस्तित्व के लिए खतरा है।