R&AW Agency Role And Power: भारत और पाकिस्तान के बीच में तनाव काफी ज्यादा बढ़ चुका है, हालात ऐसे चल रहे हैं कि एक और जंग तक छिड़ सकती है। अगर जंग छिड़ती है तो भारत की सेना, नौसेना और वायुसेना तो अहम भूमिका निभाएगी ही, इसके अलावा कई दूसरी एजेंसियां भी सक्रिय जिम्मेदारी निभाती हैं। जनसत्ता इस समय एक स्पेशल सीरीज चला रहा है जहां पर युद्ध के समय काम करने वाली हर एजेंसी की जिम्मेदारियों को, उनकी ताकत को डीकोड किया जा रहा है। इसी सीरीज के चौथे पार्ट में बात R&AW एजेंसी की करनी है।
R&AW को रिसर्च एंड एनालिसिस विंग कहा जाता है, इसका गठन 21 सितंबर 1968 में हुआ था। इससे पहले भी भारत की सुरक्षा देखी जाती थी, इससे पहले भी खुफिया जानकारी इकट्ठा की जाती है, फर्क सिर्फ इतना था कि तब यह जिम्मेदारी IB यानी कि इंटेलिजेंस ब्यूरो की होती थी। लेकिन ईबी का ट्रैक रिकॉर्ड जब सवालों में आने लगा, तब एक अलग विंग बनाने की बात हुई।
युद्ध के समय भारत की वायुसेना कितनी ताकतवर है?
असल में 1962 में चीन के खिलाफ और फिर 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में ये पाया गया कि इंटेलिजेंस फेलियर बड़े स्तर पर रहा। तब निष्कर्ष यह निकला कि एक ही एजेंसी को देश की आतंरिक और बाहरी सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती। बाहर के खतरे इतने बड़े हैं कि इससे निपटने के लिए एक पूरी तरह अलग विंग की जरूरत है। इसी सोच ने R&AW को जन्म दिया और भारत को उसकी एक मजबूत और भरोसेमंद खुफिया एजेंसी मिली।
अब रॉ का सारा काम भारत के बाहर ऑपरेट होता है, दूसरे देशों में अलग-अलग भूमिका निभा इस एजेंसी के एजेंट डेटा इकट्ठा करते हैं, जरूरत पड़ने पर सीक्रेट ऑपरेशन चलाते हैं और समय रहते देश को दुश्मनों से सावधान करते रहते हैं। भारत की सुरक्षा पर जिस भी गतिविधि का असर पड़ सकता है, रॉ उस पर पैनी नजर रखता है। दूसरे देशों में जो आतंकी संगठन या फिर उग्रवादी गुट होते हैं, उनकी गतिविधियों पर भी रॉ की नजर रहती है।
युद्ध के समय भारत की नौसेना कितनी ताकतवर है?
अगर युद्ध छिड़ता है तो उस स्थिति में तो रॉ की भूमिका और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। मिलिट्री जो भी एक्शन प्लान तैयार करती है, उसमें रॉ से बात करना जरूरी रहता है। रॉ अपने इंटैल के मुताबिक कई इनपुट सेना को देती है, उसी आधार पर आगे की रणनीति बनती है। जरूरत पड़ने पर जासूस की भूमिका भी रॉ एजेंट निभाते हैं, दुश्मन देशों में रहकर वे वहां के सारे इनपुट भारत को देते हैं। इसके ऊपर युद्ध के दौरान तो जरूरी सैटेलाइट इमेजेस देना भी रॉ का काम है। इसका बड़ा उदाहरण करगिल युद्ध के दौरान दिख चुका है जब रॉ ने सेना को सैटेलाइट तस्वीरों के जरिए दुश्मन की पोजीशन और दूसरी जरूरी डिटेल दी थीं।
R&AW की ताकत को इस बात से भी समझा जा सकता है कि यह विंग सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है। रॉ के जो हेड होते हैं उनकी नियुक्ति केंद्र सरकार के कार्मिक मंत्रालय द्वारा की जाती है। रॉ में सेना से लेकर IAS अधिकारी तक शामिल रहते हैं, इस विंग में हर फील्ड के लोग देखने को मिल सकते हैं। अगर को रॉ में शामिल होना चाहता है तो उसे Combined Graduate Preliminary Exam लेना होता है। सिविल सर्विस एग्जाम की भी हर परीक्षा में अच्छा परफॉर्म करना जरूरी रहता है। अगर इन परीक्षाओं में कोई पास हो जाता है तब वो रॉ का भी एक एग्जाम देता है। ऐसे में भारत की खुफिया एजेंसी का हिस्सा बनना काफी मुश्किल है।
रॉ ने भारत के लिए कई मिशन्स में अहम भूमिका निभाई है। जब 1974 में भारत को अपना परमाणु परीक्षण करना था, ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा के जरिए रॉ ने इस प्रोजेक्ट की गोपनीयता को बनाए रखा था। इसी तरह ऑपरेशन मेघदूत के जरिए पाकिस्तान के सियाचिन पर कब्जा करने के मंसूबों को फेल किया गया था। बांग्लादेश के बनने में, उसकी सेना को ट्रेनिंग देने में भी रॉ का अहम हाथ था। इसके अलावा कई सफल जासूसी मिशन्स को भी रॉ अंजाम दे चुका है। ऐसे में अगर पाकिस्तान के साथ युद्ध छिड़ता है, सेनाओं के अलावा सीक्रेट एजेंसी रॉ पर भी सभी की नजर रहनी चाहिए।
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