कांग्रेस नेता और सांसद शशि थरूर इस समय एक अलग ही असमंजस में फंसे हुए हैं, वे अपनी राजनीति को लेकर नए विकल्प तलाश रहे हैं। उनकी तरफ से राहुल गांधी से पूछा जा रहा है कि पार्टी में उनकी भूमिका क्या है। असल में शशि थरूर अब जानना चाहते हैं कि उनकी भूमिका केरल की राजनीति में क्या रहने वाली है, क्या उन्हें कोई बड़ा रोल मिलेगा या फिर उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में कुछ करने का अवसर मिलेगा।
ऐसी खबर है कि राहुल गांधी के साथ हुई बातचीत में उनकी तरफ से सारी बातें स्पष्ट कर दी गई हैं। उन्होंने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की है कि बीते कुछ समय में उनकी भागीदारी पार्टी के भीतर ही कम होती जा रही है, उन्हें खुलकर विचार रखने की आजादी भी नहीं मिल रही। अब इतना सबकुछ भी थरूर को इसलिए लग रहा है क्योंकि उनके कुछ बयानों को पार्टी के नेताओं ने ही कांग्रेस के खिलाफ मान लिया है, यहां तक कहा गया कि उनकी वजह से सत्ता पक्ष को लाभ हो सकता है।
असल में कुछ दिनों पहले ही शशि थरूर ने पीएम मोदी की तारीफ की थी। जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पीएम मोदी को एक टफ नेगोशिएटर बता दिया था, थरूर ने इसे भारत की जीत माना था। जब उनके इस बयान के लिए कांग्रेस में ही निंदा शुरू हो गई, थरूर को सामने से कहना पड़ा कि कई मौकों पर पार्टी स्टैंड से ऊपर उठकर भी बातें करनी चाहिए। अब यहां तक स्थिति अलग थी, कुछ दिन पहले उनकी तरफ से केरल की लेफ्ट सरकार की भी तारीफ कर दी गई। उनकी तरफ से विजयन सरकार के दौरान हुई इंडस्ट्रियल ग्रोथ की तारीफ की गई।
अब पीएम मोदी की तारीफ करना, केरल में कांग्रेस के सबसे कट्टर दुश्मन की नीतियों को पसंद करना, शशि थरूर के इस अंदाज ने कई को हैरान किया है। इसके ऊपर अब जब वे कह रहे हैं कि उनके पास सारे विकल्प खुले हैं, सवाल उठने लगे हैं कि आखिर उनका इशारा किस ओर है?
जानकार मानते हैं कि शशि थरूर के पास सबसे बड़ा विकल्प तो एलडीएफ के साथ जाने का ही है। केरल की राजनीति के लिहाज से यह एक निर्णायक मोड़ होगा। अभी तक जो थरूर कांग्रेस के वफादार सिपाही हुआ करते थे, अगर वे लेफ्ट के साथ चले जाते हैं, यह कांग्रेस के लिए उतनी ही बड़ी हार होगी जितनी बड़ी जीत लेफ्ट के लिए।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि लेफ्ट की सरकार क्योंकि विकास केंद्रित बात ज्यादा करती है, थरूर का बेहतर इस्तेमाल हो सकता है। इसके ऊपर उनके अनुभव को देखते हुए एलडीए उन्हें कोई बड़ी भूमिका भी दे सकती है। एक तर्क यह भी है कि शशि थरूर शहरी वोटरों में ज्यादा लोकप्रिय हैं, ऐसे में अगर वे लेफ्ट के साथ जाते हैं, उनका पहले से मजबूत जनाधार और ज्यादा मजबूत हो जाएगा।
केरल में बीजेपी को अपना विस्तार करना है, इस बात में कोई दो राय नहीं है, पार्टी यहां पर कई दशकों से संघर्ष कर रही है, यह भी एक सच्चाई है। लेकिन क्या शशि थरूर हिंदुत्व विचारधारा वाली पार्टी के साथ जाना चाहेंगे, ऐसा मुश्किल लगता है। असल में सिर्फ पीएम मोदी की तारीफ करने से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि थरूर बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। इसका सबसे बडा़ कारण यह है कि थरूर पहले भी कई मौकों पर दलगत की राजनीति से ऊपर उठ बयान दे चुके हैं। ऐसे में सिर्फ एक तारीफ को पाला बदलने से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।
वैसे भी जिस हिंदुत्व की पिच पर बीजेपी खेल रही है, वो शशि थरूर की राजनीति से इतर है, ऐसे में उनका बीजेपी में जाना काफी मुश्किल है। यह अलग बात है कि एक समय ज्योतिरादित्य सिंधिया, हिमंता बिस्वा सरमा, आरपीएन सिंह, जितेन प्रसाद जैसे नेता भी कांग्रेस के सबसे बड़े वफादार थे, लेकिन समय के साथ और जरूरत के हिसाब से उन्होंने भगवा पार्टी का दामन थामा। लेकिन शशि थरूर का अभी के लिए बीजेपी में जाना काफी मुश्किल दिखाई देता है।
अब अगर वे बीजेपी में नहीं जाते हैं और लेफ्ट से भी दूरी बना लेते हैं, उस स्थिति में उन्हें केरल कांग्रेस में खुद के लिए बड़ी भूमिका तलाशनी पड़ेगी। अभी तक तो वे सिर्फ एक सांसद तक सीमित रह चुके हैं। उन्होंने राहुल गांधी के सामने कहा जरूर था कि उनकी क्या भूमिका होगी, लेकिन बताया जा रहा है कि रायबरेली सांसद ने सिर्फ इतना कहा कि कांग्रेस की परंपरा नहीं कि वो चुनाव से पहले कही अपना चेहरा घोषित करे। यह बताने के लिए काफी है कि कांग्रेस में रहते हुए केरल की सीएम कुर्सी तो शशि थरूर से दूर दिखाई देती है।
इसके ऊपर अगर लेफ्ट में जाने का मन बनाते हैं, उस स्थिति में भी ज्यादा से ज्यादा उन्हें मंत्री पद मिल सकता है, सीएम कुर्सी तक वहां भी एक ही नेता के साथ सुरक्षित चल रही है। ऐसे में थरूर अब सिर्फ खुद के लिए वो विकल्प चुनेंगे जहां उन्हें ज्यादा सम्मानजनक भूमिका मिलेगी।