मणिपुर-अरुणाचल और नगालैंड में 6 महीने के लिए AFSPA बढ़ा दिया गया है। गृह मंत्रालय ने इसे लेकर एक अधिसूचना जारी कर दी है। अधिसूचना के मुताबिक मणिपुर के 13 पुलिस थानों को छोड़कर बाकी सभी इलाको में AFSPA लगा है, नगालैंड के 8 जिलों में भी सशस्त्र बल को विशेष शक्तियां दी गई हैं। इसी तरह अरुणाचल प्रदेश के भी तीन जिलों में 6 महीने के लिए AFSPA रहेगा।
अब मणिपुर में तो AFSPA का लगना मायने रखता है क्योंकि पिछले दो सालों से वहां हिंसा का दौर जारी है। कभी हिंसा कम या कभी ज्यादा रह सकती है, लेकिन स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है। ऐन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद से ही राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है, लेकिन पूरी तरह हालात अभी भी कंट्रोल में नहीं हैं। इसी वजह एफ्सपा को बढ़ाना मायने रखता है।
किसी भी क्षेत्र में AFSPA कानून को लागू करने का मतलब है कि उस क्षेत्र को “डिस्टबर्ड एरिया” या अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया गया है। AFSPA कानून ब्रिटिश सरकार द्वारा 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के जवाब में लागू किया गया था। आजादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस कानून को जारी रखने का फैसला किया था और 1958 में इसे कानून के रूप में लागू कर दिया गया।
पूर्वोत्तर के राज्यों, जम्मू कश्मीर और पंजाब में जब उग्रवाद चरम पर था तब इन राज्यों में इस कानून को लागू किया गया था। इसके बाद पंजाब पहला ऐसा राज्य था जहां से इसे हटाया गया। उसके बाद पूर्वोत्तर के राज्यों त्रिपुरा और मेघालय से भी इसे हटा दिया गया लेकिन नागालैंड, मणिपुर, असम तथा अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में अभी भी यह कानून लागू है।
वैसे पूर्वोत्तर के राज्यों में जब-जब एफ्सपा लगाने की बात होती है, वहां आलोचना का भी सामना करना पड़ता है। असल में सेना को ज्यादा ताकत देना कई लोग लोकतंत्र के खिलाफ मानते हैं। कई विपक्षी पार्टियां भी इसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करती रहती हैं। बड़ी बात यह है कि इस कानून का उल्लंघन करने वाले या हथियार और गोला-बारूद ले जाने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ गोली चलाने का अधिकार AFSPA कानून के तहत सशस्त्र बलों को मिलता है।