Lalu Yadav Strategy: बिहार की राजनीति में लालू परिवार अक्सर सुर्खियां बंटोरता रहता है, यहां पर तेज प्रताप यादव का अंदाज सबसे ज्यादा अनोखा दिखता है। बोलने का स्टाइल जरूर पिता लालू जैसा ही है, लेकिन कुछ हरकतें ऐसी रहती हैं कि पार्टी के नेता ही उन्हें ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते। अब इस समय तो अपनी एक सोशल मीडिया पोस्ट की वजह से तेज प्रताप यादव पार्टी से ही बेदखल कर दिए गए हैं।
तेज प्रताप यादव ने अनुष्का यादव नाम की लड़की के साथ अपनी एक तस्वीर साझा की, 12 साल की जान-पहचान बताई और तमाम तरह की अटकलें चल पड़ीं। अब आदर्शों का सहारा लेकर राजद प्रमुख लालू ने बड़े बेटे को पार्टी और परिवार दोनों से बेदखल कर दिया। लेकिन राजनीतिक जानकारों के लिए लालू यादव का यह फैसला सियासी ज्यादा दिखाई पड़ता है। यहां तक कहा जा रहा है कि बिहार चुनाव से पहले तेजस्वी के लिए कोई मुश्किल खड़ी ना हो जाए, ऐसे में तेज प्रताप को दूर किया गया है।
जानकार मानते हैं कि इस वक्त अगर लालू बड़े बेटे को बचाए रखते, पार्टी से बाहर नहीं निकालते तो उस स्थिति में कई मोर्चों पर चुनौतियां खड़ी हो जातीं। यहां समझना जरूरी है कि तेज प्रताप की ऐश्वर्या के साथ शादी विवादों में रही है, पारिवारिक कलेश ऐसा रहा है जो मीडिया की सुर्खियां तक बना। इसके ऊपर अब एक दूसरी लड़की की एंट्री होना पूरे ही विवाद को नया रंग देता है। विरोधी तो अभी से नेरेटिव सेट करने में लगे हैं कि ‘बिहार की बेटी एश्वर्या’ की जिंदगी क्यों बर्बाद की, अनुष्का पसंद थी तो उससे शादी क्यों की गई?
इसके ऊपर तेज प्रताप का ही एक पुराना पॉडकास्ट भी वायरल है जहां उन्होंने खुद मान लिया था कि राजनीतिक मजबूरियों की वजह से एश्वर्या से शादी हुई थी, वे कभी भी इसके पक्ष में नहीं थे। ऐसे में अगर तेज प्रताप पर अब लगाम नहीं कसी जाती तो आरोप की छींटें पूरे लालू परिवार पर आती, यहां भी क्योंकि अब ड्राइविंग सीट पर तेजस्वी बैठ चुके हैं, ऐसे मे जवाब उन्हें देने पड़ते। यहां यह बात याद रखना भी जरूरी है कि पिछले बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी तेज प्रताप की सियासी शादी चुनावी मुद्दा रही थी।
नीतीश कुमार ने खुद एक रैली से लालू यादव पर तीखे हमले किए थे। उन्होंने पूर्व सीएम दरोसा प्रसाद के बेटे चंद्रिका राय का जिक्र कर तगड़ा इमोशनल कार्ड खेला था। उस समय नीतीश ने कहा था कि चंद्रिका राय और उनकी बेटी ऐश्वर्या राय के साथ इन लोगों ने कैसा बरताव किया है। एक पढ़ी-लिखी लड़की के साथ ऐसा व्यवहार। उस समय नीतीश ने यहां तक कहा था कि दरोसा बाबू ने क्या कुछ नहीं किया इनके लिए, सभी अहसानों को भूल गए और उनकी पौत्री के साथ ऐसा सलूक हुआ।
अब यह कहानी तो पिछले विधानसभा चुनाव की है, तब तो सिर्फ एक शादी टूटने को लेकर विवाद था, इस बार तो बात उससे काफी आगे निकल चुकी है। तेज प्रताप का नाम किसी और के साथ जोड़ा जा रहा है, ऐसे में यहां तो सवाल और तीखे हो जाएंगे, लालू परिवार को उनके विरोधी हर कीमत पर महिला विरोधी दिखाने की कोशिश करेंगे। अब इसी सब से बचने के लिए लालू यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप की सियासी बलि चढ़ा दी। लेकिन यहां पर गौर करने वाली बात एक और है, लालू यादव का तेजस्वी प्रेम हमेशा से ही ज्यादा रहा है।
घर के बड़े बेटे जरूर तेज प्रताप रहे हैं, लेकिन सम्मान, ताकत और अब तो मुख्यमंत्री बनाने तक के सपने तेजस्वी के लिए देखे गए। ऐसा कहां जाता है कि मां राबड़ी देवी ने जरूर कोशिश की थी कि तेज कभी भी खुद को उपेक्षित महसूस ना करें, लेकिन लालू का तेजस्वी प्रेम कई मौकों पर जगजाहिर रहा है। यह बात खुद बताने के लिए काफी है कि अब क्यों चुनावी मौसम में तेजस्वी को सुरक्षित रखने के लिए तेज प्रताप को आउट कर दिया गया है।
लालू परिवार में इस समय यह एक ऐसी महाभारत चल रही है जहां पर तेज प्रताप खुद को कई बार कृष्ण बता देते हैं, लेकिन जिस तेजस्वी को वे अपना अर्जुन कहते हैं, वे उनकी एक नहीं सुनते। पिछले कुछ सालों में सार्वजनिक मंचों पर चाहे दोनों भाई साथ दिखे हों, लेकिन एक सियासी अदावत भी रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में जब करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था, एक वक्त ऐसा आया था जब तेजस्वी पिक्चर से आउट से हो गए थे और तेज प्रताप ने ‘तेज सेना’ बनाने का ऐलान कर दिया था। बिहार के युवाओं को साधने के लिए वे अलग मंच तैयार कर रहे थे।
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इससे पहले ‘लालू-राबड़ी मोर्चा’ भी तेज प्रताप ही शुरू कर चुके हैं, आरजेडी के खिलाफ उम्मीदवार तक उतार रखे हैं। ऐसे में छोटे भाई तेजस्वी से आगे निकलने की चाह उनमें हमेशा से रही है, उनके प्रयास भी दिखे हैं, लेकिन क्योंकि असल पावर हमेशा लालू ने अपने पास रखी, ऐसे में तेज प्रताप के भी कोई भी दांव सफल नहीं हो पाए। तेज प्रताप और तेजस्वी की अनबन की खबरें 2021 में भी सामने आई थीं। तारापुर में उपचुनाव होना था, कांग्रेस ने महागठबंधन को चुनौती देने के लिए अपना प्रत्याशी उतार दिया था। उस समय निर्दलीय संजय कुमार को तेज प्रताप ने अपना समर्थन दे दिया। यहां तक कहा था कि वे प्रचार करेंगे।
लेकिन देखते ही देखते बाजी पलटी और तेजस्वी ने निर्दलीय संजय कुमार को आरजेडी में शामिल करवा दिया,तेज प्रताप का एक दांव फेल रहा। ऐसे में जितनी बार भी तेज प्रताप ने आगे निकलने की कोशिश की, लालू के आशीर्वाद से तेजस्वी भारी पड़े। अब तो तेजस्वी और ज्यादा ताकतवर बन चुके हैं। इसी साल 18 जनवरी को पटना मौर्या होटल में आरजेडी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी। पार्टी ने अपने संविधान के 35A में एक संशोधन किया और तेजस्वी को पार्टी से जुड़े जरूरी फैसले लेने की ताकत मिल गई, सिंबल जारी करने का अधिकार भी उनके पास आया। उस समय भी तेज प्रताप खाली हाथ ही रह गए।
ऐसे में अब जब लालू यादव ने तेज प्रताप को बाहर का रास्ता दिखाया, जानकार मान रहे हैं कि राजद प्रमुख तेजस्वी यादव की राह को आसान कर रहे हैं। अगर पार्टी में रहते हुए ‘उपेक्षित तेज प्रताप’ चुनावी मौसम में कुछ और विवाद खड़े करते, उससे बेहतर उन्हें इस सियासी मैदान से बाहर खदेड़ना ही रहा। इस वजह से भी लालू के विरोधी तेज प्रताप का बाहर होना एक सियासी राजनीतिक स्टंट मान रहे हैं।
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