केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 में संसद की संयुक्त समिति (जेसीपी) द्वारा प्रस्तावित 14 संशोधनों को मंजूरी दे दी है। यह संशोधन 27 जनवरी को एनडीए सदस्यों द्वारा सुझाए गए थे, जो विवादास्पद वक्फ विधेयक की जांच करने वाले संसदीय पैनल का हिस्सा थे। वहीं, विपक्षी दलों द्वारा प्रस्तावित 44 संशोधनों को मतदान के बाद समिति ने खारिज कर दिया, क्योंकि ये प्रस्तावित विधेयक में किए जा रहे बदलावों के खिलाफ थे। सूत्रों के अनुसार, संशोधित विधेयक को संसद के बजट सत्र के दूसरे भाग में पेश किए जाने की संभावना है, जो 10 मार्च से शुरू होगा।

संशोधित वक्फ विधेयक में कई अहम बदलाव किए गए हैं। इनमें वक्फ संपत्तियों को पंजीकृत करने के लिए छह महीने की छूट, विवादित संपत्ति की स्थिति तय करने के लिए जिला कलेक्टर की जगह राज्य सरकार के अधिकारी की नियुक्ति और वक्फ न्यायाधिकरण के एक सदस्य को “मुस्लिम कानून और न्यायशास्त्र का ज्ञान” आवश्यक करने जैसे प्रावधान शामिल हैं। 27 जनवरी को जब समिति द्वारा इन संशोधनों को मंजूरी दी गई, तो जनता दल (यूनाइटेड) और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने कुछ संशोधनों का प्रस्ताव रखा। इसके बाद एनडीए के सभी दलों ने विधेयक के पक्ष में मतदान किया, जिससे संकेत मिला कि गठबंधन में इस पर आम सहमति है।

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भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को विश्वास है कि यह विधेयक संसद में आसानी से पारित हो जाएगा। हालांकि, लोकसभा में 240 सीटों के बावजूद भाजपा के पास पूर्ण बहुमत नहीं है, इसलिए टीडीपी के 16, जेडी(यू) के 12 और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के पांच सांसदों का समर्थन महत्वपूर्ण होगा। इसके अलावा, राष्ट्रीय लोक दल, जनता दल सेक्युलर और अपना दल (एस) जैसे छोटे एनडीए सहयोगियों की भूमिका भी विधेयक को पारित कराने में अहम रहेगी।

इस विधेयक को लेकर विपक्ष और सरकार के बीच कई बार टकराव देखने को मिला। 13 फरवरी को, जेसीपी में विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि उनके सांसदों द्वारा प्रस्तुत असहमति नोटों को उनकी जानकारी के बिना संपादित किया गया। हालांकि, सरकार ने उसी दिन बाद में जेसीपी रिपोर्ट के परिशिष्ट V में कुछ संशोधित भागों को बहाल करने पर सहमति जता दी।

विपक्षी दलों ने जेसीपी की कार्यवाही को लेकर यह भी आरोप लगाया कि विधेयक पर निर्णय लेते समय उचित संसदीय प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और समिति का कामकाज मनमाना था। हालांकि, समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल और सत्तारूढ़ भाजपा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए दावा किया कि सभी प्रक्रियाओं का सही तरीके से पालन किया गया है। अब सभी की नजरें इस पर टिकी हैं कि संसद में इस विधेयक को लेकर किस तरह की बहस और मतदान देखने को मिलेगा।