फास्टैग से लेकर शिवसेना तक, और दिल्ली सरकार से लेकर यूपी-सहारनपुर की बयानबाजी तक—इस सियासी हफ्ते में टैक्स के जाल, वोटों की चाल और सत्ता के सवाल ने हलचल मचा दी। कहीं नीयत पर सवाल उठे तो कहीं गठबंधन की गांठें और ‘असली शिवसेना’ की तकरार सुर्खियों में रही।
केंद्र की राजग सरकार टैक्स वसूली के अपने आंकड़ों का बखान कर फूली नहीं समाती। आयकर हो या जीएसटी या फिर टोल टैक्स। लोगों पर टैक्स का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। सड़क बनाने के नाम पर सरकार तीन बार टैक्स वसूल रही है। वाहनों का पंजीकरण शुल्क बेतहाशा बढ़ा दिया है। पेट्रोल-डीजल पर तीस-चालीस रुपए टैक्स भी सड़क बनाने के नाम पर ले रही है। तीसरा है टोल टैक्स। अमूमन यह दो रुपए किलोमीटर से भी अधिक है। पिछले दिनों अपनी उगाही के लिए सरकार फास्टैग लाई थी। इसे सरकार की तरफ से रामबाण बताया जा रहा था। इसमें टोल नाके पर वाहन स्वामी नकद भुगतान से बच जाता है। तब परिवहन मंत्री गडकरी ने फास्टैग की खूबियों का बखान किया था। इसे अनिवार्य बनाया था। नहीं लेने वालों से नकदी में दो गुना टोल टैक्स वसूला जा रहा था। धीरे-धीरे आरोप सामने आने लगे कि फास्टैग प्रणाली ने लोगों का शोषण किया। अनाप-शनाप कटौती हुई। अब नितिन गडकरी ने इसकी जगह तीन हजार रुपए सालाना के एकमुश्त टोल टैक्स की नई योजना 15 अगस्त से लागू करने का एलान किया है। जिस फास्टैग के कसीदे पढ़े थे उसे मनमानी वसूली और बकाया रकम की जब्ती का साधन बता रहे हैं। पर नई प्रणाली भी लोगों को कोई राहत दे पाएगी, अभी कौन ले सकता है इसकी गारंटी, यह भी सवाल उठ रहा।
हरियाणा में जून 2022 में हुए राज्य सभा चुनाव की याद फिर ताजा हो गई है। इसमें कांग्रेस के अजय माकन निर्दलीय कार्तिकेय शर्मा से हार गए थे। कांग्रेस के 30 विधायक थे। अजय माकन की जीत तय मानी जा रही थी। पर एक वोट निरस्त हो गया और एक वोट से ही माकन हार गए। भितरघात न होता तो माकन दो वोट से जीत जाते। तब हुड्डा खेमे ने आरोप लगाया था कि कुलदीप बिश्नोई और किरण चौधरी ने क्रास वोटिंग की। किरण चौधरी ने इस आरोप को नकार दिया था। जबकि बिश्नोई ने क्रास वोटिंग की बात कबूल कर ली थी और कांगे्रस ने उन्हें बाहर कर दिया था। किरण चौधरी पार्टी में ही बनी रही। विधानसभा चुनाव से पहले किरण चौधरी भाजपा में शामिल हो गई और राज्यसभा पहुंच गई। अब तो कार्तिकेय शर्मा ने खुद राज खोल दिया है कि उन्हें समर्थन देने वाले कांग्रेस विधायक कुलदीप विश्नोई और किरण चौधरी थे।
केंद्र के बाद दिल्ली में भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। इस सरकार के करीब सौ दिन से अधिक दिनों का समय पूरा हो गया है। इसके पहले दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार थी और उसका केंद्र सरकार से लेकर उपराज्यपाल तक से टकराव साफ नजर आता था। अब दिल्ली में जिन योजनाओं को बढ़ाने की कोशिश हुई है, उनमें केंद्र सरकार की ऐसी योजनाओं को रखा गया है जिसमें किसी न किसी तरह से केंद्रीय योजनाओं का लाभ आम जनता तक पहुंच सके। इनमें आयुष्मान आरोग्य मंदिर, केंद्र सरकार की परिवहन मंत्रालय की योजनाएं, नीति आयोग की बैठक, यमुना नदी से संबंधित योजनाओं को आगे बढ़ाना, गृह मंत्री से हुई बैठकों में दिल्ली से संबंधित कार्य शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अभी डेढ़ साल का वक्त है तो भी सभी पार्टियां अभी से अपनी चुनावी तैयारी न सही पर रणनीति बनाने में जुट गई हैं। इंडिया गठबंधन की सलामती का दावा करते हुए अखिलेश यादव दम भर रहे हैं कि वे मिलकर चुनाव लड़ेंगे। यह बात अलग है कि कांग्रेस और सपा के नेता भाजपा से लडने की जगह आपस में ही टांग खिंचाई करने में लगे हैं। इनमें सहारनपुर के दो मुसलमान नेता तो जुबानी जंग में मर्यादा भी भूल चुके हैं। कांग्रेस सांसद इमरान मसूद और सपा विधायक आशु मलिक एक दूसरे के बारे में खुलकर अपशब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। मसूद ने बयान देकर लोकसभा चुनाव में गठबंधन को प्रदेश में मिली सफलता का श्रेय राहुल गांधी को दिया था और विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे का पुराना फार्मूला न मानने की धमकी दी थी। आशु मलिक को सहन नहीं हुआ। कांग्रेस सांसद की छीछालेदर कर डाली। आशू मलिक को अखिलेश यादव का करीबी माना जाता है। वे सहारनपुर से सपा के विधायक हैं। अखिलेश जब मुख्यमंत्री थे तो आशु को एमएलसी बनाया था। आजम खान के बाद वे सपा के बड़े मुसलिम चेहरे बन गए हैं। उन्होंने इमरान को दलबदलू, अहसान फरामोश, धोखेबाज और जमीर बेचने वाला बता दिया। टिप्पणी की-बुलबुल किसके इशारे पर नाच रही है। सपा सांसद राजीव राय तो दो कदम आगे निकल गए। इमरान मसूद को भाजपा का ‘स्लीपर सैल’ बता दिया।
महाराष्ट्र में शिव सेना के दोनों धड़ों में जंग वैसे तो बदस्तूर जारी है पर बृहन्मुंबई महानगरपालिका चुनाव नजदीक देख दोनों धड़े आपस में आक्रामक सलूक करने लगे हैं। उद्धव ठाकरे ने शिव सेना का 59वां स्थापना दिवस मनाया तो एकनाथ शिंदे तिलमिला उठे। कहा कि उनकी पार्टी को अभी तीन साल भी नहीं हुए। वे किस बात का जश्न मना रहे हैं। उद्धव को अखरना स्वाभाविक था। पलटवार करने में देर नहीं लगाई। कहा कि नगर निगम चुनाव में औकात पता चल जाएगी। भाजपा पर भी बरसे। तोहमत लगाई कि भाजपा नहीं चाहती कि मराठी मानुष साथ आएं। इशारा राज ठाकरे के साथ संभावित गठबंधन की ओर था। राज ठाकरे की महाराष्ट्र नव निर्माण सेना और उद्धव की शिव सेना के साथ आने और मिलकर चुनाव लड़ने की अटकलें कई महीने से लगाई जा रही हैं। शिव सेना की स्थापना 59 साल पहले बाल ठाकरे ने की थी। उद्धव उनके बेटे हैं। एकनाथ शिंदे ने बगावत कर 2022 में शिवसेना तोड़ी थी। जिससे उद्धव ठाकरे की सरकार गिर गई थी। आने वाले चुनाव में उद्धव साबित करना चाहेंगे कि मुंबई जो जीतेगा, वही कहलाएगा असली शिव सेना का सिकंदर।