केंद्र में जनता दल के नेतृत्व में इंद्र कुमार गुजराल की सरकार थी। 4 जुलाई की 1997 की शाम प्रधानमंत्री गुजराल ने दिल्ली स्थित अपने आवास पर एक मीटिंग बुलाई। जिसमें लालू प्रसाद भी शामिल हुए। मीटिंग में लालू प्रसाद ने कहा कि वो बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा तो दे देंगे लेकिन जनता दल का अध्यक्ष उन्हें ही रहने दिया जाए। दरअसल लालू प्रसाद पर सीबीआई शिकंजा कसती जा रही थी। सीबीआई की चार्जशीट को देखते हुए कोई भी नेता लालू के पक्ष में खड़ा होता दिखाई नहीं दे रहा था। यहां तक कि गुजराल ने भी कह दिया था कि लालू जी आपको सीएम पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।
मीटिंग का नतीजा देख लालू प्रसाद समझ चुके थे कि उनकी अब स्थिति बदलने वाली है। लेकिन अगले ही दिन उन्होंने दिल्ली स्थित अपने आवास पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का गठन किया। राजद के गठन के समय में 17 लोकसभा सांसद और 8 राज्यसभा सांसदों की मौजूदगी ने इस बात की गवाही कर रही थी कि देश के बड़े नेता भले ही लालू के साथ खड़े न हो हो लेकिन बिहार के नेता लालू के साथ कदम से कदम मिलकर चलने को तैयार थे। गठन के साथ ही लालू प्रसाद को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया। जिसके बाद से आज तक वो राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हुए हैं।
सीबीआई चारा घोटाले में लालू यादव पर अंकुश बढ़ाती जा रही थी। लालू प्रसाद भी इस बात को समझ चुके थे कि अब वो चाहकर भी जेल जाने से नहीं बच सकते हैं ऐसे में उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए पहले तो प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल से बात की, लेकिन धीरे-धीरे उनके अपने ही साथ छोड़ने लगे। यहां तक की जनता दल के बड़े नेता राम विलास पासवान और शरद यादव ने लालू प्रसाद के इस्तीफे की मांग की। वहीं दूसरी तरफ कम्युनिस्ट पार्टियों ने इंद्र कुमार गुजराल पर लालू प्रसाद के इस्तीफे को लेकर दबाव बनाना शुरू कर दिया।
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लालू प्रसाद ने अपनी किताब ‘गोपालगंज टू रायसीना, मेरी राजनीतिक यात्रा’ में राष्ट्रीय जनता दल के गठन के पीछे की कहानी बताते हुए लिखा है, “जुलाई, 1997 में जनता दल के अध्यक्ष पद का चुनाव होना था। मैं ये नहीं समझ पाया कि आखिर शरद यादव ने किन वजहों से आखिरी समय में अध्यक्ष पद की दौड़ में कूदने का फैसला किया। मेरे नेतृत्व में पार्टी को जीत मिल रही थी, जहां बिहार में दूसरी बार सरकार बन गई थी वहीं केंद्र में भी सरकार थी, उन्हें मेरा साथ देना था लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा मुझे हटाकर खुद पार्टी अध्यक्ष बनने की हो गई थी। इस पूरी स्थिति को देखने के बाद यहां मेरा धैर्य खत्म हो गया और मैंने सोच लिया कि अब बहुत कुछ हो चुका है।”
5 जुलाई को लालू यादव ने राजद का गठन किया तो किसी को भी बड़ी घटना नहीं लगी, लेकिन 20 दिन बाद यानी 25 जुलाई को जब लालू ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को विधायक दल का नेता घोषित करके बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री बनाने का दांव चल दिया तब लोगों को लालू का खेल समझ में आया। दरअसल लालू बिहार में अपना प्रभाव कम नहीं होने देना चाहते थे और सरकार में भी अपनी पकड़ कमजोर नहीं करना चाहते थे। लालू प्रसाद के इस राजनीतिक फैसले की हर तरफ आलोचना हुई। राबड़ी के मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू प्रसाद ने चारा घोटाला मामले में 30 जुलाई को सरेंडर किया और फिर उनपर कानूनी कार्रवाइयों शुरू हुई, अंतत: उनको उसी दौरान जेल भी जाना पड़ा।
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साल 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और उनकी पार्टी राजद की अग्नि परीक्षा थी। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी। विधानसभा चुनाव के जब परिणाम आए तो बीजेपी और एनडीए के नेताओं को बड़ा झटका लगा। 124 सीटें जीतकर राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हालांकि किसी भी गठबंधन को बहुमत नहीं होने के बाद भी नीतीश कुमार राज्य के मुख्यमंत्री बने, लेकिन महज 7 दिनों के भीतर ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। उसके बाद लालू प्रसाद ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ और रणनीति के दम पर राबड़ी देवी को एक बार फिर मुख्यमंत्री बनाने में कामयाब रहे। राबड़ी देवी 2005 तक बिहार के कुर्सी पर कायम रहीं।
2004 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर राजद का सिक्का चला और पार्टी को राज्य की 40 लोकसभा में से 22 सीटों पर जीत मिली। लालू प्रसाद केंद्र में रेल मंत्री बने तो पार्टी के वरिष्ठ नेता और लालू के करीबी रघुवंश प्रसाद सिंह ग्रामीण विकास मंत्री बनें।
लेकिन राजद का प्रभाव 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव से नीचे जाना शुरू हो गया। राज्य में लालू की 15 साल की सत्ता में हुए अपराध को लेकर बीजेपी और एनडीए में शामिल जेडीयू ने ‘जंगलराज’ का नाम दिया। जंगलराज के नाम पर ये चुनाव हुआ और इसका फायदा परिणाम राजद को भुगतना पड़ा। फरवरी में हुए इस चुनाव में राजद को 75 सीट मिली। इस चुनाव में किसी भी दल (गठबंधन) को जब स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। जिसके बाद अक्टूबर नवंबर में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में राजद के खाते में 54 सीटें आईं और बीजेपी के समर्थन से नीतीश कुमार बिहार के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने।
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2009 में हुए लोकसभा चुनाव में राजद की बुरी तरह हार हुई और 40 लोकसभा सीट में से राजद को महज 4 सीटों पर जीत मिली। इसके बाद 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में तो राजद अपने सबसे बुरे दौर में चली गई और पार्टी महज 22 विधानसभा सीटों तक सिमट कर रह गई। इस चुनाव के बाद ये तक कहा जाने लगा कि अब राजद अपने अंतिम दौर में जा चुकी है। दूसरी ओर चारा घोटाला मामला एक बार फिर से लालू के गले की फांस बनता जा रहा था।
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद को एक बार बुरी तरह मात मिली और पार्टी के खाते में महज 4 सीटें आईं। लेकिन उसके बाद साल 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले लालू यादव के इस मास्टर स्ट्रोक ने पार्टी को एक बार फिर से खड़ा कर दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ही नीतीश कुमार ने एनडीए का दामन छोड़ दिया था, जिसका परिणाम 2014 लोकसभा में जेडीयू का हाल भी राजद जैसा ही हो गया था। ऐसे में लालू यादव ने मौका देखकर कभी अपने धूर विरोधी रहे नीतीश कुमार के साथ गठबंधन करके आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया। लालू यादव के इस फैसले ने उनकी पार्टी राजद के लिए संजीवनी का काम किया। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और 80 सीटों पर जीत मिली। जबकि जेडीयू के खाते में 71 सीटें आईं। नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बनी। इस सरकार में लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव राज्य के उपमुख्यमंत्री बने जबकि उनके बड़े बेटे तेज प्रताप यादव स्वास्थ्य मंत्री बने। इस चुनाव ने जहां लालू यादव और राजद को मजबूत किया वहीं उनके दोनों बेटे भी बिहार में नेता के तौर पर स्थापित हो गए।
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2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही नीतीश कुमार एनडीए में लौट आए। इस चुनाव में राजद का हाल फिर 2014 के जैसा ही रहा। अगले वर्ष हुए बिहार विधानसभा से पहले ही लालू यादव चारा घोटाले में रांची जेल में बंद थे, ऐसे में तेजस्वी के कंधों पर पार्टी की जिम्मेदारी थी। हालांकि इस चुनाव में राजद एक बार फिर से सबसे बड़ी पार्टी बनी। राजद के खाते में 75 सीटें आईं, लेकिन बीजेपी और जेडीयू गठबंधन के पास बहुमत होने की वजह से सरकार बनाने में नाकाम रही। हालांकि साल 2022 में नीतीश कुमार ने एक बार से राजद के साथ मिलकर महागठबंधन की सरकार बनाई। इस सरकार में तेजस्वी यादव फिर से राज्य के उपमुख्यमंत्री बने और तेजप्रताप यादव को पर्यावरण मंत्री बनाया गया।
लेकिन नीतीश और लालू का गठबंधन ज्यादा समय के लिए नहीं रहा और 2024 लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार एक बार फिर से एनडीए के पाले में लौट आए। नीतीश के साथ न रहने का नुकसान एक बार फिर राजद को 2024 के लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ा और पार्टी को महज 4 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा।
आगामी बिहार विधानसभा चुनाव दिलचस्प होने वाला है, क्योंकि एक तरफ जहां सीएम नीतीश कुमार, चिराग पासवान के नेतृत्व वाली एलजेपी, जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली हम और उपेंद्र कुशवाहा, बीजेपी के सहयोगी के रूप में एनडीए का हिस्सा हैं। वहीं राजद नेता तेजस्वी यादव ने वाम दलों को अपने साथ महागठबंधन में रखा है। जबकि कांग्रेस को इस गठबंधन की सहयोगी बनने की उम्मीद जताई जा रही है। ऐसे में राजद के लिए ये चुनाव काफी महत्वपूर्ण होने वाला है, क्योंकि लालू प्रसाद ने अपने बड़े बेटे तेजप्रताप यादव को राजद से छ: साल के लिए निष्कासित कर दिया है। तेजप्रताप ने बीते दिनों पहले सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी प्रेमिका अनुष्का यादव के साथ प्रेम संबंध का खुलासा किया था। जिसके बाद लालू ने ये फैसला लिया। इस स्थिति में लालू और तेजस्वी के सामने ये चुनाव बड़ा निर्णायक होने वाला है।