Uttarakhand Uniform Civil Code: उत्तराखंड हाई कोर्ट में यूनिफॉर्म सिविल कोड को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में राज्य सरकार की तरफ से हलफनामा दायर कर दिया गया है। इसमें नेशनल इंटिग्रेशन और जेंडर इक्वलिटी, आपराधिक मामलों को रोकने की जरूरत और लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों की सिक्योरिटी के तर्क राज्य सरकार की तरफ से दिए गए हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से दिए गए हलफनामे में कहा गया है कि राइट टू प्राइवेसी निरपेक्ष नहीं है और संविधान बनाने वालों ने राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बढ़ावा देने के लिए यूसीसी को एक जरूरत माना था। इसमें भरण-पोषण के लिए 1985 के शाह बानो बेगम मामले, 2019 के जोस पाउलो कॉउटिन्हो फैसले और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र महासभा सम्मेलन जैसे मामलों का हवाला दिया गया है, ताकि कानून की जरूरतों पर अपने तर्कों को मजबूत किया जा सके। इसमें मैरिज और लिव-इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य बनाना शामिल है।

इंडियन एक्सप्रेस को सूत्रों ने बताया कि राज्य ने अपने हलफनामे में मैनडेटरी रजिस्ट्रेशन के लिए याचिकाकर्ताओं की तरफ से उठाई गई प्राइवेसी से संबंधी चिंताओं को खारिज कर दिया। ऐसा माना जा रहा है कि इस बात पर सभी की आम सहमति थी कि विधायक और नीति बनाने वाले लोग सामाजिक मुद्दों को बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं। कोर्ट की तरफ से दखल तब ही सही है जब मौलिक अधिकारों या संवैधानिक आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा हो।

आइए अब आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं कि राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में क्या तर्क दिए हैं। राज्य ने तर्क दिया कि यूसीसी विकसित विचारों को दिखाता है। इसने यह भी तर्क दिया है कि शादी का मैनडेटरी रजिस्ट्रेशन वैवाहिक संबंधों की स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए है। वहीं लिव-इन संबंधों को रजिस्टर ना कराने पर कार्रवाई का मकसद क्रिमिनल एक्टिविटी को रोकना है।

राज्य ने यह भी दावा किया है कि विवाहेतर संबंधों से पैदा हुए बच्चे महिलाओं के हितों को संबोधित करने में कमी है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि बच्चों को नाजायज नहीं माना जा सकता है, लेकिन डॉक्यूमेंट की गैर मौजूदगी की वजह से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, यूसीसी इन सबके बार में बताएगा। राज्य यह भी तर्क देगा कि विचार-विमर्श के दौरान पक्षकारों ने यूसीसी की कमेटी को बताया था कि लिव-इन को रेगुलेट किया जाना चाहिए।

UCC में लिव-इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन को जरूरी बनाने के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा ‘नॉन-बाइनरी कपल’

इस हलफनामे में एक और दलील राइट टू प्राइवेसी के बारे में दी गई है। राज्य के मुताबिक, रजिस्ट्रार केवल सूचनाओं को इकट्ठा करने वाला है। ऐसा पता चला है कि पुलिस को सूचना देने के बारे में चिंताओं को भी इसी तरह दूर कर दिया गया है। राज्य ने 2017 के पुट्टस्वामी फैसले का हवाला दिया। इसके मुताबिक, कोई भी कानून प्राइवेसी का अतिक्रमण करता हो तो उसने कई क्राइटेरिया से गुजरना होगा। इसमे सबसे पहला तो इसको विधायिका की तरफ से बनाया जाना चाहिए। दूसरा यह है कि राज्य के हित को आगे बढ़ाने के लिए बनाया जाना चाहिए और तीसरा यह है कि वह असंगत नहीं होना चाहिए। यूसीसी इस सब को पास करता है।

राज्य ने इस चिंता को बिल्कुल सिरे से खारिज कर दिया कि यूसीसी रजिस्ट्रेशन को आधार से जोड़ने पर निगरानी हो सकती है। राज्य ने कहा कि यह केवल जानकारी केवल रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए है। याचिकाकर्ता की इस दलील पर कि उत्तराखंड के मूल निवासी पर यह कानून लागू नहीं हो सकता जो अब राज्य में नहीं रहता, हलफनामे में दावा किया गया है कि राज्य को राज्यक्षेत्र से बाहर के कानून बनाने का अधिकार है बशर्ते राज्य और नागरिक के बीच संबंध हो। गौरतलब है कि उत्तराखंड के बाहर के निवासियों पर कानून का लागू होना इसके सबसे विवादास्पद प्रावधानों में से एक है।

विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने और संपत्ति उत्तराधिकार जैसे पहलुओं को रेगुलेट करने के मकसद से उत्तराखंड यूसीसी अधिनियम 2024, पिछले साल फरवरी में पारित किया गया था। इसके तहत इसके नियम जनवरी के महीने में लागू हो गए हैं। अब कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 22 अप्रैल को होगी। समान नागरिक संहिता को अपनाना केवल कुछ वक्त की बात है