Punjab Politics: पंजाब की सियासत में काफी उठा-पटक जारी है। इस बीच शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और तख्तों के बीच चल रही लड़ाई ने पिछले शुक्रवार को अभूतपूर्व मोड़ ले लिया है। एसजीपीसी ने अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह और तख्त केसगढ़ साहिब और ज्ञानी सुल्तान सिंह को उनके पदों से हटा दिया है, जो कि शिरोमणि अकाली दल के लिए सियासी लिहाज से काफी नुकसान वाला फैसला हो सकता है।

एसजीपीसी एक धार्मिक संगठन है, जो कि पंजाब चंडीगढ और हिमाचल प्रदेश में गुरुद्वारों के प्रबंधन का काम देखता है। अमृतसर में श्री अकाल तख्त और आनंदपुर साहिब में तख्त केसगढ़ साहिब सिख धर्म में लौकिक प्राधिकरण की पांच सीटों में से दो हैं।

आज की बड़ी खबरें

एसजीपीसी के हालिया घटनाक्रम में शिरोमणि अकाली दल द्वारा नियंत्रित एसजीपीसी द्वारा ज्ञानी हरप्रीत सिंह को तख्त श्री दमदमा साहिब के जत्थेदार के पद से हटाए जाने के लगभग एक महीने बाद हुआ है। इसके साथ ही पिछले साल 2 दिसंबर को धार्मिक दुराचार के लिए पूर्व अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को सजा सुनाने वाले सभी तीन सिख जत्थेदारों को उनके पदों से हटा दिया गया है।

यह निष्कासन अकाली दल और जत्थेदारों के बीच लंबे समय से चल रहे टकराव का परिणाम है। 2015 में अकाल तख्त के तत्कालीन जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह के खिलाफ नाराजगी थी, क्योंकि उन्होंने डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को सिख भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में माफ़ी दे दी थी। यह मई 2007 की एक घटना से संबंधित है, जब बठिंडा के सलाबतपुरा में एक समागम के दौरान राम रहीम पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का आरोप लगाया गया था क्योंकि उन्होंने 10वें सिख गुरु, गुरु गोविंद सिंह की तरह कपड़े पहने थे और एक समारोह आयोजित किया था।

पंजाब के सभी स्कूलों में पंजाबी पढ़ना हुआ अनिवार्य, जानें क्या है भगवंत मान सरकार का नया ऑर्डर

एसजीपीसी और जत्थेदारों के प्रभावी रूप से अकाली दल के नियंत्रण में होने के कारण, उस समय कुछ अकाली दल विरोधी और बादल विरोधी सिख संगठन एक साथ आए और सरबत खालसा का आह्वान किया, जिसमें समुदाय के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते थे। सरबत खालसा ने ध्यान सिंह मंड को कार्यवाहक अकाल तख्त जत्थेदार नियुक्त किया था।

ठीक उसी समय जब ज्ञानी हरप्रीत सिंह सत्ता में आ गए थे, तो अकाली दल के कुछ नेताओं ने उन पर आम आदमी पार्टी (आप), कांग्रेस और बीजेपी के साथ घनिष्ठ संबंध होने का आरोप लगाया। इन आरोपों ने एसजीपीसी और जत्थेदार के बीच संबंधों को खराब कर दिया। 2023 में SGPC ने हरप्रीत सिंह को हटाकर ज्ञानी रघबीर सिंह को अकाल तख्त का जत्थेदार नियुक्त किया।

पिछले साल बादल अकाल तख्त के सामने पेश हुए और “धार्मिक कदाचार” के आरोपों को स्वीकार किया। अन्य आरोपों के अलावा, बादल पर 2007 में हरियाणा के सिरसा में डेरा सच्चा सौदा के खिलाफ जारी अकाल तख्त साहिब के आदेश का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था, जबकि किसी भी सिख का डेरा सच्चा सौदा से कोई संबंध नहीं माना जाता है। सुखबीर सिंह बादल की अध्यक्षता में, SAD को डेरा से राजनीतिक समर्थन मिला।

‘देशभक्त हो तो खालिस्तान मुर्दाबाद बोलकर दिखाओ…’, X यूजर ने हरभजन सिंह को दिया चैलेंज, FIR दर्ज

पिछले साल 2 दिसंबर को श्री अकाल तख्त साहिब ने 2007 से 2017 के बीच पंजाब में सत्ता में रहने के दौरान SAD के कथित कुशासन के लिए बादल और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के लिए धार्मिक सजा सुनाई थी। इसने सदस्यता अभियान शुरू करके और छह महीने के भीतर अपने शीर्ष नेतृत्व के चुनाव की व्यवस्था करके SAD को पुनर्गठित करने के लिए सात सदस्यीय समिति का गठन भी किया था।

बादल को सजा के तुरंत बाद SGPC ने ज्ञानी हरप्रीत सिंह के खिलाफ 2008 में लगाए गए आरोपों की जांच शुरू कर दी। ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने आरोप लगाया कि जांच का उद्देश्य 2 दिसंबर के फैसले से ध्यान हटाना है। इस बीच एसजीपीसी और जत्थेदारों के बीच मतभेद बढ़ गया है। ज्ञानी रघबीर सिंह चाहते थे कि शिरोमणि अकाली दल सात सदस्यीय के माध्यम से अभियान चलाए, लेकिन पार्टी ने अपनी कार्यसमिति के माध्यमसे सदस्यता अभियान चलाने का फैसला किया था। पंजाब से संबंधित अन्य सभी खबरें पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।