महाकुंभ 2025 का समापन हो चुका है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समाजवादी पार्टी पर निशाना साधने के लिए 12 साल पहले आयोजित कुंभ मेले का जिक्र किया, जब अखिलेश यादव उस समय मुख्यमंत्री थे। योगी आदित्यनाथ ने कहा, ”आपने (विपक्ष ने) महाकुंभ के संबंध में जो कहा, एक विशेष जाति के व्यक्ति को प्रवेश से रोका गया। हमने कहा कि जो लोग सद्भावना के साथ जाते हैं वे जा सकते हैं, लेकिन अगर कोई दुर्भावनापूर्ण इरादे से जाता है, तो उन्हें परेशानी होगी। हमने सपा के विपरीत लोगों की धार्मिक भावनाओं के साथ नहीं खेला। उनके सीएम के पास कुंभ की निगरानी और उसकी व्यवस्था देखने का समय नहीं था। इसलिए, उन्होंने (अखिलेश यादव) एक गैर-सनातनी को कुंभ का प्रभारी बनाया।

योगी अदितानाथ ने 24 फरवरी को सपा के तत्कालीन यूपी मंत्री आजम खान का जिक्र करते हुए ये बात कही थी। इस कुंभ की तरह 2013 के मेले के दौरान भी भगदड़ मची थी और प्रयागराज (तब इलाहाबाद) रेलवे स्टेशन पर लोगों की जान चली गई थी। मेले के समापन के बाद (जिसका अध्ययन हार्वर्ड विश्वविद्यालय की एक टीम ने किया) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की।

यह आयोजन संगम तटबंध के किनारे 1,936 हेक्टेयर क्षेत्र में आयोजित किया गया था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, उस वर्ष 14 जनवरी से 10 मार्च के बीच 55-दिवसीय कार्यक्रम में लगभग 12 करोड़ श्रद्धालु शामिल हुए, जिनमें से अनुमानित 3 करोड़ लोग मौनी अमावस्या के शुभ दिन पर प्रयागराज पहुंचे। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, सरकार ने आयोजन के लिए 1,152 करोड़ रुपये जारी किए थे। इसके कारण प्रयागराज में बुनियादी ढांचे को बढ़ावा मिला, जिसमें 156.2 किमी सड़कें बनाई गईं, 90 पार्किंग स्थल स्थापित किए गए और गंगा पर 18 पोंटून पुल बनाए गए। कुल 43,000 शौचालय भी बनाए गए, जिनमें से 35,000 व्यक्तिगत शौचालय थे, 7,500 ट्रेंच शौचालय थे, और लगभग 1,000 कंपोस्टिंग शौचालय थे। रिकॉर्ड बताते हैं कि बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए 22,000 बिजली के खंभे भी लगाए गए थे। रिकॉर्ड के अनुसार 750 ट्रेनें और 4,000 बसें तीर्थयात्रियों को कुंभ तक लाती थीं, जबकि कुंभ शहर में 30 पुलिस स्टेशन स्थापित किए गए थे।

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तैयारियों का निरीक्षण करने के लिए अखिलेश यादव ने मेला क्षेत्र का दौरा किया था, लेकिन सूत्रों ने कहा कि न तो अधिकारियों और न ही स्थानीय सपा कार्यकर्ताओं को उनके दौरे के बारे में पता था, जो लगभग दो घंटे तक चला था। राजनीतिक विवाद तब हुआ जब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राज्य सरकार द्वारा ‘सहयोग की कमी’ का हवाला देते हुए कुंभ की अपनी यात्रा रद्द कर दी।

10 फरवरी को मौनी अमावस्या के दिन, रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर तीन और चार पर भगदड़ में 38 लोगों की मौत के बाद यह घटना गलत कारणों से खबरों में आ गई। आज़म खान (जो कुंभ के नोडल मंत्री थे) ने घटना के लिए नैतिक ज़िम्मेदारी ली और पद छोड़ने की पेशकश की, जबकि उन्होंने कहा कि त्रासदी स्थल कुंभ मेला क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आता है। इस कदम से राज्य और केंद्र के बीच वाकयुद्ध छिड़ गया।

अखिलेश ने आजम खान का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया और इसके बजाय कार्यक्रम के संचालन के लिए उनकी प्रशंसा की। भगदड़ के कारण सेवानिवृत्त न्यायाधीश ओंकारेश्वर भट्ट के नेतृत्व में एक न्यायिक पैनल का गठन भी किया गया, जिसने 14 अगस्त 2014 को तत्कालीन राज्यपाल राम नाइक को अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में रेलवे प्रशासन के साथ-साथ पुलिस, स्थानीय प्रशासन और उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम को दोषी ठहराया गया।

कुंभ मेला उस वर्ष 12 मार्च को संपन्न हुआ, लेकिन एक महीने बाद फिर से खबरों में आया जब हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने अखिलेश, आजम खान और तत्कालीन मुख्य सचिव जावेद उस्मानी को कार्यक्रम पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया।

26 अप्रैल को हार्वर्ड में “हार्वर्ड विदाउट बॉर्डर्स: मैपिंग द कुंभ मेला” शीर्षक वाले सत्र के दौरान ये सभी लोग व्याख्यान देने वाले थे। लेकिन आखिरी समय में हुए घटनाक्रम में आजम खान को कथित तौर पर पूछताछ के लिए बोस्टन हवाई अड्डे पर रोके दिया गया। बाद में उस्मानी और उनकी टीम ने बात रखी। अगले साल केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के पहली बार सत्ता संभालने और जुलाई 2014 में सीएजी रिपोर्ट जारी होने के बाद भी 2013 कुंभ पर सुर्खियां बनी रहीं।

संकाय सदस्यों, कर्मचारियों, रिसर्चर्स और छात्रों सहित हार्वर्ड विश्वविद्यालय की 50 लोगों की एक टीम ने भी कुंभ पर एक अध्ययन किया। इसको पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया और घटना के सभी पहलुओं पर गौर किया गया। अध्यन ने इस आयोजन की तुलना 2010 राष्ट्रमंडल खेलों और 2014 फीफा विश्व कप से की और इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि कैसे मेला क्षेत्र में किसी बड़े बहिष्कार, विरोध प्रदर्शन या भगदड़ के बिना लाखों लोगों को इतनी लंबी अवधि तक सेवा प्रदान की गई। कार्यक्रम के सुचारू संचालन और किसी भी धार्मिक तनाव की अनुपस्थिति की सराहना करते हुए अध्ययन में कहा गया, “अखाड़ों में जो सिखाया जाता था, उसमें सरकार के हस्तक्षेप का कोई संकेत नहीं देखा गया था।” हालांकि अध्ययन में प्रदूषण और स्वच्छता को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी। शौचालयों का निर्माण और सफाई आउटसोर्स कर्मचारियों द्वारा की गई थी।