भारत इस समय दुनिया की नई खपत राजधानी बनने की डगर पर बढ़ रहा है। हाल ही में स्टाक ब्रोकिंग फर्म ‘एंजल वन’ और ‘आइकानिक एसेट’ की एक रपट में कहा गया है कि भारत जल्द ही प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ दुनिया की नई खपत राजधानी बन जाएगा। जिस तरह प्रति व्यक्ति आय में मजबूत वृद्धि के दौर में अमेरिका में उपभोग खर्च में दस गुना की वृद्धि हुई, उसी तरह प्रति व्यक्ति आय बढ़ने के साथ भारत में भी उपभोग खर्च में ऐसी ही बढ़ोतरी का परिदृश्य बन रहा है। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि अमेरिका की कुल आबादी से अधिक भारत की नई पीढ़ी की संख्या है। ऐसे में, यहां आगामी दस वर्षों में 2035 तक खर्च किया जाने वाला हर दूसरा रुपया इसी पीढ़ी की जेब से आएगा।

रपट में यह भी कहा गया है कि सबसे तेजी से बढ़ते उपभोक्ता आधार की वजह से भारत में खपत आगामी दशक में बढ़ कर दोगुनी हो जाएगी। इतना ही नहीं, अगले 25 वर्षों में पहले के मुकाबले दस गुना अधिक बचत होने की उम्मीद है। वित्तवर्ष 1996-97 से 2022-23 के बीच भारत की कुल बचत 12 लाख करोड़ डालर थी, जो 2027 तक यह करीब दस गुना बढ़ कर 103 लाख करोड़ डालर पहुंच जाएगी। आकलन है कि दुनिया की कुल खपत में भारत की हिस्सेदारी वर्ष 2050 तक बढ़ कर 16 फीसद पहुंच सकती है। यह वर्ष 2023 में नौ फीसद थी। इसी तरह ‘मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट’ की रपट के मुताबिक वर्ष 2027 तक 17 फीसद हिस्सेदारी के साथ उत्तरी अमेरिका ही भारत से आगे होगा।

यह बात महत्त्वपूर्ण है कि एक ओर जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार भारत सहित दुनिया के विभिन्न देशों को ‘शुल्क चक्रव्यूह’ में लेते जा रहे हैं और वैश्विक मंदी की आशंका है, तब मध्यवर्ग की बदौलत बढ़ती मजबूत घरेलू मांग भारत के लिए नई आर्थिक शक्ति बन गई है। हाल ही में प्रकाशित ‘मार्गन स्टेनली’ की ताजा रपट में कहा गया है कि भारत घरेलू खपत की ताकत पर वर्ष 2028 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। रपट के अनुसार वर्ष 2023 में 3.5 ट्रिलियन डालर वाली भारतीय अर्थव्यवस्था वर्ष 2026 तक 4.7 ट्रिलियन डालर की हो जाएगी। इसके साथ ही भारत वर्ष 2026 तक अमेरिका, चीन और जर्मनी के बाद दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा और वर्ष 2028 तक यह 5.7 ट्रिलियन डालर तक पहुंच कर जर्मनी से भी आगे निकल जाएगा।

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एजंसी ‘फिच रेटिंग्स’ की रपट भी उल्लेखनीय है। इसके मुताबिक हालांकि अमेरिका की आक्रामक व्यापार नीति एक बड़ा जोखिम है, लेकिन भारत इससे काफी हद तक अप्रभावित रहेगा और इस पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। रपट में कहा गया है कि भारत की बाहरी मांग पर कम निर्भरता और पर्याप्त आत्मनिर्भरता के कारण अर्थव्यवस्था इसके व्यापक असर से बची रहेगी। फिच ने इसके पहले भारत की संप्रभु रेटिंग के परिदृश्य को स्थिर बताते हुए कहा कि देश का विकास मजबूत दिख रहा है। फिच ने कहा कि भारत की रेटिंग अन्य देशों की तुलना में मजबूत विकास और बाहरी वित्तीय लचीलापन दर्शा रही है। इससे अर्थव्यवस्था को पिछले वर्ष के बड़े बाहरी झटकों से पार पाने में मदद मिली है। इस रपट में यह भी कहा गया है कि वित्तवर्ष 2025-26 में भारत की जीडीपी 6.5 फीसद रहेगी। साथ ही, अगले कुछ वर्षों तक भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बनी रहेगी।

निस्संदेह देश के उपभोक्ता बाजार को मध्यवर्ग नई आर्थिक ताकत दे रहा है। हाल ही में प्रकाशित दस्तावेज ‘द राइज आफ मिडिल क्लास इंडिया’ के मुताबिक भारत के मध्यवर्ग की संख्या तेजी से बढ़ कर वर्ष 2021 में लगभग 43 करोड़ हो गई और वर्ष 2047 तक यह संख्या बढ़ कर 102 करोड़ होने का अनुमान है। इस वर्ग को पांच लाख से 30 लाख रुपए की वार्षिक आय वाले परिवारों के रूप में परिभाषित किया गया है। निश्चित रूप से भारत के मध्यवर्ग की मुठ्ठियों में बढ़ती क्रय शक्ति से इनकार नहीं किया जा सकता। दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत के बहुआयामी उपभोक्ता बाजार में नई रणनीति के साथ दस्तक दे रही हैं। वैश्विक खुदरा सेवाओं से जुड़ी कंपनियां भारत में तेजी से पैर पसार रही हैं।

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यह कोई छोटी बात नहीं है कि भारत के आर्थिक विकास का इंजन बने मध्यवर्ग के कारण दुनिया में पिछले दस वर्षों में खपत बढ़ने की दर सबसे अधिक भारत में रही है। पिछले एक दशक में सरकार की रणनीतियों और प्रोत्साहनों से मध्यवर्ग ने उल्लेखनीय दिशा तय की है। पिछले एक दशक में, 25 करोड़ से ज्यादा भारतीय गरीबी से बाहर निकल कर तेजी से बढ़ते नव-मध्यवर्ग में शामिल हो गए हैं। यह परिवर्तन सिर्फ आर्थिक बदलाव नहीं, बल्कि सामाजिक विकास को भी दर्शाता है। आय में बढ़ोतरी के साथ ही आयकर रिटर्न (आइटीआर) दाखिल करने वालों की संख्या वित्तवर्ष 2013-14 में चार करोड़ से बढ़ कर वित्तवर्ष 2024-25 में नौ करोड़ से अधिक हो गई है।

इन सबके साथ-साथ वित्तवर्ष 2025-26 का बजट करदाताओं, निवेशकों तथा मध्यवर्ग की खरीदी क्षमता बढ़ाते हुए दिखाई दे रहा है। इस वर्ग पर कर का बोझ कम करने से खपत बढ़ेगी। इससे जीएसटी संग्रह बढ़ेगा। कर योग्य आय वालों का आधार बढ़ेगा। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि जिस तरह भारत द्विपक्षीय व्यापार वार्ताओं और मुक्त व्यापार समझौते की डगर पर तेजी से आगे बढ़ रहा है, उससे भी भारतीय मध्यवर्ग को बड़ा फायदा होगा।कई पहलों से मध्यवर्ग मजबूत हुआ है और इससे भारत की आर्थिकी मजबूत बन रही है।

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इसमें कोई दो मत नहीं कि मध्यवर्ग तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन इस वर्ग के सशक्तीकरण के लिए इसके समक्ष निर्मित कई चुनौतियों पर भी ध्यान देना जरूरी है। बढ़ता मध्यवर्ग वित्तीय कमजोरी का भी सामना कर रहा है। समाज के कई अन्य वर्गों की तुलना में अधिक कमाने के बावजूद, कई लोगों को जीवन की उच्च लागत और ऊंची गतिशीलता के मद्देनजर अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अभी भी मध्यवर्ग के एक बड़े हिस्से से आरामदायक आवश्यकताओं की पूर्ति, प्रौद्योगिकी और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं तक उपयुक्त पहुंच दूर बनी हुई है।

उम्मीद है कि वर्ष 2047 में जब भारत अपनी स्वतंत्रता की सौवीं वर्षगांठ मनाएगा, तब तक देश में मध्यवर्ग के लोगों की संख्या एक अरब से अधिक हो जाएगी। इस वर्ग की क्रय शक्ति के कारण भारत का उपभोक्ता बाजार दुनिया की सर्वोच्च ऊंचाई पर होगा। ऐसे में, देश और दुनिया के इतिहास में यह लिखा जाएगा कि मध्यवर्ग ने भारत को 2047 में विकसित देश बनाने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई।