BJP National President Election 2025: खुद को दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल होने का दावा करने वाली बीजेपी में इन दिनों संगठन के चुनाव चल रहे हैं। पार्टी अपने सदस्यों की संख्या 10 करोड़ तक पहुंचाने की कोशिश कर रही है। एक वक्त में “द पार्टी विद ए डिफरेंस” (यानी एक अलग तरह की पार्टी) कहे जाने वाली बीजेपी में अब बदलाव आए हैं। बीजेपी को यह पहचान उसके कैडर-आधारित ढांचे, आंतरिक अनुशासन, हर स्तर पर मजबूत नेताओं और केंद्रीय नेतृत्व की गैर-मौजूदगी के कारण मिली थी। हालांकि पार्टी ने अपनी यह पहचान अपने मजबूत जमीनी नेटवर्क के जरिये, काफी हद तक बरकरार रखी है।
पार्टी में कई नेताओं का कहना है कि इस बात में अब कोई शक नहीं है कि पार्टी की सारी शक्ति दिल्ली यानी शीर्ष नेतृत्व के माध्यम से नियंत्रित होती है।
18वीं लोकसभा का गठन हुए अब 6 महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है लेकिन एक बार भी बीजेपी संसदीय दल की बैठक नहीं हुई है। बीजेपी सांसदों की ऐसी बैठक जून में हुई थी और इसमें एनडीए के सहयोगी दल भी शामिल हुए थे।
बताना होगा कि बीजेपी के पास लोकसभा में अपने दम पर बहुमत नहीं है और इस वजह से वह एनडीए के सहयोगियों पर निर्भर है।
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न सिर्फ बीजेपी संसदीय दल बल्कि पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक भी अब काफी कम होती है। संसदीय बोर्ड पार्टी में फैसले लेने वाली सबसे बड़ी संस्था है। संसदीय बोर्ड राज्यों में मुख्यमंत्रियों के चयन सहित तमाम बड़े मुद्दों पर फैसले लेने के लिए बैठक करता है। लेकिन अब मुख्यमंत्री का चयन शीर्ष नेतृत्व के द्वारा किया जाता है और इस बारे में फैसला विधायक दल को बता दिया जाता है।
पिछले साल हुए राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव के बाद ऐसा देखने को मिला था। जिन नेताओं का चयन इन राज्यों में मुख्यमंत्री के लिए किया गया, उससे निश्चित रूप से लोगों को हैरानी हुई थी।
इसके साथ ही बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति यानी सीईसी (चुनाव में उम्मीदवारों का चयन करने वाली संस्था) की बैठक भी नहीं हो रही है। दिल्ली के विधानसभा चुनाव के लिए जब 29 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया गया तो इसके लिए एक भी बैठक नहीं हुई। बीजेपी के सूत्रों ने बताया कि उम्मीदवारों के नामों की एक फाइल को सीईसी के सदस्यों को दिया गया और इसके बाद उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया गया।
झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के लिए सीईसी की सिर्फ एक बार बैठक हुई जबकि आमतौर पर ऐसा होता है कि हर लिस्ट जारी होने से पहले इसकी एक बैठक होती है।
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बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि सीईसी की बैठकों के बजाय उम्मीदवारों की सूची को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘अंतिम मंजूरी’ मिलने से पहले कई इंटरनल मीटिंग यानी आंतरिक बैठकें हुई। पार्टी नेताओं का कहना है कि अंतिम फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का होता है जबकि संगठन से जुड़े मामलों में गृहमंत्री अमित शाह की भी मंजूरी ली जाती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अभी भी बीजेपी का ट्रंप कार्ड है इसलिए पार्टी कार्यकर्ता इसे लेकर कोई शिकायत नहीं कर सकते। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि लंबे वक्त तक ताकत का ‘केंद्रीकरण’ होने से पार्टी को नुकसान हो रहा है। इसके अलावा बीजेपी को हर स्तर पर उसके प्रभावशाली नेताओं की ताकत का फायदा भी नहीं मिल पा रहा है।
मोदी खुद इसका एक उदाहरण हैं जो लंबे वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और उसके बाद शीर्ष स्तर पर पहुंचे। उनके समकालीन नेताओं की बात करें तो इस दौर में शिवराज सिंह चौहान (मध्य प्रदेश), वसुंधरा राजे (राजस्थान), रमन सिंह (छत्तीसगढ़) और बीएस येदियुरप्पा (कर्नाटक) में मुख्यमंत्री थे।
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बीजेपी नेताओं का कहना है कि नई पीढ़ी के मुख्यमंत्रियों में से अधिकतर सीधे केंद्र से ‘निर्देश’ लेते हैं। एक नेता ने कहा वे दिल्ली से मिलने वाले निर्देशों का पालन करते हैं हालांकि इसमें से कुछ ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो स्वतंत्र रूप से अपनी पहचान बन चुके हैं। जैसे उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ, हिमंता बिस्वा सरमा असम में और देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र में।
इन दिनों बीजेपी संगठन के चुनाव चल रहे हैं और इसमें पदाधिकारियों के चयन में आमतौर पर ‘सर्वसम्मति’ पर जोर दिया जा रहा है। बीजेपी के संविधान के मुताबिक, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव बीजेपी की राष्ट्रीय परिषद और राज्य परिषद के सदस्यों से बने इलेक्टोरल कॉलेज द्वारा किया जाता है। हरियाणा में बीजेपी के चुनाव प्रभारी सतीश पूनिया ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि मंडल, बूथ और जिला कमेटियों के मामले में पार्टी ने ‘आम सहमति’ को प्राथमिकता दी। उन्होंने कहा कि हमारे यहां पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र है, जहां पर आम सहमति से चुनाव होता है। लेकिन कई जगहों पर पार्टी संगठन के चुनाव में गड़बड़ियों के भी आरोप लगे हैं।
गोवा में कुछ नेताओं ने यह कहकर विरोध किया कि मंडल अध्यक्षों के पद पर चुने गए नेता मंत्रियों और विधायकों के करीबी हैं। मध्य प्रदेश में जिला अध्यक्षों के चयन का काम दिसंबर तक पूरा हो जाना चाहिए था लेकिन यह भी अभी तक पार्टी नेताओं के बीच आम सहमति न बनने की वजह से रुका हुआ है। केरल में भी मंडल समितियों के अध्यक्ष के चुनाव में पार्टी नेताओं के बीच झगड़े की खबरें आई।
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बीजेपी के कई नेताओं को इस बात की चिंता है कि पार्टी अब कांग्रेस की तरह हो रही है। एक नेता ने कहा, “कांग्रेस तब कमजोर होने लगी जब उसका हाईकमान बहुत ताकतवर हो गया और इससे हुआ यह कि राज्यों में नेतृत्व पंगु हो गया। 1970 और 1980 के दशक में कांग्रेस जीत के लिए पूरी तरह अपने केंद्रीय नेतृत्व इंदिरा और राजीव गांधी पर निर्भर थी।” बीजेपी नेता का कहना है कि इंदिरा और राजीव गांधी के जाने के बाद कांग्रेस का स्तर लगातार गिरता जा रहा है।
बीजेपी के एक नेता ने कहा कि किसी अन्य पार्टी के पास वैसा कैडर मूवमेंट नहीं है जैसा बीजेपी के पास है। वामपंथी पार्टियां जमीनी लोकतंत्र का दावा करती हैं लेकिन अब उनकी जमीन पर मौजूदगी बेहद कम है।
बीजेपी नेता ने कहा कि पार्टी में सत्ता का एक ध्रुव ना हो और ताकत का संतुलन बना रहे इसमें आरएसएस की भूमिका है। संघ को बड़े फैसलों और नियुक्तियों में शामिल किए जाने से यह तय होता है कि सभी के हितों को शामिल किया जाए। एक नेता ने कहा, “यह बात सही है कि केंद्रीयकारण होता है लेकिन ऐसा शीर्ष स्तर पर होता है। निचले स्तर पर कई समस्याओं के बावजूद यह अभी भी सक्रिय है।”
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