Private Hospital Fees Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने निजी अस्पतालों को लेकर एक अहम आदेश दिया है। असल में प्राइवेट अस्पतालों में मोटी फीस वसूलने की परंपरा कई सालों से जारी है। वहां पर अगर कोई मरीज एडमिट होता है तो मोटा बिल आना तय है। अब इसी परंपरा को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से स्पष्ट नीति बनाने को कहा है। सर्वोच्च अदालत ने दो टूक कहा है कि मरीज का शोषण ना हो, यह राज्य की जिम्मेदारी है।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इस बात को स्वीकार किया है कि कई बार निजी अस्पताल अपनी ही फार्मेसी से दवाईं खरीदने पर मजबूर किया जाता है, वहीं ट्रांसप्लांट के नाम भी मरीजों को लूटा जाता है। अब इन्हीं शिकायतों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने सख्त निर्देश जारी करने को कहा है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया है कि जो भी नीति बने, उसमें बैलेंस रहना चाहिए।

तर्क दिया गया है कि कई राज्य प्राइवेट अस्पताल पर निर्भर हैं, ऐसे में उनका निवेश ना रुक जाए, इसका भी ध्यान रखना होगा। अब जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में यह अहम सुनवाई इसलिए हो पाई क्योंकि सिद्धार्थ डालमिया नाम के शख्स ने एक रिट पिटिशन दायर की थी। उसमें कहा गया था कि शख्स ने खुद निजी अस्पतालों का शोषण झेला है। जब उसके रिश्तेदार का प्राइवेट अस्पताल में इलाज हुआ था, बिल बहुत ज्यादा आया था।

वैसे कई रिपोर्ट इस बात की तस्दीक करती हैं कि निजी अस्पतालों में मरीजों का ज्यादा शोषण होता है। NSO के मुताबिक सरकारी अस्पाल में भर्ती होने का औसत खर्च 4452 रहता है, वहीं प्राइवेट में यही आंकड़ा 31854 रहता है। कुछ मामलों में प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों में खर्च का अंतर 200 फीसदी तक का हो जाता है। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट का इसमें दखल देना मायने रखता है। अब यह आंकड़े तो पूरे देश के हैं, लेकिन राजधानी में अस्पतालों की हालत बहुत अच्छी नहीं है, और जानने के लिए यह खबर पढ़ें