Donald Trump Iran Policy: ईरान और इजरायल के बीच में पिछले कई दिनों से भीषण युद्ध जारी है। इस युद्ध का सबसे अहम पहलू है अमेरिका की भूमिका। उससे भी दिलचस्प बात यह है कि अभी तक किसी को नहीं पता कि अमेरिका कौन सी भूमिका अदा करने वाला है। वो शांति की स्थापना करने वाली सुपरपावर बनकर दिखाएगा या फिर खुद युद्ध में कूदकर ईरान को पूरी तरह बर्बाद करने का काम करेगा। अब विकल्प तो दो हैं, लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप दोनों में से किसी को भी नहीं चुन पा रहे हैं।
खुद राष्ट्रपति ट्रंप, उनको जानने वाले इसे उनकी अनप्रिडिक्टेबल नीति कहते हैं। ऐसा दिखाया जा रहा है कि कोई भी ट्रंप का दिमाग नहीं पढ़ सकता है। लेकिन असल में हो इसका उलट रहा है, कोई राष्ट्रपति ट्रंप की नीति तब समझ पाएगा जब उसमें कोई स्थिरता होगी, जब कोई स्पष्ट स्टैंड दिखेगा। यहां तो हर बीतते दिन के साथ ट्रंप के बयान भी बदल रहे हैं और नीति भी बदलती दिख जाती है।
राष्ट्रपति ट्रंप ने पहले कहा था कि ईरान को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी, वो अगर सरेंडर नहीं करता तो चुनौतियां काफी ज्यादा बढ़ जाएंगी। लेकिन अब ट्रंप कह रहे हैं कि उन्होंने ईरान पर हमले का कोई भी प्लान अप्रूव नहीं किया है और दो हफ्तों के भीतर कोई भी फैसला लिया जाएगा। यहां एक और बात हैरान करने वाली है, राष्ट्रपति ट्रंप लगातार युद्ध रोकने की बात भी करते हैं, खुद के लिए नोबेल पीस प्राइज की मांग करते हैं, चुनावी प्रचार के दौरान भी अमेरिकियों को ऐसे ही सपने दिखा चुके हैं।
लेकिन जो शांति की बात करता हो, वो कैसे किसी को हमले की धमकी दे सकता है? वो कैसे कह सकता है कि अगर सरेंडर नहीं हुआ तो भारी कीमत चुकानी पड़ेगी? शांति स्थापित करने वाले दोनों पक्षों की बात सुनते हैं, यहां तो किसी एक का पक्ष लेकर दूसरे को कभी धमकी दी जा रही है तो कभी उसे बातचीत की टेबल पर आने के लिए कहा जा रहा है। जानकार मानते हैं कि यह कन्फ्यूज नीति पूरे मिडिल ईस्ट को और मुश्किल में डाल सकती है।
अगर किसी को बातचीत की टेबल पर भी लाना है तो उसे बताना जरूरी है कि हम बातचीत करना चाहते हैं। लेकिन राष्ट्रपति जिस तरह से धमकी देकर किसी को बातचीत की टेबल पर लाने की कोशिश कर रहे हैं, इससे स्थिति और ज्यादा बिगड़ रही है, ईरान के लगातार आ रहे आक्रोशित बयान भी इस बात की पुष्टि करते हैं। अमेरिका की इस प्रेशर पॉलिटिक्स को ईरानी नेता अच्छा नहीं मान रहे हैं।
लेकिन ट्रंप के लिए इस तरह से अप्रिडिक्टबेल रहना कोई नई बात नहीं है। उनका पिछला कार्यकाल भी याद करना जरूरी है जब 2018 में उन्होंने अमेरिका को Joint Comprehensive Plan Of Action (JCPOA) से अलग कर लिया था। इस कमेटी में जो भी देश थे उनकी सिर्फ एक जिम्मेदारी थी, ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना था। अब ईरान को क्योंकि न्यूक्लियर वेपन बनाने से रोका जा रहा था, ऐसे में उसके बजाय उसे कई तरह की राहत देने की बात थी। कई सालों से ऐसा हो भी रहा था, लेकिन ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में अचानक से अमेरिका को इस प्लान से ही अलग कर लिया।
अब जब ट्रंप फिर राष्ट्रपति बने हैं, उन्होंने इजरायल की जमकर तारीफ कर दी है। इजरायल ने जून के शुरुआती हफ्ते में जो हमला किया था, ट्रंप उन नेताओं में शामिल रहे जिन्होंने उसे शानदार बता दिया। उन्होंने इजरायल की सटीकता की जमकर तारीफ की। यहां तक कह दिया कि ईरान के साथ ऐसा होना ही था। अब जो नेता युद्ध रुकवाने की बात करता हो, जो खुद के लिए नोबेल पीस प्राइज चाहता हो, वो कैसे ऐसा बयान दे सकता है? अब अगर उस बयान को ही उनकी नीति माना जाता, साफ संकेत था कि अमेरिका इजरायल के साथ खड़ा है और ईरान पर शायद वो भी हमला कर सकता है।
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लेकिन उनकी इस नीति को बल मिलता, उससे पहले ही ट्रंप ने एक और यू टर्न ले लिया है। अब इजरायल की क्षमता पर ही सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि इजरायल अपने दम पर ईरान के फोर्डो में न्यूक्लियर फैसिलिटी को नुकसान नहीं पहुंचा सकता है। उनके पास उतनी क्षमता ही नहीं है। अब यह वहीं ट्रंप हैं जो कभी इजरायल की सटीकता की तारीफ कर रहे थे, लेकिन अब यहां उनका सुर बदल चुका है। क्या माना जाए कि वे इजरायल की मदद करने वाले हैं? इस सवाल पर ट्रंप ने फिर अनप्रिडिक्टेबल वाला खेल खेला है। जोर देकर कहा है कि अमेरिकी फौज को भेजना आखिरी विकल्प रहने वाला है।
मतलब साफ है कि अमेरिका अभी इजरायल की मदद नहीं करने वाला है, ईरान पर हमला करेगा, इसे लेकर कुछ स्पष्ट नहीं। युद्ध को रुकवाने में कोई भूमिका निभाएगा? यहां भी ट्रंप नीति क्लियर नहीं। ऐसे में ट्रंप अपनी जिस अप्रिडिक्टबेलिटी को सबसे बड़ा हथियार मान रहे हैं, असल में वो पूरे मिडिल ईस्ट के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित हो सकती है। ‘अमेरिका हमला कर सकता है’ वाला डर भी ईरान से कुछ ऐसा करवा सकता है जो शायद वो वैसे करने का ना सोचता। ऐसे में स्पष्ट नीति ही मिडिल ईस्ट में शांति ला सकती है, लेकिन ट्रंप ऐसा करेंगे या नहीं, अभी साफ नहीं।
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