Waqf Bill News: केंद्र सरकार द्वारा पेश किया गया वक्फ संशोशन विधेयक-2025 लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों में यह विधेयक पारित हो गया है। इस बिल को लेकर बीजेपी ने NDA के सभी घटक दलों को कॉन्फिडेंस में ले लिया था। NDA के घटक दल जेडीयू ने भी इस बिल को लेकर सरकार का पूरा समर्थन किया था। जेडीयू के नेताओं ने इस विधेयक को मुस्लिम समाज के हित में बताया था लेकिन अब बिल पास होने के बाद जेडीयू की टेंशन बढ़ गई है, क्योंकि पार्टी में मुस्लिम नेता बगावत करने लगे हैं।
दरअसल, वक्फ बिल पास होने के बाद जनता दल यूनाइटेड में इस्तीफो का दौर शुरू हो गया है। पहले पूर्वी चंपारण के मोहम्मद कासिम अंसारी ने पार्टी छोड़ी और फिर जमुई से नवाज मलिक ने भी नीतीश कुमार की पार्टी से दूरी बना ली। जेडीयू ने इस पर सफाई देते हुए इन दोनों के पार्टी पदाधिकारी होने तक से इनकार कर दिया है।
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वक्फ बिल पास होने के बाद सबसे पहले जेडीयू से इस्तीफ देने वाले नेता कासिम अंसारी रहे। उनका दावा है कि वे जेडीयू के पूर्वी चंपारण में चिकित्सा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष थे। उन्होंने वक्फ बिल का समर्थन करने के लिए जेडीयू की आलोचना की है। इसको लेकर उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र भी लिखा।
इतना ही नहीं, केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के लोकसभा में दिए गए वक्तव्य की भी जमकर आलोचना की है। दूसरी ओर जेडीयू छोड़ने वाले नवाज मलिक का दावा है कि वे जेडीयू में अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ में सचिव हैं, और अपने पद से इस्तीफा देते हुए पार्टी इसलिए छोड़ रह हैं क्योंकि पार्टी ने वक्फ बिल को लेकर केंद्र की मोदी सरकार का समर्थन किया है। नवाज मलिक ने ये भी कहा कि जेडीयू के इस कदम से पार्टी के कार्यकर्ताओं को झटका लगा है।
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इन दोनों ही मुस्लिम नेताओं के पार्टी छोड़ने पर जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा है कि न तो पूर्वी चंपारण में रहने वाले मोहम्मद कासिम अंसारी और न ही जमुई निवासी नवाज मलिक पार्टी के कोई पदाधिकारी हैं। जेडीयू इस पूरे प्रकरण पर पल्ला झाड़ती नजर आ रही है।
वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी और वरिष्ठ जेडीयू नेता विजय कुमार चौधरी ने इस पूरे घटनाक्रम पर कहा है कि पार्टी में वक्फ पर कोई भ्रम नहीं है। उन्होंने यह बयान जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव गुलाम रसूल बलियावी समेत अन्य मुस्लिम नेताओं द्वारा वक्फ बिल का सार्वजनिक रूप से विरोध करने के सवाल पर की गई है। जेडीयू नेता ने यह भी कहा कि वे वक्फ बिल के विरोध में सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे और इस बिल के खिलाफ हर आवाज बुलंद करेंगे।
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बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में मुस्लिमों नेताओं के पार्टी छोड़ने पर चुनावी लिहाज से भी विचार किया जाना चाहिए। बिहार की सियासत की बात करें, जातिगत राजनीति के साथ ही मुस्लिम वर्ग का भी अहम रोल होता है। वक्फ संशोधन बिल का मुस्लिम समाज विरोध कर रहा है, बिहार में करीब 18 फीसदी मुसलमान हैं, जिनमें इसमें पसमांदा मुसलमानों की संख्या 73 फीसदी है। सरकार का दावा है वक्फ बोर्ड के कानूनों में जो बदलाव होगा, उसका सबसे ज्यादा फायदा इन्हीं 73 फीसदी मुसलमानों को होने वाला है।
वक्फ बिल पर जेडीयू का पक्ष लोकसभा में केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने रखा था और पूरी तरह से बिल का समर्थन किया था। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि पिछले साल यानी 2024 में ललन सिंह ने एक कार्यक्रम में मंच पर स्वीकार किया था कि मुसलमान अब नीतीश कुमार को वोट नहीं देते हैं। हालांकि जब विवाद बढ़ा तो ललन ने सफाई भी दी थी, और कहा था कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया।
जेडीयू में मुस्लिम विधायकों की भूमिका पर बात करें तो 2004 में जेडीयू के 7 विधायक थे। इसके बाद 2010 में 7 मुस्लिम विधायक थे। 2015 में यह संख्या घटकर 5 पर आई और 2020 में जेडीयू के तरफ से बिहार विधानसभा में कोई भी मुस्लिम विधायक नहीं पहुंचा था। ऐसे सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या मुस्लिम वोट बैंक छिटकने के बाद खुद नीतीश भी क्या मुस्लिम वर्ग के वोटों पर निर्भरता कम कर रहे हैं?