All India Muslim Personal Law Board: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) देश भर में वक्फ बचाओ अभियान के तहत कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है लेकिन बिहार में विशेषकर बोर्ड ने अपनी गतिविधियों को तेज किया है। बोर्ड ने पटना, अररिया, किशनगंज, भागलपुर, बेगूसराय, सहरसा, मधुबनी, सिवान और दरभंगा जिलों में वक्फ कानून के विरोध में कार्यक्रम आयोजित किए हैं।
हाल ही में AIMPLB ने कहा था कि ऐसी संभावना है कि वक्फ बचाओ अभियान के ये कार्यक्रम चुनाव नतीजों पर असर डाल सकते हैं। बिहार में 6 महीने के अंदर विधानसभा के चुनाव होने हैं।
243 विधानसभा सीटों वाले बिहार में 9 जिलों पर AIMPLB ने फोकस किया है। इन नौ जिलों में 72 विधानसभा सीटें हैं और इनमें से 30 सीटों पर मुस्लिम समुदाय ताकतवर है। बिहार में मुस्लिम समुदाय की आबादी 17.7% है।
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2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को इन 72 में से 38 सीटों पर जीत मिली थी। इनमें से बीजेपी ने 25, जेडीयू ने 11 और उस वक्त इस गठबंधन में शामिल विकासशील इंसान पार्टी (VIP) ने दो सीटें जीती थी जबकि विपक्षी महागठबंधन को 28 सीटों पर जीत मिली थी। महागठबंधन में शामिल राजद ने 11, कांग्रेस ने चार, सीपीआई (एमएल) (एल) 4 और सीपीआई ने 2 सीटें जीती थीं।
2020 के चुनाव नतीजों का अगर आप विश्लेषण करें तो इन 72 सीटों पर बीजेपी का प्रदर्शन काफी बेहतर था क्योंकि मुस्लिम समुदाय को बिहार में राजद का मजबूत समर्थक माना जाता है। एक जरूरी बात यह भी है कि इन 72 सीटों में से 5 सीटें AIMIM ने भी जीती थीं। बाद में AIMIM के चार विधायक राजद के साथ चले गए थे।
चिराग पासवान की अगुवाई वाली लोक जनशक्ति पार्टी ने उस वक्त एनडीए से अलग जाकर चुनाव लड़ा था और उसे भी यहां एक सीट पर जीत मिली थी।
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वक्फ बचाओ अभियान के दौरान AIMPLB और मुस्लिम समुदाय के अन्य संगठन बीजेपी और इसके सहयोगी दलों पर हमला बोल रहे हैं। ऐसे दलों में जेडीयू भी शामिल है। AIMPLB का कहना है कि इन दलों ने वक्फ कानून के मामले में मुस्लिम समुदाय के साथ धोखाधड़ी की है।
बीते महीने दिल्ली में वक्फ कानून के विरोध में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित हुआ था। इस कार्यक्रम में AIMPLB ने आरोप लगाया था कि एनडीए में शामिल राजनीतिक दलों ने संसद में वक्फ कानून का समर्थन करके मुसलमानों की पीठ में छुरा घोंपा है। AIMPLB ने बीजेपी के सहयोगी दलों पर इस बात के लिए दबाव बनाया था कि वे वक्फ कानून के मामले में सरकार से अपना समर्थन या तो वापस लें या फिर मुस्लिम समुदाय का विरोध झेलने के लिए तैयार रहें।
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AIMPLB ने खुलकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेकुलर) के नेता और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी का नाम लिया था। AIMPLB का कहना है कि जेडीयू, लोजपा और हम (सेकुलर) को मुस्लिम समुदाय के वोट मिलते रहे हैं लेकिन इस बार उन्हें ऐसा समर्थन नहीं मिलेगा। हालांकि बोर्ड का कहना है कि वह किसी भी राजनीतिक दल के खिलाफ सीधे तौर पर कोई राजनीतिक अपील नहीं करेगा।
बीजेपी का कहना है कि वक्फ कानून के मामले में विपक्ष और कुछ संगठन मुसलमानों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले महीने बीजेपी नेतृत्व ने चार सदस्यों की कोऑर्डिनेशन कमिटी बनाई थी। कमेटी को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वह देश भर में जाकर मुस्लिम समुदाय के साथ ही अन्य लोगों के बीच जाकर उन्हें वक्फ कानून को लेकर जागरूक करे। इसके तहत भागलपुर, मोतिहारी, पटना, मुजफ्फपुर में बैठक भी हुई थी।
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बिहार में बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चे के अध्यक्ष कमरुज्जमा अंसारी कहते हैं कि वक्फ कानून की वजह से बिहार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और इसके सहयोगियों को कोई नुकसान नहीं होगा। अंसारी ने कहा, “मुस्लिम समुदाय में पसमांदा बहुमत में हैं। यह गरीब तबका है और इसे वक्फ प्रॉपर्टीज से होने वाले फायदों से वंचित रखा गया है। नए कानून के बनने से उन्हें इसका फायदा मिलेगा और पसमांदा तबका बीजेपी और उसके सहयोगी दलों का समर्थन करेगा।”
कमरुज्जमा अंसारी ने यह भी उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार के द्वारा जाति जनगणना का ऐलान किए जाने से भी पसमांदा मुस्लिम समुदाय के बीच बीजेपी को फायदा मिलेगा। बीजेपी ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के. लक्ष्मण ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि जाति जनगणना में पसमांदा मुसलमानों को ओबीसी कैटेगरी में गिना जाएगा।
पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी कहते हैं कि मुस्लिम समुदाय विशेषकर पसमांदा मुसलमानों ने पहले जेडीयू, एलजेपी और हम (सेकुलर) को वोट दिया लेकिन अब वे वक्फ कानून पर नाराजगी के चलते इन पार्टियों को वोट नहीं देंगे। उन्होंने बताया कि कांग्रेस बिहार चुनाव में वक्फ कानून को मुद्दा बनाएगी।
जेडीयू के नेताओं के मुताबिक, उन्हें डर है कि वक्फ कानून के मुद्दे पर पार्टी को नुकसान हो सकता है। इस साल मार्च में इमारत-ए-शरिया ने सीएम नीतीश कुमार की ओर से आयोजित इफ्तार पार्टी का बहिष्कार किया था। नीतीश कुमार और चिराग पासवान द्वारा आयोजित इफ्तार और ईद मिलन जैसे कार्यक्रमों से जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दूरी बना ली थी।
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