Kalpvas End Rituals: महाकुंभ मेले में आज माघी पूर्णिमा का स्नान पर्व है। आज इस पर्व पर ही त्रिवेणी संगम की रेती में कल्पवास की कठिन तपस्या पूरी हो जाएगी। एक महीने तक व्रत, जप और तप करने वाले कल्पवासी आज स्नान, दान और सझिया अर्पण के साथ संगम की रेती पर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती, भगवान आदिवेणी माधव और हनुमान जी के दर्शन करेंगे। साथ ही संतों, संन्यासियों और पुरोहितों के सामने अपने दोषों और भूलों की क्षमा याचना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करेंगे, और फिर श्रद्धा के साथ अपने-अपने घरों को लौटेंगे।

विधान के अनुसार माघी पूर्णिमा के दिन कल्पवासी ब्रह्म मुहूर्त में उठकर त्रिवेणी संगम में स्नान करेंगे। इस दिन इक्कीस तिल के लड्डू ब्राह्मणों को दान करने की परंपरा है और प्रयाग में 84 प्रकार के दान करने का भी विधान है। जो कल्पवासी आर्थिक रूप से संपन्न होते हैं, वे महात्माओं को वस्त्र, कमंडल, मृग छाल आदि का दान कर सकते हैं। इसके अलावा, घी के दिए जलाने का विशेष महत्व है, जिससे 10 पीढ़ियों का उद्धार होता है। कपूर का दीपदान करने से श्रद्धालु का साहस बढ़ता है और और संकल्प शक्ति में वृद्धि होती है।

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कल्पवास करते हुए जिन श्रद्धालुओं का संकल्प 12 साल का पूरा हो जाता है, वे माघी पूर्णिमा के दिन उद्यापन या सझिया दान करते हैं। इसके लिए गंगा तट पर केले के मंडप में पूजा की जाती है, जहां सफेद तिल जल में डालकर स्नान किया जाता है और दीप जलाए जाते हैं। पूजा के दौरान गणपति पूजन किया जाता है और आचार्य के पुण्य वचन सुने जाते हैं। इसके बाद, 33 कलश रखकर भगवान माधव की पूजा की जाती है।

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उद्यापन से ठीक पहले की रात गीत गाते और वाद्य यंत्र बजाते हुए बिताई जाती है। अगले दिन स्नान करके भगवान माधव की पूजा की जाती है। साथ ही ग्रहों की पूजा, हवन और तैंतीस लड्डू दान करने की परंपरा है। यदि उद्यापन का सामर्थ्य न हो, तो भगवान माधव की पूजा और एक दंपत्ति को भोजन कराकर अन्न दान किया जा सकता है। इससे भी कल्पवास का फल प्राप्त होता है। कल्पवासियों को सेवा और सत्संग का संकल्प जीवन भर निभाना होता है।

जो लोग कल्पवास करते हैं, वे सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त होकर भगवान की सेवा, भजन और पूजन में मन लगाते हैं। पारिवारिक दायित्वों को अपने बच्चों को सौंपकर वे एक तरह से वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश कर लेते हैं। इसलिए वे 12 साल तक हर साल माघ माह में एक महीने का कल्पवास करते हैं। जब 12 साल का संकल्प पूरा हो जाता है, तब वे सझिया दान करते हैं, यानी साझा दान करते हैं। इस दान को करने के बाद उन्हें फिर कल्पवास करने की आवश्यकता नहीं रहती।

इस दान के तहत कल्पवासी को यथाशक्ति अपने पुरोहित को दान दिया जाता है। इससे पहले गंगा स्नान करके भगवान सत्यनारायण की कथा सुनी जाती है। पुरोहित से हवन-पूजन कराया जाता है और यथाशक्ति धन-धान्य, स्वर्ण आभूषण, वस्त्र, घर-गृहस्थी की चीजें श्रद्धा पूर्वक अर्पित कर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। इसे सझिया दान इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस प्रक्रिया के बाद श्रद्धालु अपना कल्पवास पूरा कर चुका होता है और अब हमेशा के लिए कल्पवास से मुक्त हो जाता है। कुछ लोग इसे शय्या दान भी कहते हैं।