Waqf Bill News: वक्फ (संशोधन) बिल पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। शाह ने कहा कि यूपीए सरकार ने अगर वक्फ एक्ट, 1995 में संशोधन नहीं किया होता तो मौजूदा बिल लाने की जरूरत ही नहीं पड़ती।

अमित शाह ने कहा कि यूपीए सरकार के द्वारा वक्फ एक्ट, 1995 में किए गए संशोधन तुष्टिकरण की एक और कोशिश थी। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने भी यही तर्क दिया। उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार ने 2013 में वक्फ एक्ट में यह प्रावधान किया था कि किसी भी किसी भी धर्म का कोई भी व्यक्ति वक्फ बना सकता है और इस वजह से वक्फ एक्ट, 1995 कमजोर हुआ।

रिजिजू ने यह भी कहा था कि तब यह प्रावधान कर दिया गया कि शिया वक्फ बोर्ड में केवल शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड में केवल सुन्नी मुस्लिम ही हो सकते हैं।

वक्फ बिल को लेकर चल रही तमाम चर्चाओं के बीच जब खुद अमित शाह और किरेन रिजिजू ने 2013 में यूपीए सरकार के द्वारा वक्फ एक्ट में किए गए संशोधनों को लेकर उस पर हमला बोला तो ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि 2013 में क्या संशोधन किए गए थे और संसद में तब इस पर क्या बहस हुई थी?

पहले बात करते हैं कि क्या बहस हुई थी? यह बिल पहली बार 7 मई, 2010 को लोकसभा में पेश किया गया और वहां यह पास भी हो गया हालांकि राज्यसभा ने इस बिल को जांच के लिए सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया। सेलेक्ट कमेटी ने इसमें कुछ संशोधन बताए। इसके बाद 2013 में इस पर बहस हुई और फिर यह पास हो गया।

2013 में अल्पसंख्यक मामलों के तत्कालीन मंत्री सलमान खुर्शीद ने लोकसभा में वक्फ (संशोधन) बिल पेश किया था। कांग्रेस के सांसद असरार हक ने इस बिल की हिमायत की थी और कहा था कि 1995 के वक्फ एक्ट में “कई बेहतर संशोधन” किए गए हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने भी इस बिल का स्वागत किया था।

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यादव ने कहा था कि सरकार भविष्य में इस संबंध में और भी सख्त कानून बनाए और वक्फ की संपत्तियों की खरीद फरोख्त को संज्ञेय अपराध घोषित किया जाना चाहिए। उस वक्त बीजेपी के सांसद शाहनवाज हुसैन ने भी इस बिल को सही बताया था और कहा था कि जिस तरह के संशोधन पेश किए गए हैं, उससे वक्फ की संपत्तियों पर अतिक्रमण कम होगा।

वक्फ बिल पर चर्चा के बाद सलमान खुर्शीद ने कहा था कि इस बिल का मकसद महिलाओं को राज्य और केंद्रीय वक्फ बोर्ड में शामिल होने की अनुमति देना है।

अब बात करते हैं कि मौजूदा बिल में क्या बदलाव किए गए? 2013 में हुए संशोधनों के बड़े हिस्से को इस बार भी बरकरार रखा गया है फिर भी कुछ बदलाव किए गए हैं। जैसे- 2013 के संशोधनों में सिर्फ शिया और सुन्नी वक्फ को मान्यता दी गई थी लेकिन मौजूदा बिल में आगाखानी और बोहरा वक्फ को भी शामिल किया गया है।

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2013 के कानून में धारा 108ए को जोड़ा था। इसके मुताबिक, वक्फ कानून को “overriding effect” मिला यानी किसी भी मामले में अन्य कानूनों की तुलना में वक्फ एक्ट के प्रावधानों को प्राथमिकता दी जा सके। मौजूदा बिल में इस धारा को पूरी तरह से हटा दिया गया है।

नया बिल यह भी कहता है कि केवल वही व्यक्ति संपत्ति वक्फ के रूप में दान कर सकता है, जो यह दिखा सके कि वह कम से कम पांच साल से “इस्लाम का पालन” कर रहा है। अहम बात यह है कि 2013 के संशोधन ने ट्रिब्यूनल के कामकाज को मजबूत किया था लेकिन नया बिल उनकी अहमियत को कम करता है। जबकि 2013 के संशोधन में कहा गया था कि ऐसे मामलों के संबंध में ट्रिब्यूनल का फैसला अंतिम होगा लेकिन नए बिल में ऐसा कुछ नहीं है।

नया बिल केंद्रीय वक्फ बोर्ड और राज्य वक्फ बोर्डों की संरचना और कामकाज में भी बड़े बदलाव लाता है। यह पहली बार गैर-मुस्लिमों को इन बोर्डों का हिस्सा बनने की इजाजत देता है। नये बिल के तहत, वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के लिए मुस्लिम होने की कोई जरूरत नहीं है जबकि 2013 में शुरू की गई नियुक्ति प्रक्रिया को बरकरार रखा गया है।

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