BSP Strategy Delhi Assembly Elections 2025: दिल्ली के विधानसभा चुनाव में दलित मतदाता एक महत्वपूर्ण फैक्टर हैं। दलित मतदाताओं के भरोसे एक बार फिर मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी बीएसपी राजधानी की 70 में से 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

एक वक्त में उत्तर प्रदेश में अपने दम पर सरकार बनाने वाली बीएसपी की राजनीतिक स्थिति बेहद खराब है। पार्टी लगातार चुनाव हार रही है लेकिन दिल्ली के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने एक विशेष रणनीति के तहत अपने उम्मीदवारों का चयन किया है।

इस रणनीति के पीछे यह कहा जा रहा है कि पार्टी ने ऐसा नगीना से सांसद और दलित समुदाय के बीच तेजी से उभर रहे चंद्रशेखर आजाद की बढ़ती लोकप्रियता की वजह से किया है।

दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग 5 फरवरी को होगी और 8 फरवरी को नतीजे आएंगे। दिल्ली में 16% दलित मतदाता हैं।

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बीएसपी ने जिन 68 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है, उसमें से 45 उम्मीदवार दलित समुदाय से हैं। इसमें से 33 दलित नेता सामान्य सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं। बीएसपी के उम्मीदवारों की सूची का बारीकी से विश्लेषण करने पर पता चलता है कि बीएसपी के 35 उम्मीदवार जाटव समुदाय से हैं। जाटव समुदाय के बड़े हिस्से का समर्थन बीएसपी को मिलता रहा है। जाटव समुदाय के अलावा बीएसपी ने दलित समुदाय में आने वाले वाल्मीकि और खटीक समुदाय के नेताओं को भी टिकट दिया है। ये दोनों ही समुदाय दिल्ली के कुछ इलाकों में सियासी रूप से ताकतवर हैं।

बीएसपी ने सोशल इंजीनियरिंग का ध्यान रखते हुए जाट, गुर्जर, ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य पंजाबी और ओबीसी जातियों से आने वाले कुछ नेताओं को भी चुनाव लड़ने का मौका दिया है। इसके अलावा मुस्लिम समुदाय के पांच नेता भी हाथी के चुनाव चिन्ह पर दिल्ली के सियासी मैदान में ताल ठोक रहे हैं।

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बीएसपी के एक वरिष्ठ नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पार्टी युवाओं पर फोकस कर रही है। पार्टी के करीब आधे उम्मीदवार ऐसे हैं जिनकी उम्र 45 साल से कम है। उन्होंने बताया, “युवा मतदाताओं का नगीना के सांसद और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद के प्रति बढ़ रहे झुकाव को देखते हुए युवाओं पर फोकस किया गया है। पार्टी दलित समुदाय के युवाओं को लुभाने की कोशिश कर रही है।”

बीएसपी दिल्ली के अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह ने कहा कि बीएसपी का मुख्य आधार दलित समुदाय में है और हमें उनका समर्थन वापस हासिल करने की जरूरत है।

बीएसपी प्रमुख मायावती ने दिल्ली में पार्टी को विधानसभा चुनाव लड़ाने की जिम्मेदारी पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर और अपने भतीजे आकाश आनंद को दी है। आकाश आनंद दिल्ली में कुछ चुनावी रैलियां कर चुके हैं। पार्टी के सूत्रों ने बताया कि बीएसपी प्रमुख की अभी तक दिल्ली में कोई भी रैली तय नहीं हुई है। दिल्ली में 3 फरवरी को शाम 5 बजे तक ही चुनाव प्रचार किया जा सकता है।

मायावती ने दिल्ली को 5 जोन में बांटकर 10 वरिष्ठ नेताओं को यहां कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी सौंपी है। इन कोऑर्डिनेटर्स को इस बात की जिम्मेदारी दी गई है कि वे अपने-अपने इलाकों में चुनाव अभियान की रणनीति बनाएं, नुक्कड़ सभाएं करने के साथ ही घर-घर तक पहुंचें। पार्टी के एक नेता ने बताया कि बड़ी चुनावी रैलियां करने के बजाय पार्टी के कार्यकर्ता सीधे मतदाताओं के दरवाजे तक पहुंच रहे हैं।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस की नजर भी दलित समुदायों के मतदाताओं के वोटों पर कब्जा जमाने की है। दिल्ली में 12 विधानसभा सीट दलित समुदाय के लिए आरक्षित हैं। बीजेपी ने 14 सीटों पर दलित नेताओं को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने 13 सीटों पर ऐसा किया है जबकि आम आदमी पार्टी ने केवल आरक्षित सीटों पर ही दलित नेताओं को टिकट दिया है।

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दिल्ली में बीएसपी ने सबसे अच्छा प्रदर्शन 2008 के विधानसभा चुनाव में किया था। तब उसे 14% वोट मिले थे और उसने दो सीटें- बाबरपुर और गोकलपुर पर जीत दर्ज की थी लेकिन इसके बाद पार्टी का वोट शेयर तेजी से गिरा और 2013 में यह गिरकर 5.35% हो गया।

2015 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के 70 में से 69 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई और उसे सिर्फ 1.3% वोट मिले थे। इसी तरह 2020 के विधानसभा चुनाव में भी बीएसपी के सभी 68 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी और पार्टी को सिर्फ .71% वोट मिले थे। तब पार्टी केवल 16 सीटों पर ही 1,000 से ज्यादा वोट ला पाई थी। 2008 के बाद हुए विधानसभा चुनावों में वह एक भी सीट नहीं जीत सकी।

2024 के लोकसभा चुनाव में भी दिल्ली में बीएसपी एक प्रतिशत भी वोट नहीं ला पाई।

दूसरी ओर, सांसद चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने 15 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं। चंद्रशेखर आजाद का कहना है कि जिन सीटों पर हमारी अच्छी तैयारी है, हम उन्हीं सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। चंद्रशेखर आजाद ने पिछले कुछ ही सालों में सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की है। आजाद ने बहुजन राजनीति के रास्ते पर चलते हुए लगातार अपने सियासी जनाधार को बढ़ाने की कोशिश की है। 2022 में उन्होंने आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) बनाई थी। चंद्रशेखर ने 2024 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश की नगीना लोकसभा सीट से डेढ़ लाख से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की थी।

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