मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को कर्नाटक हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) से जुड़े भूमि घोटाला मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को ट्रांसफर करने से इनकार कर दिया है। कर्नाटक हाई कोर्ट आरटीआई एक्टिविस्ट स्नेहमयी कृष्णा की रिट याचिका पर फैसला सुनाया।
स्नेहमयी कृष्णा के वकील ने तर्क दिया कि लोकायुक्त मामले की निष्पक्ष जांच नहीं कर सकता क्योंकि यह एक राज्य प्राधिकरण है और आरोपी राज्य का मुख्यमंत्री है। सिद्धारमैया की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और एएम सिंघवी ने कृष्णा की याचिका का विरोध किया और कहा कि जांच किसी अन्य एजेंसी को तभी ट्रांसफर की जा सकती है जब दोनों पक्षों में से किसी एक को यह लगे कि यह दुर्भावनापूर्ण है। हालांकि सिब्बल ने तर्क दिया कि लोकायुक्त ने अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत की है और किसी को इसके कंटेंट के बारे में पता नहीं है।
MUDA साइट आवंटन मामले में यह आरोप लगाया गया है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी को मैसूर के एक पॉश इलाके में साइटें आवंटित की गईं, जिसकी कीमत उनकी जमीन के स्थान की तुलना में अधिक थी। इस जमीन को मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहीत किया गया था। आरोप लगा है कि सिद्धारमैया ने अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए MUDA द्वारा अधिग्रहित 3 एकड़ 16 गुंटा भूमि के बदले में अपनी पत्नी बीएम पार्वती के नाम पर 14 साइटों का मुआवजा प्राप्त किया।
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बता दें कि MUDA ने विजयनगर III और IV फेज में 14 साइटें आवंटित कीं थी। यह आवंटन राज्य सरकार की 50:50 अनुपात योजना के तहत कुल 38,284 वर्ग फीट का था। इन्ही 14 साइटों का आवंटन मुख्यमंत्री की पत्नी के नाम पर हुआ। विपक्ष का कहना है कि सीएम की पत्नी को MUDA द्वारा इन साइटों के आवंटन में अनियमितता बरती गई है।
पिछले महीने ही 17 जनवरी को MUDA भूमि आवंटन मामले में ED ने बड़ी कार्रवाई की थी। ईडी ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और अन्य से जुड़े MUDA मनी लॉन्ड्रिंग मामले में लगभग 300 करोड़ रुपये की अचल संपत्ति की 140 से अधिक इकाई कुर्क की थीं। ईडी ने एक बयान में कहा था कि कुर्क की गई संपत्तियां अलग-अलग व्यक्तियों के नाम पर रजिस्टर्ड हैं जो रियल एस्टेट व्यवसायियों और एजेंटों के रूप में काम कर रहे हैं।