Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपनी ही बेटी के यौन शोषण के आरोपी पूर्व जज के खिलाफ मामला रद्द करने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने इसे ‘हैरान’ वाला बताया
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने मामले को गंभीर बताते हुए कहा कि इसमें उनके खिलाफ अनाचार के गंभीर आरोप शामिल हैं। कोर्ट टिप्पणी की, ‘बेटी आरोप लगा रही है…यह एक चौंकाने वाला मामला है। वह एक न्यायिक अधिकारी है और यह अनाचार के गंभीर आरोप हैं! यह चौंकाने वाला है। और बेटी ने आरोप लगाए हैं। उसे जीवन भर के लिए आघात पहुंचा होगा। यह कैसे रद्द करने लायक मामला हो सकता है?’
पूर्व जज पर भारतीय दंड संहिता की धारा 354 ( महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से उसके खिलाफ हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम की धारा 7 ( यौन हमला ), 8 ( यौन हमले के लिए सजा ), 9 (एल) ( बच्चे पर एक से अधिक बार या बार-बार यौन हमला ), 9 (एन) ( रिश्तेदार द्वारा बच्चे पर यौन हमला ) और 10 ( गंभीर यौन हमला ) के तहत मामला दर्ज किया गया है।
पूर्व जज ने अपने खिलाफ आरोपों को रद्द करने से इनकार करने वाले बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए शीर्ष अदालत के समक्ष एक विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। उनके वकील ने अदालत को बताया कि आरोपों ने उनका जीवन और करियर बर्बाद कर दिया है तथा यह उनकी पत्नी के साथ लंबे समय से चल रहे वैवाहिक विवाद का परिणाम है।
वकील ने कहा, ‘इस व्यक्ति का पूरा जीवन उसकी वैवाहिक समस्याओं से शुरू होकर बर्बाद हो गया है। यह स्पष्ट रूप से एक जवाबी हमला है। उसके पिता ने आत्महत्या कर ली।’
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि वह मामले की कथित पृष्ठभूमि की जांच करने के लिए इच्छुक नहीं है तथा आरोपों की गंभीरता की ओर इशारा किया। इसमें आगे कहा गया कि हम इस सब में नहीं पड़ना चाहते। आत्महत्या बेटे की हरकतों की वजह से हो सकती है।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि आरोप कथित घटनाओं के कई साल बाद सामने आए। यह भी तर्क दिया गया कि ये आरोप तलाक और घरेलू हिंसा की कार्यवाही में शामिल नहीं थे।
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हालांकि, कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। उसने याचिका को खारिज करते हुए मुकदमे में तेजी लाने का निर्देश दिया। याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) 21 जनवरी, 2019 को महाराष्ट्र के भंडारा में दर्ज की गई थी।
हालांकि, आरोप मई 2014 और 2018 के बीच हुई घटनाओं से संबंधित हैं। पुलिस द्वारा आरोपपत्र दायर किया गया है, लेकिन विशेष पॉक्सो अदालत द्वारा आरोप अभी तय नहीं किए गए हैं।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि शिकायत दुर्भावना से प्रेरित थी और कथित अपराध के चार साल बाद दायर की गई थी, जो कि वैवाहिक मुकदमेबाजी और हिरासत की लड़ाई के समय चल रही थी। उनकी याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि बेटी के बयान में हेरफेर किया गया और बयान को याचिकाकर्ता के पिता द्वारा दिसंबर 2018 में आत्महत्या करने के बाद ही दर्ज किया गया। सुसाइड नोट में कथित तौर पर शिकायतकर्ता और उसके परिवार को दोषी ठहराया गया था। वहीं, एक अन्य मामले में सीजेआई ने कहा कि कार्यपालिका के फेल होने पर हस्तक्षेप जरूरी है। पढ़ें…पूरी खबर।