Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि राज्य के गैंगस्टर विरोधी कानून के तहत दर्ज एक मामले में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ अपने जवाब में अप्रचलित मामलों को शामिल करने के कारण वह “प्रॉसिक्यूटर नहीं बल्कि पर्सिक्यूटर” है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने एक आरोपी की याचिका पर राज्य के हलफनामे का हवाला दिया और सवाल किया कि उसके खिलाफ ऐसे मामले क्यों हैं जिन्हें या तो रद्द कर दिया गया या जिनमें उसे बरी कर दिया गया।
न्यूज एजेंसी PTI की रिपोर्ट के अनुसार, बेंच ने कहा, “आप अपने जवाब में उन मामलों को भी शामिल कर रहे हैं जिन्हें खारिज कर दिया गया है और जिनमें याचिकाकर्ता को बरी कर दिया गया है। अगर यह आपकी कार्यप्रणाली है, तो आप प्रॉसिक्यूटर नहीं नहीं, पर्सिक्यूटर हैं।”
इसलिए अदालत ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के तहत आरोपों का सामना कर रहे चार व्यक्तियों को जमानत दे दी। बेंच ने यूपी सरकार से पूछा, “अगर वह (याचिकाकर्ता) पहले से ही कुछ मामलों में जमानत पर रिहा है, अगर कुछ कार्यवाही रद्द कर दी गई हैं, अगर कुछ कार्यवाही में उसे बरी कर दिया गया है… तो क्या आपके लिए इस कोर्ट के समक्ष फैक्चुअल स्थिति रखना जरूरी नहीं था?”
सुप्रीम कोर्ट में यह आदेश आरोपियों द्वारा दायर चार अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पारित किया गया। आरोपियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के नवंबर 2024 के आदेशों को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था। याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि याचिकाकर्ता भाई हैं और 2017 के बाद दर्ज मामलों में उन्हें फंसाया गया है, क्योंकि उनके पिता एक राजनीतिक दल से संबंधित MLC थे।
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उन्होंने कहा कि राज्य की कार्यप्रणाली ऐसी है कि जब याचिकाकर्ताओं को एक मामले में जमानत मिल जाती है तो उनके खिलाफ दूसरी FIR दर्ज कर दी जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उन्हें कभी राहत न मिले। लूथरा ने राज्य के हलफनामे का हवाला देते हुए कहा कि एक याचिकाकर्ता के खिलाफ 28 FIR दर्ज हैं, जबकि अन्य के खिलाफ 15 FIR दर्ज हैं।
उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामलों में राज्य ने आपराधिक पृष्ठभूमि के आधार पर जमानत का विरोध किया, याचिकाकर्ताओं को या तो बरी कर दिया गया या जमानत पर रिहा कर दिया गया और कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने उनमें से कुछ के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी। लूथरा ने कहा, “मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है। राज्य अथॉरिटी का लगातार यही व्यवहार रहा है कि वे FIR दर्ज करते रहते हैं। मुझे नहीं पता कि मेरा मुवक्किल जेल में सुरक्षित है या बाहर।”
यूपी सरकार के वकील ने जमानत याचिकाओं का विरोध किया और कहा कि दर्ज मामलों में से एक कथित केस गैंगरेप का है। वकील ने सेक्शन 19(4) का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी आरोपी को तब तक जमानत पर रिहा नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि पब्लिक प्रॉसिक्यूटर को जमानत का विरोध करने का मौका न दिया जाए और जहां प्रॉसिक्यूटर इसका विरोध करता है। रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट संतुष्ट थी कि यह मानने के लिए उचित आधार थे कि आरोपी ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर रहते हुए उसके द्वारा कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।
बेंच ने उसके सामने पेश किए गए एक चार्ट से पता चलता है कि याचिकाकर्ता कई मामलों में संलिप्त थे, लेकिन अधिकतर मामलों में याचिकाकर्ता या तो जमानत पर रिहा हो गए या बरी हो गए। बेंच ने यह भी कहा कि कुछ मामलों में, इस कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी। कथित गैंगरेप केस पर कोर्ट ने कहा कि जुलाई 2022 में सहारनपुर की एक ट्रायल कोर्ट ने जमानत दे दी थी, लेकिन राज्य सरकार ने ढाई साल बाद भी इसे रद्द करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
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