Supreme Court: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को आपातकाल (Emergency) के दौरान दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की और इसे दुनिया के न्यायिक इतिहास (Judicial History) का सबसे काला फैसला करार दिया।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, एक आधिकारिक बयान के अनुसार, उन्होंने कहा कि नौ उच्च न्यायालयों के फैसले को खारिज करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने तानाशाही और अधिनायकवाद को वैधता प्रदान की है।
धनखड़ ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद पर भी सवाल उठाया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर किए थे, न कि पूरी मंत्रिपरिषद के कहने पर।
यहां राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के एक समूह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रपति किसी एक व्यक्ति, प्रधानमंत्री की सलाह पर काम नहीं कर सकते। संविधान बहुत स्पष्ट है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद है। यह एक उल्लंघन था, लेकिन इसका परिणाम क्या हुआ? इस देश के 1,00,000 से अधिक नागरिकों को कुछ ही घंटों में सलाखों के पीछे डाल दिया गया।
आपातकाल के दौरान न्यायपालिका की भूमिका का उल्लेख करते हुए धनखड़ ने कहा कि वह ऐसा समय था जब संकट के समय लोकतंत्र का मूल सार खत्म हो गया था। लोग न्यायपालिका की ओर देखते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि देश के नौ उच्च न्यायालयों ने शानदार ढंग से परिभाषित किया है कि आपातकाल हो या न हो, लोगों के पास मौलिक अधिकार हैं और न्याय प्रणाली तक उनकी पहुंच है। दुर्भाग्य से, सर्वोच्च न्यायालय ने सभी नौ उच्च न्यायालयों के फैसले को पलट दिया और ऐसा फैसला दिया जो दुनिया में किसी भी न्यायिक संस्थान के इतिहास में सबसे काला फैसला होगा, जो कानून के शासन में विश्वास करता है।
धनखड़ ने बताया कि निर्णय यह था कि यह कार्यपालिका की इच्छा है कि वह आपातकाल को उतने समय के लिए जारी रखे, जितना वह उचित समझे।
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1976 के एडीएम जबलपुर मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 4-1 के बहुमत से राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के निलंबन को बरकरार रखा था। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एएन रे और न्यायमूर्ति एमएच बेग, वाईवी चंद्रचूड़ और पीएन भगवती के बहुमत के फैसले में कहा गया था कि आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 21 के उल्लंघन के लिए कानूनी उपाय मांगने का अधिकार निलंबित कर दिया गया था।
जस्चिस एच.आर. खन्ना ने असहमति जताते हुए कहा कि जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार अंतर्निहित है, न कि केवल संविधान द्वारा दिया गया उपहार। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्णय दिया कि आपातकाल के दौरान कोई मौलिक अधिकार नहीं होते।
धनखड़ ने कहा कि इसलिए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने इस देश में तानाशाही, अधिनायकवाद और निरंकुशता को वैधता प्रदान कर दी है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि वर्तमान सरकार ने “बुद्धिमानीपूर्वक” निर्णय लिया है कि हर वर्ष 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। बता दें, आपातकाल 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लागू रहा। वहीं, अभी हाल ही में सीजेआई बीआर गवई ने कहा कि सरकारें, जज, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती हैं। पढ़ें…पूरी खबर।